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सुपौल: 6 महीने बाद जिंदा लौटी महिला, कोर्ट ने पुलिस पर लगाया 6 लाख का जुर्माना - woman returned alive

जिंदा पत्नी की हत्या में पुलिस ने पति और उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. महिला 6 महीने बाद जिंदा लौट आई. जिसके बाद कोर्ट ने पुलिस के कार्यशैली पर सवाल खड़ा किए हैं.

Supaul
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Published : Jan 14, 2020, 11:59 PM IST

Updated : Jan 15, 2020, 4:17 PM IST

सुपौल: बिहार पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई है. जिस महिला की हत्या के आरोप में पुलिस ने पति समेत पूरे परिवार को जेल भेज दिया था. वह महिला 6 महीने बाद जिंदा ससुराल लौट आई. जिसके बाद कोर्ट ने बिहार पुलिस के जांच पर सवाल उठाए हैं. साथ ही कोर्ट ने बिहार पुलिस को 6 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देने का भी आदेश दिया है.

क्या है पूरा मामला
स्थानीय लोगों के मुताबिक सोनिया देवी अपने ससुराल से 24 मई 2018 को मायके जाने के लिए निकली थी. उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल पाया. दो दिनों के बाद पुलिस को एक अज्ञात लाश मिली. जिसके बाद पुलिस ने हत्या के आरोप में उसके पति रंजीत, ससुर विशुन देव पासवान और सास गीता देवी पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया और गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

found alive
बिहार पुलिस के गलत जांच का शिकार हुआ परिवार

पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
इस मामले में कोर्ट ने बिहार पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस कार्य के लिए सुपौल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं. कोर्ट ने कहा कि मामले की सही से जांच नहीं की गई. यह बिहार पुलिस की शर्मनाक करतूत है. कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह घटना बिल्कुल हास्यास्पद और कानून की नजर में मजाक बन गई है. जो जीवित है. जांच अधिकारी ने उसकी मृत्यु का आरोप पत्र कोर्ट में दायर किया है.

6 महीने बाद जिंदा लौटी महिला

गरीब का सहारा बना आरटीआई कार्यकर्ता
रंजीत के परिवार की गरीबी को देखकर आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह ने उसे न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया. कोर्ट में न्यायिक लड़ाई लड़ी. लगभग डेढ साल चली लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट ने पीड़ित रंजीत, उसके पिता और मां को हत्या के इस फर्जी मामले में दोष मुक्त करते हुए बरी कर दिया. आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि वो दोषी पुलिस अधिकारी पर कारवाई के लिए इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करेंगे.

सुपौल: बिहार पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई है. जिस महिला की हत्या के आरोप में पुलिस ने पति समेत पूरे परिवार को जेल भेज दिया था. वह महिला 6 महीने बाद जिंदा ससुराल लौट आई. जिसके बाद कोर्ट ने बिहार पुलिस के जांच पर सवाल उठाए हैं. साथ ही कोर्ट ने बिहार पुलिस को 6 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देने का भी आदेश दिया है.

क्या है पूरा मामला
स्थानीय लोगों के मुताबिक सोनिया देवी अपने ससुराल से 24 मई 2018 को मायके जाने के लिए निकली थी. उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल पाया. दो दिनों के बाद पुलिस को एक अज्ञात लाश मिली. जिसके बाद पुलिस ने हत्या के आरोप में उसके पति रंजीत, ससुर विशुन देव पासवान और सास गीता देवी पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया और गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

found alive
बिहार पुलिस के गलत जांच का शिकार हुआ परिवार

पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
इस मामले में कोर्ट ने बिहार पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस कार्य के लिए सुपौल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं. कोर्ट ने कहा कि मामले की सही से जांच नहीं की गई. यह बिहार पुलिस की शर्मनाक करतूत है. कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह घटना बिल्कुल हास्यास्पद और कानून की नजर में मजाक बन गई है. जो जीवित है. जांच अधिकारी ने उसकी मृत्यु का आरोप पत्र कोर्ट में दायर किया है.

6 महीने बाद जिंदा लौटी महिला

गरीब का सहारा बना आरटीआई कार्यकर्ता
रंजीत के परिवार की गरीबी को देखकर आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह ने उसे न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया. कोर्ट में न्यायिक लड़ाई लड़ी. लगभग डेढ साल चली लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट ने पीड़ित रंजीत, उसके पिता और मां को हत्या के इस फर्जी मामले में दोष मुक्त करते हुए बरी कर दिया. आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि वो दोषी पुलिस अधिकारी पर कारवाई के लिए इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करेंगे.

Intro:सुपौल: जिंदा पत्नी की हत्या के आरोप में जेल भेजे गये रंजीत पासवान एवं उसके परिवार के मामलें में न्यायालय द्वारा ऐतिहासिक फैसला दिया गया है. इस निर्णय ने बिहार पुलिस की जांच के तौर-तरीके की पोल खोल कर रख दी है. अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश तृतीय रवि रंजन मिश्र की अदालत ने सुपौल थाना कांड संख्या 310/2018 में निर्णय सुनाते हुए कांड के तीन अभियुक्त रंजीत पासवान, विशुनदेव पासवान एवं गीता देवी को हत्या के आरोप से दोष मुक्त कर दिया तथा अभियुक्त गण के परिवार को प्रतिकर योजना के तहत कम से कम 06 लाख रुपये की राशि क्षतिपूर्ति मुआवजा के रुप में देने का आदेश दिया है.
Body:जिंदा पत्नी की हत्या मामले में जेल भेजे गये पीड़ितों के पक्ष में न्यायालय ने दिया ऐतिहासिक फैसला, अभियुक्तों को किया बरी, 06 लाख रूपये क्षति-पूर्ति देने का आदेश, पुलिस की कार्यप्रणाली पर खड़े किये सवाल
अनुसंधानकर्ता की वजह से एक हत्या का वाद जिसका अनुसंधान नहीं हो सका

