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सुपौल: भारत-नेपाल सीमा पर लगे कई पिलर गायब, नो मैंस लेंड की पहचान भी हुई मुश्किल - भारत नेपाल के बीच सीमांकन की समस्या

सुपौल में भारत-नेपाल बॉर्डर पर लगे कई पिलर अब नहीं दिख रहे हैं. जिसकी वजह से सीमांकन की समस्या पैदा हो गई है. अधिकारियों ने बताया कि नदी के कटाव में पिलर विलीन हो गए या कोशी नदी में बहकर भारी मात्रा में आने वाले सिल्ट के नीचे दब गए,

भारत नेपाल सीमा पर लगे कई पिलर गायब
भारत नेपाल सीमा पर लगे कई पिलर गायब
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Published : May 27, 2021, 10:59 PM IST

सुपौल: भारत-नेपाल की सीमा को सीमांकन करने वाली अधिकतर पिलर स्तम्भों के गायब रहने के कारण दोनों देश की सीमाओं के सीमांकन की समस्या को लेकर मुश्किलें पैदा हो रही है. भारत-नेपाल की सुपौल जिले से लगी 57 किलोमीटर खुली सीमा है. जिसमें 30 किलोमीटर के आसपास का भाग कोशी नदी से घिरा है. साल 2000 में जब नेपाल में राजतंत्र के खिलाफ माओवादी आंदोलन चरम पर था तो भारत नेपाल की खुली सीमा पर पहली बार एसएसबी 18 बटालियन को लगाया गया था. आज यहां सीमा की सुरक्षा के लिए एसएसबी 45वीं बटालियन की तैनाती केंद्र सरकार की ओर से की गई है.

एसएसबी जिम्मे है बॉर्डर की सुरक्षा
एसएसबी की 18 बीओपी इस खुली सीमा की सुरक्षा में दिन रात लगी है. इसमें बसमतिया, सात आना, फतेहपुर, शैलेशपुर, भीमनगर, रानीगंज, साहेवन, पिपराही, ढांढा, टेढ़ी बाजार, नरपतपट्टी, सिमरी घाट आदि बीओपी शामिल है, जो नदियों में बोट एवं सर्च लाइट के सहारे सीमा की सुरक्षा में लगे हैं. भारत-नेपाल सीमा के सीमांकन के लिए इन 57 किलोमीटर खुली सीमा में 96 पिलरों में 38 पिलर के गायब होने की बात कही जा रही है. लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि करने को कोई भी अधिकारी तैयार नहीं है.

ये भी पढ़ें- भारत-नेपाल सीमा पर नेपाली पुलिस के साथ झड़प में आठ भारतीय कारोबारी घायल

सीमांकन के लिए लगाए गए अधिकतर पिलर कोशी नदी के भीतर है. जिसमें से अधिकांश पिलर या तो नदी के कटाव में विलीन हो गए या कोशी नदी में बहकर भारी मात्रा में आने वाले सिल्ट के नीचे दब गए, जो अब दिखाई नहीं दे रहा है. कोशी नदी कटाव के लिए जानी जाती है और हर साल दिशा बदलती रहती है. परिणाम स्वरूप पिलर स्तम्भ एक-एक कर कटाव एवं सिल्ट के नीचे दब चुका है. सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर स्तम्भों के गायब रहने के कारण 08 से 19 किलोमीटर क्षेत्र में तटबंध के भीतर जो गांव डुमरी मिलिक, गोबर्गरहा, छतौनी, परसाही, चौदीप, टेढ़ी बाजार आदि गांव के लोगों को यह जानकारी नहीं है कि वह भारतीय प्रभाग में हैं या नेपाल प्रभाग में आवासित हैं. पिलर के गायब हो जाने के कारण उनके लिए सीमा निर्धारण कठिन हो चुका है. वहीं नेपाल के कई गांव भारतीय प्रभाग की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं.

नो मैंस लेंड की पहचान भी हुई मुश्किल
दोनों देशों के सीमा पिलर स्तम्भ संख्या के बीच में जो खाली जगह होता है, इसको नो मेंस लेंड कहा जाता है. इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि करने का अधिकार दोनों देशों में से किसी के पास नहीं होता है. पिलर स्तम्भ के गायब रहने से नो मेंस लेंड की पहचान भी मुश्किल हो गयी है. कभी-कभी इसको लेकर दोनों के बीच समस्या भी आन पड़ती है.

ये भी पढ़ें- भारत-नेपाल सीमा विवाद : नो मैंस लैंड में नेपाल ने की अतिक्रमण की कोशिश, भारत ने दी कड़ी चेतावनी

क्या कहते हैं सीओ
बसंतपुर सीओ विद्यानंद झा से जब भारत-नेपाल के सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर के गायब रहने और इस दिशा में किये जाने वाले सर्वे के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस संबंध में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है. बसंतपुर अंचल क्षेत्र अंतर्गत सीमा से गायब पिलरों के सर्वे के लिए सरकार की ओर से सर्वे शुरू किए जाने का निर्देश मिला है.

