सुपौल: बिहार के स्वास्थ्य मंत्री भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर सरकारी स्वास्थ्य महकमें को चुस्त दुरुस्त रहने की बात करते हो. लेकिन सुपौल में स्वास्थ्य महकमे को अब वेंटिलेटर पर रखने की जरूरी आ गई है. अंतिम सांस गिन रहे सुपौल के स्वास्थ्य महकमे में मातृत्व खतरे में है. दरअसल, जिले के त्रिवेणीगंज अस्पताल में नसबंदी कराने आयी महिलाओं को दिसंबर महीने के कड़ाके की ठंड में फर्श पर सोने को मजबूर होना पड़ रहा है.
जान खतरे में डाल रही हैं माताएं
दरअसल सराकारी लापरवाही का यह आलम त्रिवेणीगंज के सरकारी अनुमंडलीय अस्पताल से जुड़ा है. जहां सरकार के हम दो हमारे दो स्लोगन को बरकार रखने के लिए माताएं अपनी नसबंदी करा रही हैं. शनिवार को परिवार नियोजन के लिए पहुंची सैकड़ो महिलाओं को एक अदद बेड तक नसीब नहीं हुआ है. परिवार नियोजन के बाद इन महिलाओं को अस्पताल के फर्श पर सुलाया जाता है. वहीं, यही हालात जिले के लगभग हर प्राथमिक उपचार केन्द्र का है.
बेड का है अभाव
बताया जा है कि जिले के सभी अस्पतालों में बेड की कमी है. जिस कारण प्रसव पीड़िता सहित बंध्याकरण के बाद महिलाओं को भेड़- बकरी की तरह अस्पताल के फर्श पर सुला दिया जाता है. जहां कोरोना के गाइड लाइन का खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है. वहीं, कड़ाके के ठंड पड़ने से उनके जान को भी खतरा बना रहता है.
संसाधन का रोना रोते हैं चिकित्सक
ऑपरेशन के लिए आई सैकड़ो महिलाओं के परिजन बताते है कि बेड नहीं रहने की वजह से ये जमीन पर सोने को विवश है. वहीं डॉक्टर संसाधनों की कमी की बात कह अपने जिम्मेदारियों से पल्ले झाड़ लेते हैं.