सिवान: मुस्लिम कैलेण्डर के अनुसार अरबी महीना शाबान की 15वीं तारीख की रात को शब-ए-बारात (Shab-E-Barat in bihar) कहा जाता है. इस मौके पर करोड़ों मुसलमान रात भर अपने घरों और मस्जिदों में इबादत करते हैं. शब-ए-बारात को इबादत का त्योहार भी कह सकते हैं. इस रात में मुसलमान अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की कब्रों पर जाकर उनके लिए दुआएं मांगते हैं. शब का मतलब- रात, बारात यानी जागना, इसे इबादत की रात भी कहा जाता है. इस वर्ष ये पर्व काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है क्योंकी इसके पहले दो वर्षों तक तो लॉकडाउन की वहज से लोग शब-ए-बारात नहीं मना पा रहे थे.
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शब-ए-बारात यानी इबादत की रात: गौरतलब है कि दो वर्ष बाद यह पहला ऐसा मौका है. जब खुल कर अपना-अपना त्योहार लोग मना रहे हैं. शब-ए-बारात की रात इबादत के साथ-साथ गरीब, यतीम, मिस्कीनों को खैरात वगैरह दिया जाता है. आपको बता दें कि ये शाबान का महीना चल रहा है. जिसमे शाबान के 15 तारिख की बहुत ही ज्यादा अहमीयत है. वैसे तो मजहबे इस्लाम में हर महीने अपने खुसीसीयत की लिहाज से एक मायनी रखता है. लेकिन 15 तारीख का मायना इसलिये ज्यादा हो जाता है कि इस तारीख़ को शब ए कदर की रात (शब-ए-बारात) जिसका मतलब इबादत की रात होता है. इसलिए इस रात में जग कर हर मुसलमान रात भर खुदा की इबादत करता है जिसमें अपने रब से अपने गुनाहों की महफिरत की दुआ मांगता है. हलवा, मलीदा फतेहा करते हैं. नमाज पढ़कर, अपने पूर्वजों को बख्शते हैं. और खुदा से उनके गुनाहों की मगफेरत की दुआ करते हैं.
शब ए कदर की रात क्या करना चाहिए : शब ए कदर की रात इस मुकद्दस रात के बारे में उलेमाओं का कहना है कि रात भर नमाज पढ़ना, कुरान शरीफ की तिलावत करना, दरूद व सलाम पढ़ना, दिन का रोज रखना, मजारों का ज़ियारत करना, पैगम्बर हजरत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहेवासल्लम ने फरमाया की अल्लाह पाक के हुकुम से फरिश्ते नीचे उतरते हैं. अल्लाह के बंदे जो इबादत में मशगूल रहते हैं. उनपर रहमतों की बारिश करते हैं. जिससे उनके गुनाहों की मगफिरत हो जाती है. और व पाकसाफ हो जाते हैं. क्योंकि अल्लाह पाक बड़ी ही रहमत वाले हैं. इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि कसरत से इस रात को इबादत करें और अपनी गुनाहों की माफी खुदा से मांगे. आगे भी किसी भी तरह में गुनाहों से बचें. ये शब-ए-बारात साल में एक बार आता है. कहा यह जाता है कि आज ही के रात दुआ कबुल होती है. बन्द ए मोमिन जो अपने रब से मांगता है. रब उसे नवाजते हैं.
हदीस की किताबों में है रात का बड़ा महत्व: शब-ए-बरात वास्तव में शबे बराअत है. शब पर्शियन भाषा है जिसका अर्थ रात होता है और बराअत अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ मुक्ति होता है. शबे बराअत का अर्थ हुआ मुक्ति वाली रात अथवा छुटकारे की रात. उन्होंने कहा कि हदीस की किताबों में इस रात का बड़ा महत्व वर्णन हुआ है. पैगम्बर मुहम्मद ने फरमाया यही वह रात है जिस रात को अल्लाह की तरफ से ऐलान होता है कि है कोई माफी चाहने वाला है उसको माफी मिलेगी. रोजी-रोटी चाहने वाले को उसको रोजी-रोटी दे दूं. कोई परेशान हाल और दुखी इंसान उसके दुख और पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. अल्लाह इस रात को सभी को माफ कर देता है. इस त्योहार के लिये बहुत सारी जगहों पर मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट की जाती है.
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