सीतामढ़ी: नेपाल के तराई क्षेत्रों में हो रही बारिश के कारण नदियों के जलस्तर (Water level of Rivers) में एक बार फिर तेजी से वृद्धि हुई है. बाढ़ (Flood in bihar) की वजह से जिले के अधिकांश प्रखंड 4 माह तक जलमग्न रहते हैं. बाढ़ के कारण आवागमन का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है. हर तरफ पानी होने के कारण लोगों का घरों से निकलना दूभर हो जाता है. ऐसी परिस्थिति के बावजूद 42 लाख की आबादी के लिए जिला प्रशासन के पास केवल 130 नाव ही उपलब्ध है. जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है.
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बेलसंड अनुमंडल क्षेत्र का सिरसिया और कोरियाही टोला गांव जहां निवास करने वाले बाढ़ पीड़ितों का बताना है कि तीन पीढ़ी बीत जाने के बावजूद हमने सरकारी नाव नहीं देखी है. बचाव और राहत कार्य हो या एक जगह से दूसरी जगह जाना हो नाव के अभाव में सभी तरह का काम प्रभावित हो जाता है. जबकि हर चुनाव के दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधि बाढ़ पीड़ितों को नाव उपलब्ध कराने का आश्वासन देते हैं. लेकिन चुनाव हो जाने के बाद सुधि लेने नहीं आते हैं. लिहाजा भगवान भरोसे हम लोगों की जिंदगी कटती है.
वहीं, अगर कोई व्यक्ति बाढ़ के दौरान पानी में डूब जाता है तो उसे बाहर निकालने के लिए रस्सी, केले का थंब, गाड़ी का ट्यूब ही एकमात्र सहारा होता है. इसके साथ ही बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाने के लिए खाट का उपयोग करते हैं. चारे के अभाव में मवेशियों का बुरा हाल हो जाता है. इतनी कठिनाइयों के बावजूद हम बाढ़ पीड़ितों को नाव नसीब नहीं हो रहा है. जिसको लेकर सिरसिया गांव के बाढ़ पीड़ितों में काफी नाराजगी है.
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"जिले में पर्याप्त संख्या में सरकारी नाव के साथ-साथ प्राइवेट नाव उपलब्ध है. सभी प्रखंड के अंचलाधिकारी से नाव उपलब्धता के संबंध में रिपोर्ट ली गई है. प्राइवेट नाव का भी करार किया गया है. जिले में कुल 130 नाव संचालित हो रहे हैं और नाव की कमी नहीं है."- संजय कुमार यादव, डीएम
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बाढ़ पीड़ितों का बताना है कि जिला प्रशासन की ओर से 130 नाव संचालित किए जाने की बात कही जा रही है. लेकिन सच्चाई तो यह है कि उसमें से अधिकांश नाव पुराने और क्षतिग्रस्त हैं. जिसका संचालन करवाना खतरे से खाली नहीं है. वहीं, जानकारों का बताना है कि 42 लाख की आबादी पर 130 नाव यानी तीन लाख से अधिक बाढ़ पीड़ितों के लिए एक नाव की व्यवस्था बचाव और राहत कार्य में कितना कारगर साबित होगा यह गंभीर सवाल है.