सिवान : जन सुराज पदयात्रा के दौरान सिवान जिले के गोरेयाकोठी में जनता को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि बहुत लोगों को लगता है प्रशांत किशोर सरकार में आना चाहते हैं. अगर मुझे सरकार में आना होता तो इसके लिए मुझे पैदल चलने की कोई जरूरत नहीं थी. एक फोन करने पर सरकार में आ जाएंगे. उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार में जाना होगा तो कल ही सरकार में आ जाएंगे.
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''अभी नीतीश कुमार की नाव डगमग रही है, बेचारे रोज मुझे बोलते हैं, कैसे भी मदद कीजिए. यह सरकार बनाने का अभियान नहीं है, यह व्यवस्था को बदलने का अभियान है. अगर बिहार को सुधारना है तो बिना समाज को जगाए हुए बिहार को नहीं सुधार सकते हैं, इसलिए सब कुछ दांव पर लगा कर अपना घर-परिवार और ऐशो-आराम छोड़कर यह काम करने निकले हैं. ताकि बिहार में एक नई व्यवस्था बनाई जा सके.''- प्रशांत किशोर, संयोजक, जन सुराज
बिहार में किसानों की बदहाली : इससे पहले प्रशांत किशोर ने कहा था कि देश में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पिछले 10 सालों में 11% सिंचित भूमि कम हो गई है. पदयात्रा के माध्यम से जिन-जिन क्षेत्रों में हम लोग घूम रहे हैं, उन क्षेत्रों में जल प्रबंधन को लेकर सरकार की जो नाकामी है साफ-साफ देखने को मिलती है. ज्यादातर लोग जो खेती करने वाले हैं उनको या तो बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है या सुखाड़ का सामना करना पड़ता है. साथ ही जलजमाव, नदियों का कटाव यह समस्या ऊपर से और जुड़ जाता है. जल प्रबंधन की कुव्यवस्था की वजह से किसानों की हालत और खराब है.
''जिस समय में हम पदयात्रा कर रहे हैं, यह वही समय है जब धान और गन्ने की कटाई हुई है. औसतन लोगों ने बताया कि धान 1200 सौ से 1500 रूपए क्विंटल के भाव से बिका है. जबकि धान का सरकारी समर्थन मूल्य 2050 रूपए है. पैक्स की व्यवस्था यहां है, पर मंडियों की कोई व्यवस्था यहां नहीं है. पैक्स के माध्यम से भी बड़े स्तर पर खरीदारी नहीं होती है. पिछले 10 वर्षों में बिहार में सिर्फ 13% धान समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है और गेहूं 1% खरीदा गया है. बिहार में समर्थन मूल्य पर फसल की खरीद ना होने की वजह से, इसका आर्थिक परिणाम यह हो रहा है कि हर साल बिहार के किसानों का 25 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.''- प्रशांत किशोर, संयोजक, जन सुराज