क्या कहते हैं कमांडेंट
भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी 45वीं बटालियन के कमांडेंट एचके गुप्ता से पूछा गया तो उनका कहना था कि कोशी नदी के क्षेत्र में दोनों देश की सीमा को चिन्हित करने वाली बड़ी संख्या में पिलर स्तम्भ नदी के कटाव एवं बालू के नीचे दब जाने के कारण गायब है. सर्वे ऑफ इंडिया की टीम इसकी जांच में लगी है.

सुपौल: भारत-नेपाल की सीमा को सीमांकन करने वाली अधिकतर पिलर स्तम्भों के गायब रहने के कारण दोनों देश की सीमाओं के सीमांकन की समस्या को लेकर मुश्किलें पैदा हो रही है. भारत-नेपाल की सुपौल जिले से लगी 57 किलोमीटर खुली सीमा है. जिसमें 30 किलोमीटर के आसपास का भाग कोशी नदी से घिरा है. साल 2000 में जब नेपाल में राजतंत्र के खिलाफ माओवादी आंदोलन चरम पर था तो भारत नेपाल की खुली सीमा पर पहली बार एसएसबी 18 बटालियन को लगाया गया था. आज यहां सीमा की सुरक्षा के लिए एसएसबी 45वीं बटालियन की तैनाती केंद्र सरकार की ओर से की गई है.

एसएसबी जिम्मे है बॉर्डर की सुरक्षा
एसएसबी की 18 बीओपी इस खुली सीमा की सुरक्षा में दिन रात लगी है. इसमें बसमतिया, सात आना, फतेहपुर, शैलेशपुर, भीमनगर, रानीगंज, साहेवन, पिपराही, ढांढा, टेढ़ी बाजार, नरपतपट्टी, सिमरी घाट आदि बीओपी शामिल है, जो नदियों में बोट एवं सर्च लाइट के सहारे सीमा की सुरक्षा में लगे हैं. भारत-नेपाल सीमा के सीमांकन के लिए इन 57 किलोमीटर खुली सीमा में 96 पिलरों में 38 पिलर के गायब होने की बात कही जा रही है. लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि करने को कोई भी अधिकारी तैयार नहीं है.

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सीमांकन के लिए लगाए गए अधिकतर पिलर कोशी नदी के भीतर है. जिसमें से अधिकांश पिलर या तो नदी के कटाव में विलीन हो गए या कोशी नदी में बहकर भारी मात्रा में आने वाले सिल्ट के नीचे दब गए, जो अब दिखाई नहीं दे रहा है. कोशी नदी कटाव के लिए जानी जाती है और हर साल दिशा बदलती रहती है. परिणाम स्वरूप पिलर स्तम्भ एक-एक कर कटाव एवं सिल्ट के नीचे दब चुका है. सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर स्तम्भों के गायब रहने के कारण 08 से 19 किलोमीटर क्षेत्र में तटबंध के भीतर जो गांव डुमरी मिलिक, गोबर्गरहा, छतौनी, परसाही, चौदीप, टेढ़ी बाजार आदि गांव के लोगों को यह जानकारी नहीं है कि वह भारतीय प्रभाग में हैं या नेपाल प्रभाग में आवासित हैं. पिलर के गायब हो जाने के कारण उनके लिए सीमा निर्धारण कठिन हो चुका है. वहीं नेपाल के कई गांव भारतीय प्रभाग की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं.

नो मैंस लेंड की पहचान भी हुई मुश्किल
दोनों देशों के सीमा पिलर स्तम्भ संख्या के बीच में जो खाली जगह होता है, इसको नो मेंस लेंड कहा जाता है. इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि करने का अधिकार दोनों देशों में से किसी के पास नहीं होता है. पिलर स्तम्भ के गायब रहने से नो मेंस लेंड की पहचान भी मुश्किल हो गयी है. कभी-कभी इसको लेकर दोनों के बीच समस्या भी आन पड़ती है.

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क्या कहते हैं सीओ
बसंतपुर सीओ विद्यानंद झा से जब भारत-नेपाल के सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर के गायब रहने और इस दिशा में किये जाने वाले सर्वे के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस संबंध में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है. बसंतपुर अंचल क्षेत्र अंतर्गत सीमा से गायब पिलरों के सर्वे के लिए सरकार की ओर से सर्वे शुरू किए जाने का निर्देश मिला है.

क्या कहते हैं कमांडेंट
भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी 45वीं बटालियन के कमांडेंट एचके गुप्ता से पूछा गया तो उनका कहना था कि कोशी नदी के क्षेत्र में दोनों देश की सीमा को चिन्हित करने वाली बड़ी संख्या में पिलर स्तम्भ नदी के कटाव एवं बालू के नीचे दब जाने के कारण गायब है. सर्वे ऑफ इंडिया की टीम इसकी जांच में लगी है.

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