सीतामढ़ी: कोरोना संक्रमण के बीच बाढ़ के कारण जिले में लोगों की मुसीबत दोगुनी हो गई है. सबसे अधिक परेशानी किसानों को झेलनी पड़ रही है. पहले ही बाढ़ के कारण सबकुछ डूब चुका है. अब बाढ़ प्रभावित किसान तीसरी बार कर्ज उधार लेकर अपनी खेतों में धान की रोपनी करने में जुटे हुए हैं.
पीड़ित किसानों का बताना है कि बाढ़ आने से पहले उन्होंने खेतों में धान की फसल लगाई थी. लेकिन 10 जुलाई को आई भीषण बाढ़ के कारण वह फसल डूब कर बर्बाद हो गई. इसके बाद नदी के जल स्तर में कमी आने के बाद दोबारा धान की रोपनी की गई. लेकिन फिर बाढ़ आ जाने के कारण वह फसल भी बर्बाद हो गई.
जलस्तर में कमी के बाद काम पर जुटे किसान
अब जब बाढ़ का पानी कम होना शुरू हुआ है तो कर्ज लेकर तीसरी बार अपनी खेतों में धान की रोपनी कर रहे हैं. ताकि परिवार का भरण-पोषण किया जा सके. पीड़ित किसानों का आरोप है कि धान की सिंचाई में अब तक जितना खर्च हो चुका है, उसकी भरपाई अनाज के उत्पादन से नहीं हो पाएगी. लेकिन भूख मिटाने की उम्मीद से तीसरी बार फसल लगाई जा रही है. ताकि जो कुछ भी उत्पादन होगा. उस अनाज से कुछ माह परिवार को खाना मिल पाएगा.
खत्म हो गया बिचड़ा
दो बार धान की रोपनी करने के कारण किसानों की खेत में लगाए गए बिचड़ा खत्म हो चुका है. इसलिए किसान तीसरी बार धान की फसल लगाने के लिए बिचड़ा की खरीद कर रहे हैं, जो काफी महंगा मिल रहा है. इसके बावजूद उन्हें बेहतर उत्पादन होने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि फसल लगाने का समय विलंब हो चुका है.
कृषि विभाग के पदाधिकारी ने दी जानकारी
कृषि विभाग के पदाधिकारी का बताना है कि तीसरी बार जो किसान धान की फसल लगा रहे हैं. उनके द्वारा कम दिनों का प्रभेद लगाने पर उत्पादन होने की उम्मीद रहेगी. लेकिन ज्यादा दिनों का प्रभेद लगाने पर उत्पादन नहीं होगा और उनका खर्च भी बेकार चला जाएगा. इसलिए किसान 127 और 135 दिनों का प्रभेद के साथ हाई ब्रीड धान का अपने खेतों में लगाकर उत्पादन ले सकते हैं.
सरकार पर आरोप लगा रहे किसान
बता दें कि जिले में दो बार आई भीषण बाढ़ के कारण अधिकांश प्रखंडों में लगी धान, गन्ना और सब्जी की फसल डूब कर पूरी तरह बर्बाद हो गई है. किसानों का आरोप है कि अब तक सरकार की ओर से किसी तरह की सहायता नहीं प्रदान की गई है. लिहाजा परिवार के भरण-पोषण के लिए कर्ज लेकर तीसरी बार फसल लगाई जा रही है ताकि जो कुछ भी उत्पादन होगा उससे परिवार को भोजन मुहैया हो पाएगा.