सुपौल: पूरी दुनिया के साथ-साथ देश जब आज कोरोना वायरस से जूझ रहा है तो ऐसे में कुछ सुखद खबरें सुकून पहुंचा रही हैं. अब समाज भी बेटा और बेटी के फर्क को मिटाने में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है. जिले की बेटी योग्यता ने कर्मकांड और लॉक डाउन के बीच सामाजिक ताने-बाने की परिभाषा बदल दी है.
बेटी ने किया पिता का अंतिम संस्कार
नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर दस निवासी समाजसेवी अश्विनी कुमार सिन्हा के निधन बाद उनकी बेटी योग्यता ने उन्हे मुखाग्नि दी. देहरादून में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही योग्यता को पिता के निधन बाद वहां के डीएम ने घर जाने में मदद की. लॉकडाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सामाजिक और पारिवारिक दोनो जिम्मेदारियों का पालन करते हुए बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. पिता के निधन से दुखी योग्यता ने कहा कि उनकी इच्छा पूरी करने और पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने में कसर नहीं रखेगी. इस जिम्मेदारी को पूरा करने में कोरोना वायरस के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान समस्या तो आई पर उन परेशानियों को दूर करने में समाज ने भी काफी मदद की.
'बेटा और बेटी में कोई फर्क नही रहा'
योग्यता के चाचा नलिन जायसवाल बताते हैं कि 17 अप्रैल को जब योग्यता के पिता का निधन हुआ तो वह देहरादून में थी और देश में लॉकडाउन था. तीन बहनों में योग्यता रिया और आकांक्षा से बड़ी है इसलिए उसका घर आना जरूरी था. स्थानीय जिलाधिकारी से गुहार लगाने के बाद उन्होंने गाड़ी और गार्ड की व्यवस्था कर दी. 18 अप्रैल की देर रात दो बजे वह घर पहुंची और 19 अप्रैल को अंतिम संस्कार हुआ. नलिन जयसवाल बताते है कि अब देश बदल रहा है और लोगों की सोच भी.अब तो बेटा औऱ बेटी में कोई फर्क नही है