वैशाली: दीपावली 27 अक्टूबर को है. इसे लेकर बाजारों में रौनक बढ़ गई है. पूरा बाजार चाइनीज लाइट और बत्ती से लेकर सजावट के सामानों से पटा है. वहीं कुम्हार भी अपनी पुश्तैनी पेशा के तहत इस बार भी मिट्टी के दीये, पूजा के लिये बर्तन इत्यादि बनाने में जोर शोर से लगे हुए हैं.
सोनपुर प्रखंड के हरिहरनाथ मंदिर के पास, पूर्वी सब्बलपुर और भरपुरा पंचायत दर्जनों कुम्हार मिट्टी के दीये, खिलौने और छठ के लिये भी बर्तन बनाने में लगे हुए हैं. इस पेशे से कुम्हार कई सालों से अपने परिवार का खर्च चला रहे हैं. लेकिन कुछ दशकों से इनकी आमदनी पर लगता है डाका पड़ गया है. जहां इस पेशे से पहले अच्छी आमदनी हो जाती थी. वहीं, आज चाइनीज लाइट्स की बाजार में बढ़ती मांगों से इनकी आमदनी कम हो गई है. जब से चाइनीज लाइट बाजार में आई है, तबसे मिट्टी के दीये की मांग कम हो गई है.
पलायन करने को मजबूर कुम्हार
कुम्हारों का कहना है कि बाजारों में नये उपकरण आने से उनके पुस्तैनी पेशा पर गहरा असर पड़ा है. पहले के जमाने में 100 परिवार इस पेशे से जुड़ा हुआ था. लेकिन जैसे-जैसे चाइनीज उपकरणों की डिमांड बढ़ रही रही है, लोग पारंपरिक चीजों से दूर भाग रहे हैं. इस कारण अब कुम्हार जाति के लोग भी दूसरे धंधे की ओर पलायन कर रहे हैं.
लागत और मेहनत के हिसाब से नहीं मिलते पैसे
तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है. इनका कहना है कि पहले की तुलना में कच्ची सामग्री भी अब काफी महंगी हो गई है. दीया और खिलौने बनाने के लिये काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है. दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उसपर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत है. लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते जितनी इसमें मेहनत और लागत है.
युवाओं को भा रहा मिट्टी का दीया
हालांकि, आज के युवा मिट्टी के दीये को काफी पसंद कर रहे हैं. इनका कहना है कि दीपावली में मिट्टी का दीया जलाना ही हिंदू धर्म की परंपरा है. पर्व त्योहारों पर खासकर हमें दीया ही जलाना चाहिए क्योंकि मिट्टी को पवित्र माना गया है. इससे कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. सरकार को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. यदि सभी कार्यालयों में चाय के लिये कुल्लहड़ का इस्तेमाल किया जाए तो कुम्हारों को काफी मदद मिलेगी.