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कुम्हारों का दर्द- चाइनीज लाइट्स ने धंधा किया चौपट, मेहनताना नहीं मिलता

एक ओर जहां चाइनीज लाइट्स की चकाचौंध ने कुम्हारों की आमदनी पर डाका डालना शुरू कर दिया है वहीं दूसरी ओर आज के युवा मिट्टी के दीये काफी पसंद कर रहे हैं. इनका कहना है कि दीपावली में मिट्टी का दीया जलाना ही हिंदू धर्म की परंपरा है.

नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये
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Published : Oct 23, 2019, 1:43 PM IST

वैशाली: दीपावली 27 अक्टूबर को है. इसे लेकर बाजारों में रौनक बढ़ गई है. पूरा बाजार चाइनीज लाइट और बत्ती से लेकर सजावट के सामानों से पटा है. वहीं कुम्हार भी अपनी पुश्तैनी पेशा के तहत इस बार भी मिट्टी के दीये, पूजा के लिये बर्तन इत्यादि बनाने में जोर शोर से लगे हुए हैं.

सोनपुर प्रखंड के हरिहरनाथ मंदिर के पास, पूर्वी सब्बलपुर और भरपुरा पंचायत दर्जनों कुम्हार मिट्टी के दीये, खिलौने और छठ के लिये भी बर्तन बनाने में लगे हुए हैं. इस पेशे से कुम्हार कई सालों से अपने परिवार का खर्च चला रहे हैं. लेकिन कुछ दशकों से इनकी आमदनी पर लगता है डाका पड़ गया है. जहां इस पेशे से पहले अच्छी आमदनी हो जाती थी. वहीं, आज चाइनीज लाइट्स की बाजार में बढ़ती मांगों से इनकी आमदनी कम हो गई है. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है, तबसे मिट्टी के दीये की मांग कम हो गई है.

पेश है रिपोर्ट

पलायन करने को मजबूर कुम्हार
कुम्हारों का कहना है कि बाजारों में नये उपकरण आने से उनके पुस्तैनी पेशा पर गहरा असर पड़ा है. पहले के जमाने में 100 परिवार इस पेशे से जुड़ा हुआ था. लेकिन जैसे-जैसे चाइनीज उपकरणों की डिमांड बढ़ रही रही है, लोग पारंपरिक चीजों से दूर भाग रहे हैं. इस कारण अब कुम्हार जाति के लोग भी दूसरे धंधे की ओर पलायन कर रहे हैं.

vaishali
मिट्टी का दीया बनाते कुम्हार

लागत और मेहनत के हिसाब से नहीं मिलते पैसे
तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है. इनका कहना है कि पहले की तुलना में कच्ची सामग्री भी अब काफी महंगी हो गई है. दीया और खिलौने बनाने के लिये काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है. दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उसपर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत है. लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते जितनी इसमें मेहनत और लागत है.

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नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये

युवाओं को भा रहा मिट्टी का दीया
हालांकि, आज के युवा मिट्टी के दीये को काफी पसंद कर रहे हैं. इनका कहना है कि दीपावली में मिट्टी का दीया जलाना ही हिंदू धर्म की परंपरा है. पर्व त्योहारों पर खासकर हमें दीया ही जलाना चाहिए क्योंकि मिट्टी को पवित्र माना गया है. इससे कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. सरकार को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. यदि सभी कार्यालयों में चाय के लिये कुल्लहड़ का इस्तेमाल किया जाए तो कुम्हारों को काफी मदद मिलेगी.

वैशाली: दीपावली 27 अक्टूबर को है. इसे लेकर बाजारों में रौनक बढ़ गई है. पूरा बाजार चाइनीज लाइट और बत्ती से लेकर सजावट के सामानों से पटा है. वहीं कुम्हार भी अपनी पुश्तैनी पेशा के तहत इस बार भी मिट्टी के दीये, पूजा के लिये बर्तन इत्यादि बनाने में जोर शोर से लगे हुए हैं.

सोनपुर प्रखंड के हरिहरनाथ मंदिर के पास, पूर्वी सब्बलपुर और भरपुरा पंचायत दर्जनों कुम्हार मिट्टी के दीये, खिलौने और छठ के लिये भी बर्तन बनाने में लगे हुए हैं. इस पेशे से कुम्हार कई सालों से अपने परिवार का खर्च चला रहे हैं. लेकिन कुछ दशकों से इनकी आमदनी पर लगता है डाका पड़ गया है. जहां इस पेशे से पहले अच्छी आमदनी हो जाती थी. वहीं, आज चाइनीज लाइट्स की बाजार में बढ़ती मांगों से इनकी आमदनी कम हो गई है. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है, तबसे मिट्टी के दीये की मांग कम हो गई है.

पेश है रिपोर्ट

पलायन करने को मजबूर कुम्हार
कुम्हारों का कहना है कि बाजारों में नये उपकरण आने से उनके पुस्तैनी पेशा पर गहरा असर पड़ा है. पहले के जमाने में 100 परिवार इस पेशे से जुड़ा हुआ था. लेकिन जैसे-जैसे चाइनीज उपकरणों की डिमांड बढ़ रही रही है, लोग पारंपरिक चीजों से दूर भाग रहे हैं. इस कारण अब कुम्हार जाति के लोग भी दूसरे धंधे की ओर पलायन कर रहे हैं.

