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सुपौल : सुहागिनों ने की वट सावित्री पूजा, पति की लंबी आयु की कामना

सुपौल में शुक्रवार को वट सावित्री पूजा की गई. इस दौरान महिलाओं ने पति की लंबी उम्र की कामना की. वहीं, लॉकडाउन के कारण कुछ महिलाओं ने अपने घर पर ही पूजा की.

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Published : May 22, 2020, 11:26 PM IST

सुपौल
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सुपौल: महिलाओं ने जिले भर में शुक्रवार को वट सावित्री की पूजा की. पति की दीर्घायु के लिये की जाने वाली इस पूजा के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये महिलाओं ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. वहीं, कुछ महिलाओं ने अपने घर पर ही वट सावित्री पूजा की.

छत पर पूजा करतीं महिलाएं
छत पर पूजा करतीं महिलाएं

इस दौरान महिलाओं ने वट वृक्ष में अखंड सुहाग के लिये रक्षा सूत्र बांधते हुए मंगलकामना की. पर्व को लेकर सुबह सवेरे से ही महिलाएं सोलह श्रृंगार कर विशेष परिधान में सज-धज कर वट वृक्ष के पास पूजा करने के लिये सड़कों पर निकल पड़ीं.

महिलाओं में पर्व को लेकर खासा उत्साह
मान्यता है कि वट सावित्री की पूजा से सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना पूरी होती है, जिसके लिये महिलाएं सुबह से ही अपने घर के आसपास वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना करती देखी गईं. वट सावित्री की पूजा में बांस से बनी टोकरी और पंखे का इस्तेमाल किया जाता है. व्रत के बाद सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में वट वृक्ष के नीचे पूजा करतीं श्रद्धालु
ग्रामीण क्षेत्रों में वट वृक्ष के नीचे पूजा करतीं श्रद्धालु

बरगद के पेड़ की पूजा का है विशेष प्रावधान
जानकारी अनुसार, वट सावित्री पर्व का हिंदु धर्म में कई मायनों में खास महत्व होता है. इसे सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु के लिये किया जाता है. इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करने का विशेष प्रावधान है. वहीं, इस पर्व में सती सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ी है. इसलिये इस पर्व को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है. पूजा के बाद महिलाएं अपने आवासीय परिसर में विशेष रूप से पूजा अर्चना कर सावित्री और सत्यवान की कथा पंडितों द्वारा सुनती है. वहीं, पूरा दिन उपवास कर अगले दिन सुबह में भोजन करती हैं. हालांकि, इसमें कई महिलाएं पूजा-अर्चना के बाद फलहार भी करती हैं.

पूजा-अर्चना करती महिला थानाध्यक्ष
पूजा-अर्चना करती महिला थानाध्यक्ष

सदियों से चली आ रही परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन सावित्री ने अपने ढृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाये थे. महिलांए भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण की रक्षा के लिये व्रत रखकर निष्ठापूर्वक विधी-विधान से पूजा करती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की विघ्नता उत्पन्न न हो. कहा जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती होने का वरदान देते हैं.

सुपौल: महिलाओं ने जिले भर में शुक्रवार को वट सावित्री की पूजा की. पति की दीर्घायु के लिये की जाने वाली इस पूजा के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये महिलाओं ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. वहीं, कुछ महिलाओं ने अपने घर पर ही वट सावित्री पूजा की.

छत पर पूजा करतीं महिलाएं
छत पर पूजा करतीं महिलाएं

इस दौरान महिलाओं ने वट वृक्ष में अखंड सुहाग के लिये रक्षा सूत्र बांधते हुए मंगलकामना की. पर्व को लेकर सुबह सवेरे से ही महिलाएं सोलह श्रृंगार कर विशेष परिधान में सज-धज कर वट वृक्ष के पास पूजा करने के लिये सड़कों पर निकल पड़ीं.

महिलाओं में पर्व को लेकर खासा उत्साह
मान्यता है कि वट सावित्री की पूजा से सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना पूरी होती है, जिसके लिये महिलाएं सुबह से ही अपने घर के आसपास वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना करती देखी गईं. वट सावित्री की पूजा में बांस से बनी टोकरी और पंखे का इस्तेमाल किया जाता है. व्रत के बाद सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में वट वृक्ष के नीचे पूजा करतीं श्रद्धालु
ग्रामीण क्षेत्रों में वट वृक्ष के नीचे पूजा करतीं श्रद्धालु

बरगद के पेड़ की पूजा का है विशेष प्रावधान
जानकारी अनुसार, वट सावित्री पर्व का हिंदु धर्म में कई मायनों में खास महत्व होता है. इसे सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु के लिये किया जाता है. इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करने का विशेष प्रावधान है. वहीं, इस पर्व में सती सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ी है. इसलिये इस पर्व को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है. पूजा के बाद महिलाएं अपने आवासीय परिसर में विशेष रूप से पूजा अर्चना कर सावित्री और सत्यवान की कथा पंडितों द्वारा सुनती है. वहीं, पूरा दिन उपवास कर अगले दिन सुबह में भोजन करती हैं. हालांकि, इसमें कई महिलाएं पूजा-अर्चना के बाद फलहार भी करती हैं.

पूजा-अर्चना करती महिला थानाध्यक्ष
पूजा-अर्चना करती महिला थानाध्यक्ष

सदियों से चली आ रही परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन सावित्री ने अपने ढृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाये थे. महिलांए भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण की रक्षा के लिये व्रत रखकर निष्ठापूर्वक विधी-विधान से पूजा करती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की विघ्नता उत्पन्न न हो. कहा जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती होने का वरदान देते हैं.

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