ETV Bharat / state

राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना बंद होने से किसान निराश, कम लागत में होता था अच्छा मुनाफा

देश के असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती है. साथ ही इस क्षेत्र में बांस की कुर्सियां से लेकर सजावट के समान, ड्राइंग रूम में साज-सजावट के लिये इसका उपयोग किया जाता है.

author img

By

Published : Jul 29, 2019, 10:34 AM IST

बांस के खेत

वैशाली: जिले में रहने वाले हजारों किसानों को राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. इसकी वजह से किसानों में सरकार और प्रशासन के प्रति खासी नाराजगी देखी जा रही है. जबकि इस संबंध में जिले के उद्यान विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत विपिन कुमार पोद्दार की मानें तो जिले में ये योजना बंद हुए 5 साल बीत चुके हैं.

क्या है राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना?

केंद्र प्रायोजित इस योजना के तहत वैसे क्षेत्र, जहां की जमीन उपजाऊ नहीं हैं, जहां किसी भी फसल की खेती नहीं हो पाती है. केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना के तहत उस क्षेत्र के रहने वाले एक प्रक्रिया के तहत इसका लाभ ले सकते हैं. सरकार इसके लिये किसानों को सब्सिडी भी देती है. केंद्र सरकार की इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करना है.

vaishali
मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती है

बाजारों में एक बांस का मूल्य सौ से डेढ़ सौ रुपये
बम्बू मिशन योजना के तहत अगर किसान इसकी खेती वृहत पैमाने पर करते हैं. तो शुरुआती तौर पर इसकी संख्या कम होती है. धीरे-धीरे इसमें कई पचकी (शाखा) निकलती है और एक समय पर इसकी संख्या सैकड़ों तक पहुंच जाती है. इस बांस की खेती को एक बार लगाए जाने के बाद वर्षों तक यह किसानों को लाभ देता रहता है. इसको अन्य फसल के जैसा कुछ महीनों उपरांत नहीं काट सकते. बाजारों में एक बांस की कीमत एक सौ या डेढ़ सौ तक आसानी से मिल जाती है. इससे आजकल डलिया, सूप, बांस की कुर्सियां, ग्रामीण इलाकों में छत का छप्पर से लेकर किसी भी पंडाल में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

वैशाली जिले में राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना ठप

क्या कहते हैं अधिकारी?
जिले के उद्यान सहायक निदेशक विपिन पोद्दार का मानना है कि जिले में किसान इसकी खेती में कोई खास दिलचस्पी नहीं लेते दिखाई पड़ते हैं. कुछ किसान हैं भी, तो मुट्ठी भर जो अपनी मन मुताबिक जमीन का चयन कर बांस की खेती करते हैं.

देश-दुनिया में होता है बिक्री
देश के असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती है. साथ ही इस क्षेत्र में बांस की कुर्सियां से लेकर सजावट के समान, ड्राइंग रूम में साज-सजावट के लिये इसका उपयोग किया जाता है. बता दें कि बांस की बनी हुई एक से बढ़कर एक कलाकारी की वस्तु इन क्षेत्रों में मजे हुए कारीगरों द्वारा तैयारी कर इसे देश दुनिया में बिक्री के लिये उतारा जाता है. जहां इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है. हालांकि, अब इस केंद्रीय योजना के बंद होने से यहां के किसान निराश हैं.

वैशाली: जिले में रहने वाले हजारों किसानों को राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. इसकी वजह से किसानों में सरकार और प्रशासन के प्रति खासी नाराजगी देखी जा रही है. जबकि इस संबंध में जिले के उद्यान विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत विपिन कुमार पोद्दार की मानें तो जिले में ये योजना बंद हुए 5 साल बीत चुके हैं.

क्या है राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना?

केंद्र प्रायोजित इस योजना के तहत वैसे क्षेत्र, जहां की जमीन उपजाऊ नहीं हैं, जहां किसी भी फसल की खेती नहीं हो पाती है. केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना के तहत उस क्षेत्र के रहने वाले एक प्रक्रिया के तहत इसका लाभ ले सकते हैं. सरकार इसके लिये किसानों को सब्सिडी भी देती है. केंद्र सरकार की इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करना है.

vaishali
मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती है

बाजारों में एक बांस का मूल्य सौ से डेढ़ सौ रुपये
बम्बू मिशन योजना के तहत अगर किसान इसकी खेती वृहत पैमाने पर करते हैं. तो शुरुआती तौर पर इसकी संख्या कम होती है. धीरे-धीरे इसमें कई पचकी (शाखा) निकलती है और एक समय पर इसकी संख्या सैकड़ों तक पहुंच जाती है. इस बांस की खेती को एक बार लगाए जाने के बाद वर्षों तक यह किसानों को लाभ देता रहता है. इसको अन्य फसल के जैसा कुछ महीनों उपरांत नहीं काट सकते. बाजारों में एक बांस की कीमत एक सौ या डेढ़ सौ तक आसानी से मिल जाती है. इससे आजकल डलिया, सूप, बांस की कुर्सियां, ग्रामीण इलाकों में छत का छप्पर से लेकर किसी भी पंडाल में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

वैशाली जिले में राष्ट्रीय बम्बू मिशन योजना ठप

क्या कहते हैं अधिकारी?
जिले के उद्यान सहायक निदेशक विपिन पोद्दार का मानना है कि जिले में किसान इसकी खेती में कोई खास दिलचस्पी नहीं लेते दिखाई पड़ते हैं. कुछ किसान हैं भी, तो मुट्ठी भर जो अपनी मन मुताबिक जमीन का चयन कर बांस की खेती करते हैं.

