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पानी में तैरते हुए अशोक बजाते हैं बांसुरी.. मधुर धुन सुन खिंचे चले आते हैं लोग.. आप भी उठाइए लुत्फ

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो लोग उसमें लीन हो जाते थे. कुछ ऐसा ही बिहार के वैशाली में देखने को मिल रहा है. वैसे तो अशोक कुमार सिंह (Ashok Kumar Singh Of Vaishali) भगवान नहीं हैं पर उनकी बांसुरी की धुन सुनकर लोग खींचे चले आते हैं. पढ़ें रिपोर्ट और देखें वीडियो...

Ashok Kumar Singh of Vaishali plays flute with swimming
Ashok Kumar Singh of Vaishali plays flute with swimming
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Published : Jul 22, 2022, 8:06 PM IST

Updated : Jul 23, 2022, 6:56 AM IST

वैशाली: कोरोना काल में जब लोग बेरोजगारी की कगार पर पहुंच गए थे और हिम्मत हार कर मायूस हो चुके थे तब वैशाली के दाउदनगर के अशोक कुमार सिंह (Bihar Flute Player Ashok Kumar Singh) ने अपनी कला को निखारने में अपना सारा समय लगाया. कड़े प्रयास के बाद आज वे पानी में तैरकर (Plays Flute With Swimming) एक से बढ़कर एक धुन बजाते हैं. उनकी बांसुरी की सुरीली आवाज के कारण सोनपुर मेले में उन्हें अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका मिला. इतना ही नहीं उनकी बांसुरी ने उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान भी दिलाया है. आज सभी 59 साल के अशोक को बाबा कहते हैं.

पढ़ें- पढ़ाई का ऐसा जुनून और कहां: 2KM तक एक पैर से उछलते हुए स्कूल जाती है 11 साल की प्रियांशु कुमारी

तैरते हुए बजाते हैं बांसुरी: अशोक कुमार सिंह (Vaishali Inspirational Story) गंगा और नारायणी के संगम स्थल हाजीपुर की कोनहारा घाट स्थित नदी के पानी में तैरते हुए बांसुरी बजाते हैं, जिसकी धुन से लोग काफी आकर्षित हुए और फिर शहर के त्रिमूर्ति चौक स्थित बजरंगबली मंदिर में उन्हें हनुमान चालीसा की धुन बांसुरी से निकालने को कहा गया. जहां काफी संख्या में लोग उनके बांसुरी वादन को सुनने आने लगे. साथ ही इनके चाहने वाले नदी में स्नान करते हुए बासुरी बादन का लुत्फ लेते थे.

अशोक की बांसुरी की धुन मथुरा में भी गूंजी: अशोक की काबलियत और मेहनत का ही नतीजा है कि अब लगातार कई प्रोग्राम में उन्हें अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है. इन दिनों अशोक कुमार मथुरा में अपने भक्तिमय बांसुरी वादन की प्रस्तुति कर रहे हैं. जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो रही है.

मिल चुके हैं कई पुरस्कार व सम्मान: तभी तत्कालीन वैशाली जिलाधिकारी उदिता सिंह ने रास्ते से जाते समय अशोक कुमार सिंह के बांसुरी वादन को सुना और उन्होंने अगले दिन उन्हें ऑफिस बुलाकर सम्मानित किया. साथ ही 26 जनवरी के कार्यक्रम में भी उन्हें शामिल किया गया. इतना ही नहीं इसके बाद सोनपुर मेला के सरकारी मंच से अशोक कुमार सिंह को बांसुरी वादन का मौका मिला और यहां से उनकी किस्मत बदल गई.

वैशाली के बांसुरी वादक का सफर नहीं था आसान : बांसुरी वादक अशोक कुमार सिंह की सफलता की कहानी संघर्षों से भरी है. विकट परिस्थितियों में भी मुस्कुराते रहने वाले बाबा ने अपना एक अगल मुकाम बना लिया है. रिटायर होने की उम्र अशोक का संघर्ष शुरू हुआ था. अशोक कुमार सिंह हाजीपुर कचहरी में टाइप राइटिंग का काम करते थे. जिससे इनकी पत्नी इनके तीन बेटे और एक बेटी का भरण पोषण होता था, लेकिन कोविड-19 के संकटकाल में इनका काम बंद हो गया.