कोर्ट ने कहा है कि यह घटना बिल्कुल हास्यास्पद एवं कानून की नजर में मजाक सा बन गया है कि जो व्यक्ति जिंदा है उसके संदर्भ में अनुसंधानकर्ता ने उसकी मृत्यु का आरोप पत्र न्यायालय में समर्पित किया. इससे प्रतीत होता है कि बिहार पुलिस जिस केस में अनुसंधान करती है, वह सिर्फ उसका टेबुल रिपोर्ट है. इस वाद में नामित अभियुक्तगण का साढे पांच महीने का न्यायिक हिरासत अवैध माना जायेगा. कोर्ट ने कहा है कि अनुसंधानकर्ता के लापरवाही के कारण आरोप पत्र बिल्कुल त्रुटिपुर्ण लापरवाही पूर्वक एवं अनुसंधानकर्ता के अयोग्यता और अक्षमता कर्तव्य के प्रति लापरवाही और उदासीनता का सूचक है. कोर्ट ने यह भी अंकित किया है कि अनुसंधानकर्ता की वजह से एक हत्या का वाद जिसका अनुसंधान नहीं हो सका, वह खुद ही समाप्त हो गया. अनुसंधानकर्ता के अक्षमता एवं अयोग्यता के कारण एक केस का प्राथमिकी तक दर्ज नही हो सका. यह बिहार पुलिस के लिए काला धब्बा औऱ शर्मनाक विषय है.
क्या है मामला
दरअसल, 2018 में राघोपुर थाना क्षेत्र के बेरदह निवासी रंजीत पासवान की पत्नी सोनिया देवी 24 मई 2018 को ससुराल से मायके जाने के क्रम मे मानव तस्कर गिरोह के चंगुल में फंस गयी .रंजीत पासवान ने इस बाबत राघोपुर थाना में अपनी पत्नी के गायब होने की सूचना दी. इधऱ सुपौल थाना इलाके के तेलवा के पास 26 मई 2018 को मूंग के खेत में एक अज्ञात लाश मिली. जिसके बाद सुपौल थाना के चौकीदार सियाराम पासवान के बयान पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया. सुपौल पुलिस ने थाना कांड संख्या 310/2018 दर्ज कर अनुसंधान प्रारंभ किया. सुपौल पुलिस ने वैज्ञानिक अनुसंधान कर महज 48 घंटे के भीतर ही उसे रंजीत पासवान की पत्नी सोनिया की लाश मानकर हत्या की गुत्थी को सुलझाते 28 मई राघोपुर थाना के बेरदह से रंजीत पासवान, उसके पिता विशुनदेव पासवान और उसकी मां गीता देवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने अज्ञात लाश को सोनिया की लाश मानकर उसके माता-पिता को सौंप कर हिन्दु रीति-रिवाज के तहत सारी प्रक्रिया भी पूरी कर दी. केस के आईओ ने हत्या के आरोप में रंजीत औऱ उसके माता-पिता के विरुद्ध आरोप पत्र गठित कर कोर्ट में समर्पित कर दिया. 05 महीने 20 दिन जेल में रहने के बाद रंजीत के परिवार वालों को हाईकोर्ट एवं जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत से जमानत मिला. इस बीच कांड के अनुसंधान कर्ता शेष फरार अभियुक्तों की गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी करती रही.
जिंदा पहुंची सोनिया
इसी बीच मानव तस्कर गिरोह के चंगुल से निकल कर सोनिया 21 नवंबर 2018 को सुपौल थाने पहुंची. पुलिस सोनिया को लेकर कोर्ट पहुंची और उसका 164 का बयान दर्ज कराकर मामले इति श्री कर लिया. जिसके बाद सुपौल पुलिस औऱ राघोपुर पुलिस ने ना तो सोनिया के गायब होने की कोई जांच की और ना ही वो लाश किसकी थी, उसका कोई प्राथमिकी दर्ज किया. Conclusion:आरटीआई कार्यकर्ता ने पीड़ित की लड़ी लड़ाई
अब जेल जा चुके रंजीत के परिवार की गरीबी को देखकर आरटीआई कार्यकर्ता कुमार सिंह ने उसे न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया और कोर्ट में न्यायिक लड़ाई लड़ी. लगभग डेढ साल की लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट ने पीड़ित रंजीत, उसके पिता और माता को हत्या के इस फर्जी मामलें में दोष मुक्त करते हुए बरी कर दिया. आर टी आई कार्यकर्ता ने कहा कि अब वह इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय जाकर दोषी पुलिस पदाधिकारी पर करवाई की मांग करेंगे. जिससे भविष्य में पुलिस द्वारा इस प्रकार की घटना की पुरणावृति ना हो सके.
पीड़ित परिवार ने जतायी खुशी
न्यायालय का फैसला आने के बाद सोनिया देवी के पति, सास एवं ससुर ने खुशी जाहिर किया है. कहा कि उन दोषी पुलिस कर्मियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने इस मामले में लापरवाही दिखाई.
बाइट- रंजीत पासवान,
बाइट- सोनिया देवी
बाइट- गीता देवी
बाइट- अनिल कुमार सिंह, आरटीआई कार्यकर्ता
बाइट- राजकुमार सिंह, वकील बचाव पक्ष
नोट- सर पीटीसी मोजो से भेजे हैं
Last Updated : Jan 15, 2020, 4:17 PM IST
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