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मिट्टी का दीया बनाते कुम्हार

लागत और मेहनत के हिसाब से नहीं मिलते पैसे
तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है. इनका कहना है कि पहले की तुलना में कच्ची सामग्री भी अब काफी महंगी हो गई है. दीया और खिलौने बनाने के लिये काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है. दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उसपर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत है. लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते जितनी इसमें मेहनत और लागत है.

vaishali
नहीं बिक रहे मिट्टी के दीये

युवाओं को भा रहा मिट्टी का दीया
हालांकि, आज के युवा मिट्टी के दीये को काफी पसंद कर रहे हैं. इनका कहना है कि दीपावली में मिट्टी का दीया जलाना ही हिंदू धर्म की परंपरा है. पर्व त्योहारों पर खासकर हमें दीया ही जलाना चाहिए क्योंकि मिट्टी को पवित्र माना गया है. इससे कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. सरकार को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. यदि सभी कार्यालयों में चाय के लिये कुल्लहड़ का इस्तेमाल किया जाए तो कुम्हारों को काफी मदद मिलेगी.

Intro:लोकेशन: वैशाली ।
रिपोर्टर: राजीव कुमार श्रीवास्तवा ।

इस वर्ष दीपावली 27 ओक्टुबर को पड़ी हैं। इसको लेकर बाजारों में चाइनीज लाइट, बती से लेकर सजावट के समान सहित विभिन्न उपकरणों से पटा हैं। वहीं कुम्हारों अपने पुस्तैनी पेशा के तहत इस बार भी शुद्ध मिट्टी की दिया, पूजा सामग्रियों के लिये बर्तन परिवार के साथ महीनों से बनाने में जुटे हुए हैं।


Body:हिंदुओं का पवित्र त्यौहार दीपावली में अभी कुछ ही दिन बाकी रह गया हैं। इसके साथ ही बाजारों में हरेक वर्ष की तरह इस बार भी चाइनीज (विदेशी) लाइट, बती और उपकरणें आने से देशी कुम्हार के द्वारा बनाई गई शुद्ध मिट्टी की दिया पर असर डालना शुरू कर दिया हैं। वैशाली जिले के हाजीपुर शहर में दर्जनों कुम्हार मिट्टी की दिया महीनों से परिवार के साथ बनाने में जुटे हुए हैं।

उधर सोंनपुर प्रखण्ड के हरिहरनाथ मंदिर के पास , पूर्वी सब्बलपुर, भरपुरा पंचायत में दर्जनों कुम्हारों द्वारा मिट्टी की दिया, खिलौना, छठ का भी बर्तन बनाने का काम अंतिम छोर पर आ गया हैं।

सोंनपुर के एक कुम्हार की मानें तो बाजारों में नये उपकरण आने से उनके पुस्तैनी पेशा पर गहरा असर पड़ा हैं ।कुम्हार की मानें तो पूर्व में उनके जैसा सौ परिवार इस धंधे में खूब चांदी काटता था ।अब इनकी संख्या दर्जन भर रह गया हैं। इनकी मानें तो इस पेशा में पहले जैसी बात बिल्कुल नहीं हैं। एक दुकानदार औरत ने वताया कि उनके इस पेशे में महँगाई की डायन की बुरी नजर पड़ी हुई हैं। उसने बताया कि अब महंगाई से सभी सामग्रिया काफी महंगे हो गए हैं। उंसने आगें बताया कि दिया कि मिट्टी, खिलौना बनाने के लिये दूर से कैवाल मिट्टी लाने के लिये उस बार क्षेत्र मस गंगा का पानी होने से बहुत परेशानी हुई थी । चाक पर मिट्टी से दिया बनाने के पहले मिट्टी को सुखाने पड़ते हैं फिर इसे हल्का गिला कर उसे चाक पर कार्य करते हैं फिर सभी दिया, खिलौने को धूप में ससूखाने के बाद उसे कलर कर आग में पकाना पडता हैं । इन कार्य मे बहुत मेहनत करना पड़ता हैं पर ग्राहक को कम पैसे में ही यह सभी बर्तन चाहिए ।

कुम्हार की मानें तो अब इस पुस्तैनी धंधे को नए पीढ़ी के हमारे बच्चे करना पसंद नहीं करेंगे ।
एक कुम्हार ने बताया कि सरकार को हमारे पेशा को बचाने के लिये कोई सकरात्मक कदम उठाना चाहिए ।नहीं तो यह पेशा पूरी तरह से बन्द हो जाएगा । इनकी मानें तो सरकार द्वारा सभी कार्यालयों में चुकड का इस्तेमाल करने के लिये नियम बनाना चाहिए ।

हालांकि आजकल कुछ ग्राहकों में मिट्टी के दिया को पसंद किया जा रहा हैं। इनकी माने तो वर्ष में एक बार दीपावली से लेकर छठ जैसे पर्व आता हैं। इसमे कुम्हारों द्वारा मिट्टी के बनाये गए दीप से लेकर सभी बर्तन खरीदना ज्यादा अच्छा होंगा । हाजीपुर से सोंनपुर आकर मिट्टी की दीप (दिया) और कई मिट्टी की बर्तन खरीदने आये टीन एजर्स ने बताया कि इससे कुम्हारों की आर्थिक स्थिति भी ठीक होंगी और पुरानी परंपरा में शुद्ध दिया मिट्टी का ही माना गया हैं।


Conclusion:बहरहाल, दीपावली में इन मेहनत कस द्वारा आशावादिता रहती हैं कि इस बार हमारे द्वारा बनाये गए मिट्टी की शुद्ध दिया कि जरूर बिक्री हो जाएंगी ।

01. VO
ओपन: PTC, संवाददाता, राजीव , वैशाली ।

बाईट्स: दुकानदार ।
02. VO
बाईट्स: ग्राहक
PTC: संवाददाता, राजीव, वैशाली ।
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