शेखपुरा: घाटकुसुम्भा प्रखंड के सुदूरवर्ती पानापुर पंचायत जाने की सड़क चुनाव में विकास के दावों की पोल खोल रहा है. दरअसल, आजादी के सात दशक के बाद भी ग्रामीणों के लिए आज तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो सका है. चुनावी मौसम में सड़क नहीं होने की टीस ग्रामीणों का आक्रोश और बढ़ा रहा है.
ग्रामीणों को होती है परेशानी
पक्की सड़क के अभाव में ग्रामीणों को सर्वाधिक मुश्किलें बारिश के मौसम में आवागमन में झेलना पड़ता है. गांव से लोग हाथों में जूते और चप्पल लेकर लगभग दो किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क को पार करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. लगभग आठ हजार की आबादी वाले इस पंचायत में पिछड़े, अल्पसंख्यक और महादलितों की बहुलता है. यहां के निवासी बाढ़ के वक़्त चारों तरफ पानी से घिरे रहते हैं. तब नाव ही यहां के वाशिंदों के आवागमन का एकमात्र साधन होता है.
पैदल चलना भी मुश्किल
बाढ़ के दिनों में लोगों के घर में पानी घुसने पर लोग घर द्वार छोड़कर सुरक्षित ऊंची जगह पर अपना आशियाना बनाते हैं. सड़क के नाम पर कच्ची पगडंडियों का सहारा होता है. जो बारिश के दिनों में कीचड़ में तब्दील हो जाने की वजह से लोगों का पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है. ग्रामीणों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना तब करना पड़ता है. जब कोई गांव में बीमार पड़ता है.
स्वास्थ्यकर्मी नहीं रहते उपलब्ध
ग्रामीणों को अपने बीमार परिजनों को इलाज के लिए खटिया के सहारे सड़क तक लाना पड़ता है. चूंकि पानापुर पंचायत में स्वास्थ्य केंद्र तो है. लेकिन स्वास्थ्यकर्मी 24 घण्टे उपलब्ध नहीं रहते हैं. वहीं, स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सिर्फ टीकाकरण होता है. इस वजह से किसी के बीमार पड़ने पर लोग शेखपुरा या लखीसराय जाने के लिए मजबूर होते हैं.
शिक्षा की स्थिति बदहाल
पानापुर पंचायत के स्कूली बच्चे प्राइमरी स्तर तक तो गांव में शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं. लेकिन उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए निकटवर्ती लखीसराय जिले या बाउघाट में पढ़ने जाना पड़ता है. जहां गर्मी और बरसात के दिनों में इनको पैदल या नाव से विद्यालय तक आवागमन करना पड़ता है. वर्तमान में पानापुर में उच्च माध्यमिक विद्यालय का नवनिर्माण हुआ है. लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण वहां भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
अल्पसंख्यक समाज की बहुलता
ऐसी परिस्थितियों में इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करना भी बेमानी होगी. पानापुर पंचायत में पानापुर सहित जितवारपुर, प्राणपुर, महम्मदपुर, आलापुर गांव है. जहां की आबादी लगभग आठ हजार से ज्यादा है. वहीं, वोटरों की संख्या भी चार हजार के आसपास है. जिसमें मुख्यतः महादलित परिवार दुसाध, मांझी, ढाढ़ी समाज के लोग हैं. जिसके बाद अतिपिछड़ों में धानुक, साहनी समाज और अल्पसंख्यक समाज की बहुलता है. इसके अलावा नाई, साव समाज के लोग हैं.
क्या कहते हैं ग्रामीण
इस बाबत ग्रामीण बब्बन चौरासिया, शम्भू पासवान, मंटू मंडल आदि ने बताया कि इस बार यहां की सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा बहाल करना ही मुख्य मुद्दा होगा. पक्की सड़क निर्माण के लिए स्थानीय सांसद और विधायक सहित गांव आने वाले हर जनप्रतिनिधियों से ग्रामीणों ने कई बार गुहार लगायी है. लेकिन पक्की सड़क का निर्माण अब तक नहीं हो सका है. नेता सिर्फ आश्वाशन ही देते हैं.
प्रत्याशी करते हैं सिर्फ वादा
सड़क की हालत को देखकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश है. उन्होंने ये भी बताया कि चुनाव के दौरान प्रत्याशियों बड़े-बड़े वायदे करते हैं. कई प्रत्याशियों ने बीते चुनावों में सड़क निर्माण का दिलासा दिया था. लेकिन अब तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो सका है. इस बार ग्रामीण एकजुट होकर पक्की सड़क का मुद्दा उठाएंगे और इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में खड़े प्रत्याशियों को भुगतना पड़ेगा.