कोरोनाकाल में परिवार के सामने भूखों मरने की नौबत: काम बंद होने के बाद अशोक कुमार सिंह की स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि घर में राशन तक नहीं था. परिवार के लोगों की जरूरतें पूरी करने में 59 वर्षीय बुजुर्ग अशोक खुदको असमर्थ पा रहे थे. ऐसे में डिप्रेशन की ओर जा रहे अशोक कुमार सिंह को कबाड़ से एक लोहे का करीब डेढ़ फीट लंबा पाइप मिला. जिसमें किसी तरह सुराग कर उसे अशोक कुमार सिंह ने बांसुरी बना लिया और फिर उसकी धुन को बिखेर कर अपने गमों को कम करने का प्रयास करने लगे.

बोले लोग- 'बांसुरी धुन सुन भूल जाते हैं सब': अशोक कुमार सिंह ने बताया कि कबाड़ से निकाले गए लोहे के पाइप से बांसुरी बनाकर उन्होंने बजाना शुरू किया. उनको लगा कि जब वह पानी में स्थिर रहकर तैराकी कर सकते हैं तो बांसुरी भी बजा सकते हैं. फिर उन्होंने ऐसा ही किया और लोगों ने इसकी काफी तारीफ की. जिसके बाद उन्हें कई कार्यक्रमों में बांसुरी वादन का मौका मिला. बच्चों को और अन्य लोगों को भी संगीत कला सिखाने में लगे हैं. वहीं स्थानीय भी उनकी इस कला का जमकर तारीफ कर रहे हैं.

"जीवन यापन के लिए कचहरी में टाइपिंग करते थे. लॉक डाउन में काम छूट गया और कोई काम नहीं सुझा तो कबाड़ से निकाले गए लोहे के पाइप से बांसुरी बनाकर बजाना शुरू किया. लगा कि जब पानी में स्थिर रहकर तैराकी कर सकते हैं तो बांसुरी भी बजा सकते हैं. फिर ऐसा ही किया और लोगों ने इसकी काफी तारीफ की. जिसके बाद कई कार्यक्रमों में बांसुरी वादन का मौका मिला. बच्चों को और अन्य लोगों को संगीत कला सीखाने में लगे हैं" - अशोक कुमार सिंह, बांसुरी वादक

"जो भी गाना कहिएगा उसको बाबा बजा देते हैं. तैरते हुए बजाते हैं तो लगता है खुशी से बेहोश हो जाएंगे. गंगा जी में नहाते हुए सुनना बहुत अच्छा लगता है. इनका जवाब नहीं है" - संतोष कुमार, स्थानीय

"देखने पर आश्चर्य लगता है. बांसुरी बजाते हैं तो लगता है मथुरा आ गए हैं. पानी में तैरते हुए बांसुरी बजाना बहुत अच्छा लगता है."- सचिन कुमार, स्थानीय

"इंसान डिप्रेशन में या परेशानियों में चला जाता है तो ऐसी स्थिति में उसके अचेतन मन की बातें कभी कभी सामने आ जाती है और वह चेतन मन में सक्रिय हो जाता है. बांसुरी वादन अशोक कुमार सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. वह चंद उन खुशकिस्मत इंसानों में है जिनको डिप्रेशन की वजह से फायदा पहुंचा. क्योंकि डिप्रेशन में जाने के बाद उनका चेतन मत पूरी तरह सक्रिय नहीं था. जब वह कबाड़ में से लोहे का पाइप निकालकर बांसुरी बनाए तो अचेतन मन में उनकी दबी हुई पुरानी इच्छा बांसुरी बजाने की इक्षा जागृत हो गई.. जिसने उनको संतुष्टि प्रदान किया और वह न सिर्फ डिप्रेशन से बाहर आए बल्कि बांसुरी बजाने के क्षेत्र में उम्दा प्रदर्शन भी किया. अगर ऐसा नहीं होता तो हो सकता था कि वह परेशानियों के दौर से गुजरते. उनकी पुरानी इच्छा बांसुरी बजाने की रही होगी, जिसे वह पूरा नहीं कर पाए होंगे. लॉकडाउन में जब वह परेशान हुए और डिप्रेशन में गए तो अचेतन मन में दबी यह बात सामने आ गई. जैसे ही उन्होंने बांसुरी के स्वरूप जैसे लोहे के पाइप को देखा और उनकी पुरानी दबी इच्छा अचेतन मन के माध्यम से सामने आ गई और फिर बांसुरी बजा कर उन्होंने खुद को संतुष्ट किया. यह उनके लिए एक बेहद सुखद संयोग कहा जा सकता है"- प्रो. महजविंन खानम, एचओडी, मनोविज्ञान विभाग, जमुनी लाल कॉलेज, हाजीपुर

