सीतामढ़ी: कहा जाता है कि 'भारत और नेपाल में बेटी और रोटी का संबंध' है. इस बात को चरितार्थ करते हुए सदियों से भारत और नेपाल के लोग सीमा पर बहने वाली झीम नदी (Chhath Puja At Jhim River Ghat) पर एक साथ छठ पूजा करते आ रहे हैं. आस्था के इस पर्व की तैयारी (Chhath Puja In Sitamarhi) दोनों देशों के लोग मिलकर करते हैं. रविवार को नदी के दोनों किनारे दोनों देशों के नागरिक ने डूबते को पहला अर्घ्य दिया. डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की मौके पर भारत और नेपाल के सैकड़ों गांव के लोग हजारों की संख्या में नदी के दोनों किनारे मौजूद थे.
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सैकड़ों गांव के लोग करते हैं छठ पूजाः भारत और नेपाल दोनों देशों के लोग कई दशकों से इस नदी के दोनों किनारे पर छठ पूजा करते आ रहे हैं. इस दौरान भारत के कई गांव के हजारों श्रद्धालु और नेपाल के कई गांवों के छठ व्रती इस नदी तट पर आते हैं. झीम नदी घाट पर पूरी आस्था के साथ इस महापर्व को मनाते हैं. दोनों देश के लोग सरहद की सीमा तोड़कर एक साथ सूर्य की उपासना करते हैं. नेपाल के त्रिभुवन पंचायत के मुखिया महंत राय बतातें है कि 70 वर्ष से वह देखते आ रहे हैं कि भारत और नेपाल के लोग झीम नदी के दोनों किनारे छठ पर्व को लेकर घाटों का निर्माण करते हैं और घाटों को टेंट से सजाते हैं.
दोनों देशों के जवान घाट पर रहते हैं तैनातः छठ पूजा के दौरान भारत और नेपाल के पुलिस जवान छठ घाट पर सुरक्षा को लेकर तैनात थी. वहीं नेपाली नागरिक छठ पर्व को लेकर पूजा सामग्री की खरीदारी भारतीय बाजारों से करते हैं. हजारों की संख्या में नेपाली नागरिक सीतामढ़ी के सोनबरसा बाजार से छठ पर्व के लिए पूजा सामग्री और रोजमर्रा के सामान की खरीदारी करते हैं.
"नेपाल के सैकड़ों गांव के लोग छठ पूजा में शामिल होते हैं. नेपाल के राजमार्ग रोड लालबंदी बैलवास सासापुर सहित कई गांव के लोग हजारों की संख्या में छठ पर्व मनाने को लेकर घाटों पर आते हैं. 70 साल से तो मैं खुद देख रहा हूं, यहां छठ होते हुए. दोनों देश के लोग मिलजुल कर घाट की साफ-सफाई करते हैं और फिर यहां भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं. रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की. गांव के लोग हजारों की संख्या में नदी के दोनों किनारे मौजूद थे. " - महंत राय, मुखिया, त्रिभुवन पंचायत
नेपालियों में बढ़ रही है छठ की आस्थाः आपको बता दें कि नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में बिहार के रहने वालों के साथ-साथ नेपाल के मूल निवासियों की भी छठ के प्रति आस्था बढ़ी है. हर साल छठ पर्व में सूर्य देवता की उपासना को देखकर नेपाली मूल के लोगों में भी छठ करने की लालसा जगी है. भारत और नेपाल के छठ व्रती अर्घ्य देने के लिए 3 किमी की लंबाई में दो तरफ परिधि में सजावट करते हैं. इस सजावट और छठ पूजा को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां जुटते हैं.
श्रद्धालु पवित्रता का रखा जाता है खास ख्यालः दरअसल बिहार में लोक आस्था और पवित्रता का महापर्व छठ लोगों के बीच काफी महत्व रखता है, जो अब बिहार तक ही सीमित नहीं है. देश की सीमाओं को पार कर विदेश में भी इसकी आस्था बढ़ने लगी है. इसकी शुरुआत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है और सप्तमी तिथि के सुबह तक चलती है. सोमवार को 31 अक्टूबर 2022, सोमवार को समाप्त होगी. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में तैयार की जाने वाली हर चीजों में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है.क्या है छठ पूजा का महत्वः छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता हैं उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की उपासना का खास महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मईया सूर्य देव की बहन हैं. इस व्रत में सूर्य की आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं. इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन किया जाएगा, छठी मैया उतना ही प्रसन्न होंगी. छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में जरूर चढ़ाया जाता हैं.
क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.
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