सीतामढ़ी: जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया मिथिला की विलुप्त होती परंपरा और संस्कृति को सहेजने में जुटी हैं. इसके लिए वह बीते 3 सालों से अभियान के माध्यम से जुटी हुई हैं. वहीं, जिले के लोग उनके इस कार्य की काफी प्रशंसा कर रहे हैं.
सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रितु जायसवाल मिथिलांचल की पुरानी लोक नृत्य परंपरा 'झिझिया' को देश और दुनिया में पहचान दिलाने के लिए काफी प्रयास कर रही हैं. वह नवरात्र के अवसर पर गांव की युवतियों के साथ मिलकर 'झिझिया' नृत्य को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं. साथ ही इस कार्यक्रम में शामिल होकर खुद नाच गाकर इस परंपरा और संस्कृति को जीवंत करने में जी तोड़ मेहनत कर रही हैं.
'देश में पहचान बनाए मिथिला की परंपरा'
महिला मुखिया का मानना है कि जिस प्रकार देश में नवरात्रि के अवसर पर गरबा और डांडिया की धूम मची रहती है. उसी प्रकार मिथिला की यह परंपरा पूरे देश में अपनी पहचान बनाए. उन्होंने बताया कि इसके लिए वह बीते 3 वर्षों से अभियान में जुटी हुई हैं. प्रत्येक वर्ष नवरात्र के अवसर पर इस लोक नृत्य को गाकर और दिखाकर लोगों का मन मोह रही हैं. उन्होंने कहा कि बिहार की नृत्य शैली 'झिझिया' शायद बहुत कम लोगों को पता होगी. उन्होंने बताया कि 'झिझिया' शारदीय नवरात्रा के नौ दिनों में डांडिया और गरबा की तरह किया जाने वाले नृत्य है. आज जहां बड़े-बड़े क्लबों में गरबा और डांडिया का आयोजन होता है. वहीं, 'झिझिया' को लेकर लोगों में झिझक है.
नृत्य शैली का पौराणिक महत्व
उन्होंने बताया कि इस नृत्य शैली का पौराणिक महत्व है. इसमें नृत्य करने वाली महिलाओं के घेरे के बीच में एक मुख्य नर्तिका सिर पर घड़ा लेकर खड़ी हो जाती है. घडे़ के ऊपर लगे ढक्कन पर एक दीपक जलता रहता है. 'झिझिया' नृत्य में महिलाओं के जरिए एक साथ ताली वादन, पग-चालन और थिरकने से जो समा बंधता है, वह बहुत ज्यादा आकर्षक लगता है. इस नृत्य में ब्रह्म बाबा और मां शक्ति का गुणगान किया जाता है. इसके साथ ही आसुरी शक्तियों पर विजय के लिए आराधना की जाती है. समाज में खुशहाली और सद्भाव के लिए गीत गाये जाते हैं. हालांकि ये नृत्य समाप्त होने की कगार पर है. जिसे जीवंत करने में महिला मुखिया रितु जायसवाल जुटी हैं.
झिझिया नृत्य की परंपरा पौराणिक है
रितु बताती हैं कि 'झिझिया' नृत्य की परंपरा पौराणिक है. ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य रामायण काल से होती आ रही है. पुरातन में राजा जनक की नगरी मिथलांचल में 'झिझिया' नृत्य शैली का काफी महत्व हुआ करता था. उन्होंने कहा कि आज यह नृत्यकला अपने समाज मे हीं उपेक्षित है. इसको जीवित रखने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ी इसे जाने. उन्होंने बताया कि दस दिनों तक 'झिझिया' खेलने के बाद कुंवारी लड़कियां दशमी के दिन 'झिझिया' पोखरा या नदी में डुबोकर गीत गाते हुए घर आती हैं.
सांसद ने की सराहना
सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू ने बताया कि मुखिया रितु जायसवाल के प्रयास से 'झिझिया' लोकनृत्य जीवंत करने का प्रयास किया जा रहा है. वह बेहद सराहनीय है. आज हमारे समाज से यह परंपरा लुप्त हो गई थी. जिसे पुनः जीवंत करके रितु जायसवाल एक मिसाल कायम कर रही हैं. जिस तरह अन्य प्रदेशों में डांडिया और गरबा की अपनी एक अलग पहचान है. ठीक उसी प्रकार हमारी इस पुरानी परंपरा की पहचान अगर मिले और कायम रहे तो यह बड़े गर्व की बात है.