वैशाली: कोरोना काल में जब लोग बेरोजगारी की कगार पर पहुंच गए थे और हिम्मत हार कर मायूस हो चुके थे तब वैशाली के दाउदनगर के अशोक कुमार सिंह (Bihar Flute Player Ashok Kumar Singh) ने अपनी कला को निखारने में अपना सारा समय लगाया. कड़े प्रयास के बाद आज वे पानी में तैरकर (Plays Flute With Swimming) एक से बढ़कर एक धुन बजाते हैं. उनकी बांसुरी की सुरीली आवाज के कारण सोनपुर मेले में उन्हें अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका मिला. इतना ही नहीं उनकी बांसुरी ने उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान भी दिलाया है. आज सभी 59 साल के अशोक को बाबा कहते हैं.

पढ़ें- पढ़ाई का ऐसा जुनून और कहां: 2KM तक एक पैर से उछलते हुए स्कूल जाती है 11 साल की प्रियांशु कुमारी

तैरते हुए बजाते हैं बांसुरी: अशोक कुमार सिंह (Vaishali Inspirational Story) गंगा और नारायणी के संगम स्थल हाजीपुर की कोनहारा घाट स्थित नदी के पानी में तैरते हुए बांसुरी बजाते हैं, जिसकी धुन से लोग काफी आकर्षित हुए और फिर शहर के त्रिमूर्ति चौक स्थित बजरंगबली मंदिर में उन्हें हनुमान चालीसा की धुन बांसुरी से निकालने को कहा गया. जहां काफी संख्या में लोग उनके बांसुरी वादन को सुनने आने लगे. साथ ही इनके चाहने वाले नदी में स्नान करते हुए बासुरी बादन का लुत्फ लेते थे.

अशोक की बांसुरी की धुन मथुरा में भी गूंजी: अशोक की काबलियत और मेहनत का ही नतीजा है कि अब लगातार कई प्रोग्राम में उन्हें अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है. इन दिनों अशोक कुमार मथुरा में अपने भक्तिमय बांसुरी वादन की प्रस्तुति कर रहे हैं. जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो रही है.

मिल चुके हैं कई पुरस्कार व सम्मान: तभी तत्कालीन वैशाली जिलाधिकारी उदिता सिंह ने रास्ते से जाते समय अशोक कुमार सिंह के बांसुरी वादन को सुना और उन्होंने अगले दिन उन्हें ऑफिस बुलाकर सम्मानित किया. साथ ही 26 जनवरी के कार्यक्रम में भी उन्हें शामिल किया गया. इतना ही नहीं इसके बाद सोनपुर मेला के सरकारी मंच से अशोक कुमार सिंह को बांसुरी वादन का मौका मिला और यहां से उनकी किस्मत बदल गई.

वैशाली के बांसुरी वादक का सफर नहीं था आसान : बांसुरी वादक अशोक कुमार सिंह की सफलता की कहानी संघर्षों से भरी है. विकट परिस्थितियों में भी मुस्कुराते रहने वाले बाबा ने अपना एक अगल मुकाम बना लिया है. रिटायर होने की उम्र अशोक का संघर्ष शुरू हुआ था. अशोक कुमार सिंह हाजीपुर कचहरी में टाइप राइटिंग का काम करते थे. जिससे इनकी पत्नी इनके तीन बेटे और एक बेटी का भरण पोषण होता था, लेकिन कोविड-19 के संकटकाल में इनका काम बंद हो गया.

कोरोनाकाल में परिवार के सामने भूखों मरने की नौबत: काम बंद होने के बाद अशोक कुमार सिंह की स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि घर में राशन तक नहीं था. परिवार के लोगों की जरूरतें पूरी करने में 59 वर्षीय बुजुर्ग अशोक खुदको असमर्थ पा रहे थे. ऐसे में डिप्रेशन की ओर जा रहे अशोक कुमार सिंह को कबाड़ से एक लोहे का करीब डेढ़ फीट लंबा पाइप मिला. जिसमें किसी तरह सुराग कर उसे अशोक कुमार सिंह ने बांसुरी बना लिया और फिर उसकी धुन को बिखेर कर अपने गमों को कम करने का प्रयास करने लगे.

