सिवान: बिहार के सिवान में रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी आज पूरे प्रदेश का नाम रोशन कर रहा है. इसमें दर्जनों ऐसी बच्चियों हैं, जिन्होंने कांस्य, रजत और स्वर्ण पदक जीतकर अपना दमखम दिखाया है. यह इलाका जिले के मैरवा प्रखंड के लक्ष्मीपुर गांव का है. यह एक बेहद ग्रामीण इलाका है, जहां पर रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी निशुल्क चलाया जाता है. किसी के पिता पंचर बनाते हैं तो किसी के पिता मजदूरी करते हैं. किसी खिलाड़ी के पिता सब्जी बेचने का काम करते हैं.
पिता बनाते हैं पंचर, बेटी ने जीता गोल्ड: आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से आने वाली ये लड़कियां आज बिहार ही नहीं देश का में भी नाम रोशन कर रही हैं. बता दें कि रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स क्लब एकेडमी से निकली बच्चियां आज बेहद कामयाब हैं. इसके संस्थापक पंकज कुमार ने बताया कि सुदन अंसारी की बेटी तारा खातून जिन्होंने अंडर-17 में सिल्वर मेडल जीता और आज भुवनेश्वर में रेलवे में नौकरी कर रही हैं. आज भी उनके पिता अपना पंचर बनाने का काम करते हैं.
"तारा खातून के पिता सुदन अंसारी तब भी पंचर बनाते थे और आज भी मैरवा के मुख्य सड़क पर पंचर की उनकी दुकान है. उनका एक छोटा भाई 8 साल का है और परिवार बिल्कुल नॉन मेट्रिक है लेकिन उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी में खेल का प्रशिक्षण लिया और अंडर 17 में मेडल अपने नाम किया."-संजय पठक, संस्थापक, रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स एकेडमी
यहां लड़कियों ने खेल से पाई पहचान: बता दें कि राधा कुमारी 2019 में गोल्ड मेडल जीत कर आई जिनके पिता नहीं थे. आज उनका अच्छे खिलाड़ियों में नाम शुमार है. अमृता कुमारी जिनके पिता सब्जी बेचते थे आज पटना सचिवालय में खेल कोटे से क्लर्क के पोस्ट पर तैनात है. ऐसी दर्जनों लड़कियां है जिन्होंने अच्छे खेल के साथ अच्छा प्रदर्शन किया. लड़कियां रानी लक्ष्मीबाई एकेडमी खेल कोटे से आज अच्छे-अच्छे पोस्ट पर पहुंच चुकी है. वहीं धर्मशिला कुमारी जो अंडर-19 में इंटरनेशनल लेवल पर खेलने गई और मेडल जीतने के बाद एसएसबी खेल कोटे से नौकरी कर रही है.
क्या कहती हैं यहां प्रशिक्षण लेने वाली खिलाड़ी: रानी लक्ष्मीबाई एकेडमी में प्रशिक्षण लेने वाली 12 वर्षीय गुल्ली कुमारी कहती हैं कि पिछले दो वर्ष से इस संस्थान के साथ जुड़ी हुई हैं. उनके पिता एक मजदूरी करके घर चलाते है. बहुत ही कम पढ़े लिखे होने के कारण उनके घर वाले इस खेल के प्रशिक्षण के लिए तैयार नहीं हो रहे थे. वो परेशान थे कि इसके लिए पैसा और ड्रेस कहां से आएगा लेकिन संस्थान के तरफ से भरोसा दिलाया गया. उनकी ओर से बताया गया कि सबकुछ मेनेजमेंट की तरफ से मिलता है. जिसके बाद उनके परिवार वाले इस प्रशिक्षण के लिए तौयार हो गए.