शेखपुरा: आम आदमी पार्टी के जिला प्रभारी धर्मउदय कुमार (AAP District Incharge Dharam Uday Kumar) ने शेखपुरा के बरबीघा के रेफरल अस्पताल को लेकर बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने आरटीआई से मिली सूचना के आधार पर दावा किया है कि अस्पताल प्रशासन के द्वारा डीजल के नाम पर लाखों रुपये का घोटाला (Diesel scam in Sheikhpura) हुआ है. वहीं आम आदमी पार्टी संयोजक के दावों का खंडन करते हुए रेफरल अस्पताल बरबीघा के प्रबंधक ने इसे निराधार बताया है.
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आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर खुलासा: आम आदमी पार्टी के जिला प्रभारी ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि बिजली बोर्ड और बरबीघा रेफरल अस्पताल से आरटीआई कर सूचना मांगा गया था. जिसके अनुसार मार्च 2020 से लेकर मार्च 2021 तक में रेफरल अस्पताल को 7981 घंटा बिजली मिली थी. जबकि 4522 घंटा जनरेटर चलाया गया. मतलब 2020 से 2021 के दौरान कुल 12,503 घंटों तक अस्पताल में बिजली की आपूर्ति की गई. वहीं, अस्पताल प्रबंधक के द्वारा इस 13 माह की अवधि में जनरेटर चालू रखने के एवज में कुल 43 लाख 62 हजार रुपये का भुगतान किया गया.
समझिए घोटाले का पूरा गणित: आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 13 महीनों में कुल 12,503 घंटों तक बिजली की आपूर्ति की गई. अगर आंकड़ो को देखा जाए तो एक दिन में कुल 24 घंटे होता हैं. वहीं, इन 13 महीनों में कुल 9504 घंटा होगी. मतलब 13 माह की अवधि में 2999 घंटा अधिक जनरेटर चालू दिखाकर करीब 24 लाख रुपये की सरकारी संपत्ति का गबन किया गया है. बता दें कि बरबीघा के रेफरल अस्पताल में 200 केवी का जनरेटर लगा हुआ है. यह जनरेटर 13 लीटर प्रतिघंटा की दर से डीजल की खपत करता है, जो गड़बड़ी सामने आ रही है वो 2999 घंटा का है.
मार्च 2020 से लेकर मार्च 2021 तक 24 लाख से अधिक राशि का गबन: आप पार्टी के जिला संयोजक ने कहा कि रेफरल अस्पताल में मार्च 2020 से लेकर मार्च 2021 तक 24 लाख से अधिक सरकारी राशि का गबन किया गया है. उन्होंने कहा कि इससे पहले सीएस से भी शिकायत की गई थी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. शुक्रवार को पूरे तथ्य के साथ डीएम से मिलकर इस गोलमाल पर कार्रवाई की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि ये आंकड़े केवल एक साल के है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेफरल अस्पताल में कितने बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है.
''जेनरेटर चलाने में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि लॉग बुक पर डयूटी में तैनात रहने वाले डाॅक्टर को भी अपना हस्ताक्षर बनाना पड़ता है. डाॅक्टर के हस्ताक्षर किए जाने के कारण ही इस मामले में किसी तरह की गड़बड़ी नजर नहीं आ रही है. मामला आने पर इसकी जांच पड़ताल करेंगे.''- राजन कुमार, अस्पताल प्रबंधक
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