सिवान: आज पूरा देश आजादी का 76वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस आजादी के लिए हजारों वीरांगनाओं और वीर पुरूषों ने अपनी जान न्यौछावर की है, जिनकी वीर गथाएं आज भी लोगों की जुबान पर हैं. इनमें से एक हैं स्वतंत्रता सेनानी फुलेना बाबू (Freedom Fighter Phulena Babu) और उनकी पत्नी तारा देवी. जिन्होंने पति के शहीद होने के बाद सिवान के महराजगंज थाना में देश का झंडा फहराया और बाद में पूरी जिंदगी अंग्रेजों की मुखालफत में खड़ी रहीं.
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पति के साथ मिलकर लड़ी देश के लिए जंगः सिवान जिले के महाराजगंज अनुमंडल के रहने वाले फुलेना बाबू का जन्म नौतन थाना क्षेत्र के पचलखी गांव में हुआ था. जब उनकी शादी महाराजगंज थाना क्षेत्र के बाल मंगरा गांव में हुई तो वह अपने ससुराल में ही बस गए थे. बाद में पत्नी तारा देवी के साथ मिलकर देश की आजादी के आंदोलन में वो सक्रिय हुए. फुलेना बाबू अपनी एक टीम बनाकर मीटिंग करते हुए आजादी के लिए जोश भरा करते थे. उनकी पत्नी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर हमेशा साथ रहीं, जिसकी वजह से फुलेना बाबू लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए.
8 गोलियां लगीं फिर भी डटे रहे फुलेना बाबू: 16 अगस्त 1942 को गांधी जी ने नारा दिया अंग्रेजों भारत छोड़ो, तो इस आंदोलन में फूलेना बाबू सक्रिय हो गए और सबसे पहले उन्होंने महाराजगंज स्थित पोस्ट ऑफिस को अपने साथियों के साथ जाकर आग लगा दी, फिर थाने पर तिरंगा फहराने के लिए पहुंच गए. लेकिन जैसे ही वो आगे बढ़े अंग्रेजों की तरफ से ताबड़तोड़ गोलियां दागी जाने लगीं, जिसमें फुलेना बाबू को 8 गोली लगी थी, तब भी वह झंडा फहराने के लिए आगे बढ़ते रहे. लेकिन जब 9वीं गोली सीने में लगी तो फुलेना बाबू वहीं गिर गए, तभी उनकी पत्नी तारा देवी ने झंडा संभाला और थाने में जाकर तिरंगा झंडा फहराया.
संतान का सपना रह गया अधूराः बताया जाता है कि तारा देवी को भी हाथ में गोली लगी थी, जब झंडा फहराकर वो वापस आईं तो देखा की गोली लगने से फुलेना बाबू घायल हो गए हैं. उन्होंने उनको उठाया तब फुलेना बाबू ने अपनी पत्नी की गोद मे अंतिम सांस लेते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया और वह शहीद हो गए. जब फुलेना बाबू शहीद हो गए तो तारा देवी ने उसी एक कमरे में अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी, जहां फुलेना बाबू का शव रखा गया था. उसी कमरे में उनका निधन हो गया. यही नहीं तारा देवी ने यह कसम खायी थी कि संतान आजाद मुल्क में ही जन्म दूंगी, लेकिन यह सपना उनका अधूरा रह गया.
"1942 में अजादी की लड़ाई छिड़ी हुई थी फुलेना बाबू ने उस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. उनकी पत्नी तारा देवी ने भी उस आंदोलन में उनका साथ दिया. अंग्रेजों के खिलाफ रैलियां निकाली. पोस्ट ऑफिस जलाए थाना जलाया. इसी दौरान सीने पर 9 गोलियां खाईं और उसके बाद शहीद हो गए. वो बहुत दिलेर और ताकतवर थे. आज उनको पूछने वाला कोई नहीं है. सरकार ने आज तक उनकी स्मृति में कुछ नहीं किया. नई पिढ़ी तो उनको भूलती ही जा रही है"- स्थानीय बुजुर्ग
सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे फुलेना बाबू: आज उनका मकान काफी ज्यादा जर्जर स्थिति में है. घर और खानदान के कोई लोग नहीं हैं, जो लोग यहां पर पहले थे वह भी बाहर जा चुके हैं, लेकिन इस खंडहर बने घर पर ना ही सरकार ने ध्यान दिया और ना ही किसी नेता ने, हालांकि अब गांव के लोगों ने खंडहर घर की साफ-सफाई कर शाहिद फुलेना बाबू और पत्नी की मूर्ति लगाई है. अब स्थानीय लोग उनके मकान और अन्य चीजों को यादगार के रूप में संजोग कर रखना चाहते हैं.
फुलेना बाबू को भूलती जा रही नई पीढ़ीः फुलेना बाबू गांव वालों का कहना है कि आज की नई पीढ़ी फुलेना बाबू को भूलती जा रही है, जिनकी याद को कायम रखने के लिए गांव वालों ने मिलजुल कर फूलेना बाबू और तारा देवी का मूर्ति लगाई है. वहीं सरकार से मदद की अपील भी की गई है कि फुलेना बाबू और तारा देवी ने जिस तरह जान की परवाह किये बिना देश को आजाद कराने का जज्बा था, उनकी याद और उनकी स्मृति को बचाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी उन्हें याद रखे.