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विश्‍व एड्स दिवस: जानकारी के अभाव में लगातार बढ़ रही है AIDS के मरीजों की संख्या, ये हैं आंकड़े

वरीय चिकित्सा पदाधिकारी ने बताया कि एचआईवी से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र की तरफ से EID/DBS जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है. जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है, उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और यहीं से इलाज भी शुरू किया जाता है.

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विश्व एड्स दिवस
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Published : Dec 1, 2019, 11:38 PM IST

सारण: भारत में जानकारी के अभाव में एड्स के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. युवाओं को सही जानकारी और परामर्श नहीं मिलने से एड्स के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है. राज्य सरकार, केंद्र सरकार और देश के कई ऐसे सामाजिक संगठन हैं, जो एड्स के मरीजों के लिए जागरुकता अभियान चलाते हैं.

सामाजिक संगठन चलाते हैं जागरूकता अभियान
1 दिसंबर विश्‍व एड्स दिवस मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है, इसके तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है. इसके लिए देश के कई सामाजिक संगठनों की तरफ से जागरुकता अभियान चलाया जाता है. जिससे इस लाईलाज बीमारी से बचा जा सके और एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सके.

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डॉ. मकेश्वर प्रसाद चौधरी, वरीय चिकित्सा पदाधिकारी

'ICTC केंद्र की तरफ से होता है इलाज'
वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. मकेश्वर प्रसाद चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि एचआईवी से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र के तरफ से EID/DBS जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है. जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है, उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और यहीं से इलाज भी शुरू किया जाता है.

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डॉ. उर्मिला कुमारी, परामर्शी, सदर अस्पताल

छपरा सदर अस्पताल (परामर्श और जांच केंद्र) के आंकड़ें:

  • 2015 में एड्स से ग्रसित सामान्य महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 18
  • 2016 में महिला और पुरुषों की संख्या 428, गर्भवती महिलाओं की संख्या 17
  • 2017 में महिला और पुरुषों की संख्या 539, गर्भवती महिलाओं की संख्या 31
  • 2018 में महिला और पुरुषों की संख्या 631. गर्भवती महिलाओं की संख्या 36
  • जनवरी 2019 से नवंबर 2019 तक महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 30
    विश्व एड्स दिवस पर विशेष

एड्स ग्रसित लोगों की करें मदद
बता दें कि विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी. जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना है. लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था. लेकिन विश्‍व एड्स दिवस आपको याद कराता है कि ये बीमारी अभी भी हम सबके बीच में ही है.

सारण: भारत में जानकारी के अभाव में एड्स के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. युवाओं को सही जानकारी और परामर्श नहीं मिलने से एड्स के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है. राज्य सरकार, केंद्र सरकार और देश के कई ऐसे सामाजिक संगठन हैं, जो एड्स के मरीजों के लिए जागरुकता अभियान चलाते हैं.

सामाजिक संगठन चलाते हैं जागरूकता अभियान
1 दिसंबर विश्‍व एड्स दिवस मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है, इसके तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है. इसके लिए देश के कई सामाजिक संगठनों की तरफ से जागरुकता अभियान चलाया जाता है. जिससे इस लाईलाज बीमारी से बचा जा सके और एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सके.

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डॉ. मकेश्वर प्रसाद चौधरी, वरीय चिकित्सा पदाधिकारी

'ICTC केंद्र की तरफ से होता है इलाज'
वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. मकेश्वर प्रसाद चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि एचआईवी से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र के तरफ से EID/DBS जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है. जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है, उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और यहीं से इलाज भी शुरू किया जाता है.

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डॉ. उर्मिला कुमारी, परामर्शी, सदर अस्पताल

छपरा सदर अस्पताल (परामर्श और जांच केंद्र) के आंकड़ें:

  • 2015 में एड्स से ग्रसित सामान्य महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 18
  • 2016 में महिला और पुरुषों की संख्या 428, गर्भवती महिलाओं की संख्या 17
  • 2017 में महिला और पुरुषों की संख्या 539, गर्भवती महिलाओं की संख्या 31
  • 2018 में महिला और पुरुषों की संख्या 631. गर्भवती महिलाओं की संख्या 36
  • जनवरी 2019 से नवंबर 2019 तक महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 30
    विश्व एड्स दिवस पर विशेष

एड्स ग्रसित लोगों की करें मदद
बता दें कि विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी. जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना है. लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था. लेकिन विश्‍व एड्स दिवस आपको याद कराता है कि ये बीमारी अभी भी हम सबके बीच में ही है.

Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-SPECIAL ON WORLD AIDS DAY
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR



Anchor:-भारत युवाओं का देश है लेकिन जानकारी के अभाव में एड्स के मरीजो की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है आज के युवाओं को सही जानकारी या परामर्श नही मिलने से एड्स के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है राज्य सरकार, केंद्र सरकार या देश के कई ऐसे सामाजिक संगठन है जो एड्स के मरीजो के लिए जागरूकता अभियान चलाते है लेकिन इसका नतीजा शून्य होता है कारण की जितनी भी योजनाएं या जागरूकता अभियान चलाए जाते है वे सब केवल खानापूर्ति ही कि जाती है अगर कागजी खानापूर्ति नही होती तो शायद युवाओं में एड्स की लाईलाज बीमारी पाई नही जाती.

आज एक दिसंबर है और हम सब विश्‍व एड्स दिवस मनाते है जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना होता है जबकि जागरूकता के तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है और इसके लिए देश के कई सामाजिक संगठनों के द्वारा अभियान चलाया जाता हैं जिससे लाईलाज बीमारी से बचा जा सके और साथ ही एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सकें.





Body:बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति के सारण स्थित एआरटी केंद्र के वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ मकेश्वर प्रसाद चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि HIV से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र के द्वारा EID/DBS जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और यही से ईलाज भी शुरू किया जाता है.

भारत जैसे घने आबादी वाले देश में एड्स ग्रसित मरीजों की अधिक संख्या का कारण है लोगों का लापरवाही युक्त व्यवहार यानी लोग सब कुछ जानते हुए भी या तो अंजान बनते हैं या फिर असुरक्षित यौन संबंधों को बढ़ावा देते हैं जो कि एड्स का एक महत्वपूर्ण कारक है,जरूरी नहीं कि सिर्फ असुरक्षित यौन संबंध बल्कि किसी संक्रमित रोग से ग्रसित होने के कारण भी ऐसा होता है और संक्रमण के कारण भी एड्स का खतरा बराबर बना रहता है, हालांकि रास्ट्रीय स्तर पर आंकड़ों के मुताबिक,एड्स पीडि़तों की संख्या में काफी कमी आई है लेकिन सारण जिले में इसकी संख्या धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा है, एचआईवी पॉजीटिव लोगों के साथ भेदभाव करना, लोगों में जागरूकता की कमी होना, लोगों के मन में एड्स को लेकर तरह-तरह के भ्रम होना, लोगों का असुरक्षित यौन संबंध बनाना इत्‍यादि महत्वपूर्ण कारण है.


Byte:-डॉ मकेश्वर प्रसाद चौधरी, वरीय चिकित्सा पदाधिकारी, एआरटी केंद्र, छपरा





Conclusion:सदर अस्पताल परिसर स्थित एकीकृत परामर्श एवं जांच केंद्र छपरा की परामर्शी डॉ उर्मिला कुमारी की मानें तो वर्ष 2015 में एड्स से ग्रसित सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 456 थी तो वही गर्भवती महिलाओं की संख्या 18 थी, वर्ष 2016 की बात करें तो सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 428 थी तो तो वही गर्भवती महिलाओं की संख्या 17 थी, वर्ष 2017 में सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 539 था तो दूसरी तरफ गर्भवती महिलाओं की संख्या मात्र 31 थी, तो वही वर्ष 2018 में सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 631था तो वहीं गर्भवती महिलाओं की संख्या मात्र 36 था, वहीं इस वर्ष जनवरी 2019 से नवंबर 2019 तक सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 456 हैं जबकि गर्भवती महिलाओं की संख्या मात्र 30 ही हैं जो केवल सदर अस्पताल स्थित परामर्श व जांच केंद्र का हैं.

Byte:-डॉ उर्मिला कुमारी, परामर्शी, आईसीटीसी केंद्र, सदर अस्पताल छपरा

मालूम हो कि विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका मकसद,एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था. लेकिन विश्‍व एड्स दिवस आपको याद कराता है कि ये बीमारी अभी भी हम सबके बीच में ही है और इसे लगातार खत्म की कोशिशों में हम सबको मिलकर एक साथ आगे आना होगा तभी यह सम्भव है.

आमतौर पर देखा गया है कि एड्स अधिकतर उन देशों में है जहां लोगों की आय बहुत कम है या जो लोग मध्यवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. एचआईवी एड्स आज दुनिया भर के सभी महाद्वीपों में महामारी की तरह फैला हुआ है जो कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है और जिसे मिटाने के हर संभव प्रयास राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक किए जा रहे हैं लेकिन जितनी सफलता मिलनी चाहिए उतनी मिल नहीं पाई है कारण चाहे जो भी हो.






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