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अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी मां वन देवी दुर्गा की पूजा, सालों भर उमड़ती है भक्तों की भीड़

पौराणिक कथा के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने सुपौल में मां वन देवी दुर्गा स्थान (Maa Van Devi Asthan in Supaul) की स्थापना की थी. इस स्थान पर पूरे साल भक्तों की भीड़ उमड़ती है. इस स्थान को लेकर कई मान्यताएं हैं. आगे पढ़ें पूरी खबर...

दुर्गा पूजा पर विशेष
दुर्गा पूजा पर विशेष
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Published : Oct 4, 2022, 1:55 PM IST

सुपौल: बिहार के सुपौल में जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर पूरब सुपौल-सिंहेश्वर मुख्य मार्ग में हरदी स्थित मां वन देवी दुर्गा स्थान (Maa Van Devi Asthan in Supaul) आम जनमानस में असीम आस्था और विश्वास का केंद्र है. यहां स्थापित मां दुर्गा को सिद्धपीठ माना जाता है. जो भक्त यहां सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने आते है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है. यहां मंगलवार और शुक्रवार को विशेष पूजा की महत्ता है. यहां सालों भर छाग की बलि दी जाती है.

पढ़ें-नवमी के दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है पूजा, जानें इसका महत्व


पिंड रूप में मौजूद हैं मां दुर्गा: वन देवी दुर्गा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. यही वजह है कि मंदिर में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. दुर्गा पूजा के मौके पर यहां विशेष तौर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. हरदी दुर्गा स्थान में माता का पिंड रूप मौजूद है. वर्षों से माता बेर के पेड़ों के बीच रहती आयी हैं. यही वजह है कि उन्हें वन देवी की संज्ञा दी गई है. श्रद्धालुओं द्वारा वर्षों से उक्त स्थल पर मंदिर बनाने का प्रयास किया जाता रहा लेकिन मंदिर का निर्माण सफल नहीं हुआ.

वन देवी को पसंद है खुले आसमान के नीचे रहना: धारणा है कि माता को यहां खुले आसमान और बेर के पेड़ों के नीचे रहने की इच्छा थी. लिहाजा मंदिर का निर्माण सफल नहीं हो पा रहा था. हाल के वर्षों में श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर निर्माण हेतु माता की विशेष पूजा और मन्नतें की गई. जिसके बाद जून 2014 में ग्रामीणों द्वारा बेर के पेड़ के नीचे स्थापित पिंड रूपी मां दुर्गा की लगातार दो दिनों तक पूजा करने के बाद मां वन देवी मंदिर में रहने को तैयार हुई. ग्रामीणों द्वारा आपसी सहयोग से पांच मंजिले मंदिर का निर्माण किया गया है.

वीर लौरिक ने की थी माता की पूजा-अर्चना: पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान विराटनगर जाने के क्रम में विश्रामावधि में पांडवों द्वारा हरदी में मां वन दुर्गा की स्थापना कर पूजा-अर्चना की गई थी. लोगों का यह भी मानना है कि महान योद्धा वीर लौरिक उत्तर प्रदेश के गौरा गांव से पांचवीं शताब्दी में हरदी गांव आया था. यहां के राजा महबैर अपने प्रजा के साथ अत्याचार और जुल्म किया करते थे. राजा महबैर के आतंक से निजात दिलाने के फैसले के साथ ही वीर लौरिक यहीं रह गये थे. उसी समय मां वन दुर्गा के परम उपासक वीर लौरिक ने उपासना के लिए हरदी में मां भगवती की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी.

पढ़ें-पटना के गर्दनीबाग कालीबाड़ी मंदिर में मां दुर्गा का पट खुला, मंदिर में लगी भक्तों की भीड़

सुपौल: बिहार के सुपौल में जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर पूरब सुपौल-सिंहेश्वर मुख्य मार्ग में हरदी स्थित मां वन देवी दुर्गा स्थान (Maa Van Devi Asthan in Supaul) आम जनमानस में असीम आस्था और विश्वास का केंद्र है. यहां स्थापित मां दुर्गा को सिद्धपीठ माना जाता है. जो भक्त यहां सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने आते है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है. यहां मंगलवार और शुक्रवार को विशेष पूजा की महत्ता है. यहां सालों भर छाग की बलि दी जाती है.

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पिंड रूप में मौजूद हैं मां दुर्गा: वन देवी दुर्गा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. यही वजह है कि मंदिर में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. दुर्गा पूजा के मौके पर यहां विशेष तौर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. हरदी दुर्गा स्थान में माता का पिंड रूप मौजूद है. वर्षों से माता बेर के पेड़ों के बीच रहती आयी हैं. यही वजह है कि उन्हें वन देवी की संज्ञा दी गई है. श्रद्धालुओं द्वारा वर्षों से उक्त स्थल पर मंदिर बनाने का प्रयास किया जाता रहा लेकिन मंदिर का निर्माण सफल नहीं हुआ.

वन देवी को पसंद है खुले आसमान के नीचे रहना: धारणा है कि माता को यहां खुले आसमान और बेर के पेड़ों के नीचे रहने की इच्छा थी. लिहाजा मंदिर का निर्माण सफल नहीं हो पा रहा था. हाल के वर्षों में श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर निर्माण हेतु माता की विशेष पूजा और मन्नतें की गई. जिसके बाद जून 2014 में ग्रामीणों द्वारा बेर के पेड़ के नीचे स्थापित पिंड रूपी मां दुर्गा की लगातार दो दिनों तक पूजा करने के बाद मां वन देवी मंदिर में रहने को तैयार हुई. ग्रामीणों द्वारा आपसी सहयोग से पांच मंजिले मंदिर का निर्माण किया गया है.

वीर लौरिक ने की थी माता की पूजा-अर्चना: पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान विराटनगर जाने के क्रम में विश्रामावधि में पांडवों द्वारा हरदी में मां वन दुर्गा की स्थापना कर पूजा-अर्चना की गई थी. लोगों का यह भी मानना है कि महान योद्धा वीर लौरिक उत्तर प्रदेश के गौरा गांव से पांचवीं शताब्दी में हरदी गांव आया था. यहां के राजा महबैर अपने प्रजा के साथ अत्याचार और जुल्म किया करते थे. राजा महबैर के आतंक से निजात दिलाने के फैसले के साथ ही वीर लौरिक यहीं रह गये थे. उसी समय मां वन दुर्गा के परम उपासक वीर लौरिक ने उपासना के लिए हरदी में मां भगवती की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी.

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