सारण: भारत में जानकारी के अभाव में एड्स के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. युवाओं को सही जानकारी और परामर्श नहीं मिलने से एड्स के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है. राज्य सरकार, केंद्र सरकार और देश के कई ऐसे सामाजिक संगठन हैं, जो एड्स के मरीजों के लिए जागरुकता अभियान चलाते हैं.
सामाजिक संगठन चलाते हैं जागरूकता अभियान
1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है, इसके तहत लोगों को एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाती है. इसके लिए देश के कई सामाजिक संगठनों की तरफ से जागरुकता अभियान चलाया जाता है. जिससे इस लाईलाज बीमारी से बचा जा सके और एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद की जा सके.
'ICTC केंद्र की तरफ से होता है इलाज'
वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. मकेश्वर प्रसाद चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि एचआईवी से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच ICTC केंद्र के तरफ से EID/DBS जांच कोलकाता स्थित केंद्रीय जांच घर से कराया जाता है. जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है, उन्हें ART केंद्र से जोड़ा जाता है और यहीं से इलाज भी शुरू किया जाता है.
छपरा सदर अस्पताल (परामर्श और जांच केंद्र) के आंकड़ें:
- 2015 में एड्स से ग्रसित सामान्य महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 18
- 2016 में महिला और पुरुषों की संख्या 428, गर्भवती महिलाओं की संख्या 17
- 2017 में महिला और पुरुषों की संख्या 539, गर्भवती महिलाओं की संख्या 31
- 2018 में महिला और पुरुषों की संख्या 631. गर्भवती महिलाओं की संख्या 36
- जनवरी 2019 से नवंबर 2019 तक महिला और पुरुषों की संख्या 456, गर्भवती महिलाओं की संख्या 30
एड्स ग्रसित लोगों की करें मदद
बता दें कि विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी. जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना है. लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था. लेकिन विश्व एड्स दिवस आपको याद कराता है कि ये बीमारी अभी भी हम सबके बीच में ही है.