देश-दुनिया में होता है बिक्री
देश के असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती है. साथ ही इस क्षेत्र में बांस की कुर्सियां से लेकर सजावट के समान, ड्राइंग रूम में साज-सजावट के लिये इसका उपयोग किया जाता है. बता दें कि बांस की बनी हुई एक से बढ़कर एक कलाकारी की वस्तु इन क्षेत्रों में मजे हुए कारीगरों द्वारा तैयारी कर इसे देश दुनिया में बिक्री के लिये उतारा जाता है. जहां इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है. हालांकि, अब इस केंद्रीय योजना के बंद होने से यहां के किसान निराश हैं.

Intro:लोकेशन: वैशाली
रिपोर्टर: राजीव कुमार श्रीवास्तवा ।

वैशाली जिले में रहने वाले हजारों किसानों को राष्ट्रीय बैम्बू मिशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा हैं। जबकि इसके बारे में जिले के उद्यान विभाग के सहायक निदेशक का कहना हैं कि यहा इस योजना को बंद किये पांच वर्ष हो चुके हैं ।
पेश हैं एक रिपोर्ट:-


Body:जिले में रहने वाले किसानों को राष्ट्रीय वैम्बू मिशन योजना का लाभ नहीं मिलने से किसानों में सरकार एवं प्रशासन के प्रति खासी नाराजगी देखी जा रही हैं। जबकि इस संबंध में जिले के उद्यान विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्य कर रहें विपिन कुमार पोद्दार की मानें तो जिले में यह योजना बन्द किये हुए आज पांच वर्ष हो चुके हैं ।


राष्ट्रीय योजना वैम्बू मिशन योजना :

केंद्र प्रायोजित इस योजना के तहत वैसे क्षेत्र जहा की जमीन उपजाऊ नहीं हैं , वहां की जमीन बर्जर हैं । जहा कोई भी फसल की खेती नहीं हो सकती हैं।

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय वैम्बू मिशन योजना के तहत उस क्षेत्र के रहने वाले एक प्रक्रिया के तहत इसका लाभ ले सकते हैं। सरकार इसके लिये सब्सिडी भी सत्य प्रतिशत किसानों को देती हैं।

केंद्र सरकार इस योजना द्वारा किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करना ही मुख्य उद्देश्य हैं। वैम्बू मिशन योजना के तहत अगर किसान इसकी खेती वृहत पैमाने पर करते हैं तो बांस की खेती शुरुवाती तौर पर इसकी संख्या कम होती हैं धीरे धीरे इसमें पचकी (शाखा) कई निकलती हैं और एक समय पर इसकी संख्या सैकडों तक पहुँच जाती हैं ।इस बांस की खेती को एक बार लगाए जानें बीके बाद इसको कई वर्षों तक यह किसानों को लाभ देता रहता हैं ।इसको अन्य फसल के जैसा कुछ महिनों उपरांत नही काट सकते ।
बाजारों में एक बांस का मूल्य एक सौ या डेढ़ सौ तक आसानी से मिल जाते हैं। इससे आजकल डलिया, सुप, बांस की कुर्सियां,ग्रामीण इलाकों में छत का छप्पर से लेकर किसी भी पंडाल में इसका इस्तेमाल होता हैं।

जिले के उद्यान सहायक निदेशक विपिन पोद्दार का मानना हैं कि जिले में किसान इसकी खेती में कोई खास दिलचस्पी नहीं लेते दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने आगें कहा कि कुछ किसान हैं भी तो मुट्ठी भर जो अपनी मन मुताबिक जमीन का चयन कर बांस की खेती करते हैं।

बिहार के कटिहार, चंपारण में इसकी वृहत पैमाने पर खेती होती हैं।

देश के असम, वेस्ट बंगाल और मणिपुर जैसे राज्यों में इसकी ज्यादातर खेती होती हैं साथ ही इस क्षेत्र में केन की कुर्सियां से लेकर सजावट के समान, ड्राइंग रूम में साज- सजावट के लिये इसका उपयोग किया जाता हैं। विदित हो कि बांस की बनी हुई एक से बढ़कर एक कलाकारी के वस्तु इन क्षेत्रों में मजे हुए कारीगरों द्वारा तैयारी कर इसे देश दुनिया मे बिक्री के लिये उतारा जाता हैं जहां इसकी मूल्य अच्छी मिल जाती हैं।

किसानों की मानें तो इसकी खेती में अच्छी संभावनाएं हैं।


Conclusion:बहरहाल, केंद्रीय योजना के तहत इस योजना का बन्द हो जाना यहा के किसानों को नहीं पच रहा हैं। अब देखने वाली यह बात होती है कि क्या यह योजना आगें से फिर यहा के किसानों की मांग को देखते हुए शुरू की जाएंगी ।यह यहा के किसानो को इंतजार रहेगा ।

स्टार्टिंग VO से :
बाइट : विपिन कुमार पोद्दार सहायक निदेशक वैशाली जिला
बाइट किसान

PTC: संवाददाता , राजीव, वैशाली ।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.