बोले लोग- 'बांसुरी धुन सुन भूल जाते हैं सब': अशोक कुमार सिंह ने बताया कि कबाड़ से निकाले गए लोहे के पाइप से बांसुरी बनाकर उन्होंने बजाना शुरू किया. उनको लगा कि जब वह पानी में स्थिर रहकर तैराकी कर सकते हैं तो बांसुरी भी बजा सकते हैं. फिर उन्होंने ऐसा ही किया और लोगों ने इसकी काफी तारीफ की. जिसके बाद उन्हें कई कार्यक्रमों में बांसुरी वादन का मौका मिला. बच्चों को और अन्य लोगों को भी संगीत कला सिखाने में लगे हैं. वहीं स्थानीय भी उनकी इस कला का जमकर तारीफ कर रहे हैं.

"जीवन यापन के लिए कचहरी में टाइपिंग करते थे. लॉक डाउन में काम छूट गया और कोई काम नहीं सुझा तो कबाड़ से निकाले गए लोहे के पाइप से बांसुरी बनाकर बजाना शुरू किया. लगा कि जब पानी में स्थिर रहकर तैराकी कर सकते हैं तो बांसुरी भी बजा सकते हैं. फिर ऐसा ही किया और लोगों ने इसकी काफी तारीफ की. जिसके बाद कई कार्यक्रमों में बांसुरी वादन का मौका मिला. बच्चों को और अन्य लोगों को संगीत कला सीखाने में लगे हैं" - अशोक कुमार सिंह, बांसुरी वादक

"जो भी गाना कहिएगा उसको बाबा बजा देते हैं. तैरते हुए बजाते हैं तो लगता है खुशी से बेहोश हो जाएंगे. गंगा जी में नहाते हुए सुनना बहुत अच्छा लगता है. इनका जवाब नहीं है" - संतोष कुमार, स्थानीय

"देखने पर आश्चर्य लगता है. बांसुरी बजाते हैं तो लगता है मथुरा आ गए हैं. पानी में तैरते हुए बांसुरी बजाना बहुत अच्छा लगता है."- सचिन कुमार, स्थानीय

"इंसान डिप्रेशन में या परेशानियों में चला जाता है तो ऐसी स्थिति में उसके अचेतन मन की बातें कभी कभी सामने आ जाती है और वह चेतन मन में सक्रिय हो जाता है. बांसुरी वादन अशोक कुमार सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. वह चंद उन खुशकिस्मत इंसानों में है जिनको डिप्रेशन की वजह से फायदा पहुंचा. क्योंकि डिप्रेशन में जाने के बाद उनका चेतन मत पूरी तरह सक्रिय नहीं था. जब वह कबाड़ में से लोहे का पाइप निकालकर बांसुरी बनाए तो अचेतन मन में उनकी दबी हुई पुरानी इच्छा बांसुरी बजाने की इक्षा जागृत हो गई.. जिसने उनको संतुष्टि प्रदान किया और वह न सिर्फ डिप्रेशन से बाहर आए बल्कि बांसुरी बजाने के क्षेत्र में उम्दा प्रदर्शन भी किया. अगर ऐसा नहीं होता तो हो सकता था कि वह परेशानियों के दौर से गुजरते. उनकी पुरानी इच्छा बांसुरी बजाने की रही होगी, जिसे वह पूरा नहीं कर पाए होंगे. लॉकडाउन में जब वह परेशान हुए और डिप्रेशन में गए तो अचेतन मन में दबी यह बात सामने आ गई. जैसे ही उन्होंने बांसुरी के स्वरूप जैसे लोहे के पाइप को देखा और उनकी पुरानी दबी इच्छा अचेतन मन के माध्यम से सामने आ गई और फिर बांसुरी बजा कर उन्होंने खुद को संतुष्ट किया. यह उनके लिए एक बेहद सुखद संयोग कहा जा सकता है"- प्रो. महजविंन खानम, एचओडी, मनोविज्ञान विभाग, जमुनी लाल कॉलेज, हाजीपुर

Last Updated : Jul 23, 2022, 6:56 AM IST
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