वैशाली: बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक लगने वाला विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला (Sonpur Fair 2022) शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा मेला है, जहां क्रय-विक्रय के लिए सुई से लेकर हाथी तक (Elephants were sold in Sonpur fair) उपलब्ध होता था. पशु क्रूरता अधिनियम के तहत हाथियों को बिक्री के लिए लाए जाने पर रोक लगा दी गयी है, लेकिन मेले का आकर्षण कम नहीं हुआ है.कोरोना महामारी के कारण पिछले दो साल से यह मेला प्रभावित हो गया था. अब तीन साल के लंबे अंतराल के बाद यह मेला फिर से लगने वाला है. इसको लेकर लोगों में काफी उत्साह है. बड़ी संख्या में लोगों के आने का अनुमान है. प्रशासन इसकी तैयारी कर रहा है.
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विदेशी पर्यटक भी यहां पहुंचते हैंः मोक्षदायिनी गंगा और गंडक नदी के संगम पर ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व वाले सोनपुर क्षेत्र में लगने वाला सोनपुर मेला प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने से शुरू होकर एक महीने तक चलता है. इस बार मेले का उद्घाटन 6 नवंबर को होगा. आठ को कार्तिक पूर्णिमा का स्नान होगा प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का स्वरूप कलांतर में भले ही कुछ बदला हो, लेकिन इसकी महत्ता आज भी वही है. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं. सरकार भी इस मेले की महत्ता बरकरार रखने को लेकर हरसंभव प्रयास में लगी है. चिड़िया बाजार पर जिला प्रशासन ने काफी पहले ही रोक लगा दिया था. थियेटर बंद होने से मेला में लोगों की आवाजाही काफी घट गई थी.
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उत्तर वैदिक काल से शुरुआतः सोनपुर मेला को 'हरिहर क्षेत्र मेला' और 'छत्तर मेला' के नाम से भी जाना जाता है. इसकी शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसकी शुरुआत उत्तर वैदिक काल से मानी जाती है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इसे शुंगकाल का माना है. शुंगकालीन कई पत्थर एवं अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ मंदिरों में उपलब्ध रहे हैं. हरिहरनाथ मंदिर के पुजारी सुशीलचंद्र शास्त्री ने कहा, "प्राचीन काल में हिंदू धर्म के दो संप्रदायों- शैव एवं वैष्णवों में विवाद हुआ करता था, जिसे समाज में संघर्ष एवं तनाव की स्थिति बनी रहती थी। तब, उस समय के प्रबुद्ध जनों के प्रयास से इस स्थल पर एक सम्मेलन आयोजित कर दोनों संप्रदायों में समझौता कराया गया, जिसके परिणाम स्वरूप हरि (विष्णु) एवं हर (शंकर) की संयुक्त रूप से स्थापना कराई गई, जिसे हरिहर क्षेत्र कहा गया।"
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पशु की खरीददारी को शुभ माना जाताः पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल 'गजेंद्र मोक्ष स्थल' के रूप में भी चर्चित है. मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए. कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया. कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. इस बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को समाप्त कराया. इस स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था, इस कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है.
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क्या है इतिहासः हाजीपुर आरएन कॉलेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर नवल किशोर श्रीवास्तव ने कहा, "दुनिया में संभवत: यह एकमात्र मेला है, जहां सुई से हाथी तक क्रय-विक्रय के लिए उपलब्ध होते थे. कलांतर में कई पशुओं की खरीद-बिक्री पर रोक लगाए जाने के बाद परिस्थितियां और खरीद-बिक्री का तरीका बदल गया है." उन्होंने बताया कि इतिहास की पुस्तकों में यह भी प्रमाण मिलता है कि मुगल सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति महाराजा मान सिंह ने सोनपुर मेला में आकर शाही सेना के लिए हाथी एवं अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. इस मेले को देखने और घूमने के लिए न केवल देशी पर्यटक, बल्कि विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं.
स्विस कॉटेज बनेगा आकर्षणः इस बार विदेशी पर्यटकों के लिए पर्यटन विकास निगम की ओर से बनाया जाने वाला स्विस कॉटेज आकर्षण का केंद्र बनेगा. इसकी ऑनलाइन भी बुकिंग भी कर सकते हैं. स्विस कॉटेज में रुकने के लिए 6 हजार रुपये के साथ जीएसटी का भुगतान करना होगा. 13 नवंबर से 19 नवंबर तक कॉटेज में ठहरने के लिए 4 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पर्यटक को देना होगा. हालांकि, समय के मुताबिक रेट कम होगा और 20 से 26 नवंबर तक मात्र 15 सौ रुपये और जीएसटी का भुगतान करना होगा.