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सत्याग्रह की अनसुनी कहानी: नोनी से नमक बनाकर उड़ा दी थी अंग्रेजों की नींद

सारण जिला क्रांतिकारियों की धरती रही है. सारण के बरेजा गांव के पंडित गिरीश तिवारी (Pandit Girish Tiwari) 1930 में नमक बनाकर अंग्रेजों का विरोध किया था. 1942 के आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने इनके घर को आग के हवाले कर दिया. पढ़िए महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी की पूरी कहानी.

Pandit Girish Tiwari
Pandit Girish Tiwari
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Published : Aug 15, 2021, 1:02 AM IST

सारण: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), सरदार बल्लभ भाई पटेल और विनोबा भावे जैसे शख्सियतों के साथ मिल कर नमक सत्याग्रह (Namak Satyagrah) आंदोलन की शुरुआत पंडित गिरीश तिवारी (Pandit Girish Tiwari) ने सारण से की गई थी. नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंडित गिरीश तिवारी सारण ही नहीं बल्कि बिहार के सपूत महान स्वतंत्रता सेनानी थे.

यह भी पढ़ें- चंपारण सत्याग्रह : वो आंदोलन जिसने गांधी को 'महात्मा' बना दिया

भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था. नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चन्द्र तिवारी ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि कैसे उनके दादा ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था.

देखें वीडियो

लोकनायक जयप्रकाश नारायण, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक समेत कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे जो सारण जिले से ही आते हैं. इसके साथ ही सारण जिला का बरेजा गांव (Bareja Village) क्रांतिकारी पंडित गिरीश तिवारी की वजह से भी जाना जाता है. जिन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत इसी गांव से की थी. उन्होंने नोनी मिट्टी से नमक बनाकर अंग्रेजों के इस कानून का खुलकर विरोध किया था.

1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू, मौलाना मजहरूल हक ,लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल,बिनोवा भावे समेत उस समय 9 साल की इंदिरा गांधी ने भी इस आंदोलन में भाग लिया था. अंग्रेजों ने पंडित गिरीश तिवारी को 1942 में गिरफ्तार करने की कोशिश की थी. इस दौरान पंडित जी भाग निकले. अंग्रेजों ने उनके पैतृक निवास को आग के हवाले कर दिया और पूरा घर तहस-नहस कर दिया.

'1930 में मेरे बाबा ने नोनी मिट्टी से नमक बनाया था. उस दौरान जो सबसे बड़े नेता थे सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरु, बिनोवा भावे सभी आए थे और दो दिन रहकर नमक बनाया था. ये खबर अंग्रेजों तक पहुंची तो उन्होंने बाबा को तंग करना शुरू कर दिया. 1942 के आंदोलन में भी बाबा ने बढ़-चढ़कर हिस्सी लिया था.'- प्रवीण चन्द्र तिवारी, पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र

इसके बाद भी पंडित गिरीश तिवारी के हौसले में कोई कमी नहीं आई और वे लगातार अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंडित गिरीश तिवारी तीन बार विधायक और मंत्री रहे. वहीं समाज के लिए उन्होंने बहुत काम किये थे. बच्चों की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल की स्थापना की. इस हाई स्कूल की स्थापना उन्होंने लोगों से जमीन दान में लेकर की थी. आज बरेजा गांव में 58 कट्ठा जमीन में एक विशाल हाई स्कूल स्थापित है. इसके साथ ही मौलाना मजहरूल हक ने उन्हें 1 बीघा जमीन रहने के लिए दिया. लेकिन उन्होंने इस जमीन को भी छपरा के कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय को दान कर दिया था.

1942 के अगस्त क्रांति के समय पंडित गिरीश तिवारी ने क्रांतिकारी गतिविधियों में महती भूमिका निभाई और साथियों के साथ मिल कर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन व दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले करने के बाद पूरी तरह से तहस नहस कर दिया गया था. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन कुछ लोग उस समय मौके से फरार होकर गुमनामी की जिंदगी व्यतीत करने लगे थे.

वर्तमान में यह गांव संसदीय क्षेत्र महाराजगंज के अंतर्गत आता है इसलिए महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने बरेजा गांव को गोद लेकर आदर्श गांव बनाने की योजना पर काम करते हुए विकास के कार्यों की शुरुआत की. इसके बावजूद भी आज भी इस गांव में कोई विशेष विकास का कार्य नहीं हुआ है.

आज पंडित गिरीश तिवारी के परिवार को मलाल है कि देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले इस महान स्वतंत्रता सेनानी को सभी भूल गए हैं. गिरीश तिवारी की जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर भी कोई कार्यक्रम नहीं होता है. अब पंडित गिरीश तिवारी का परिवार हाई स्कूल का नाम गिरीश तिवारी के नाम पर करने की मांग कर रहा है.

देश आज आजादी की 75वीं सालगिराह मना रहा है. ऐसे में इन महान क्रांतिकारियों के त्याग बलिदान को कभी भूला नहीं जा सकता क्योंकि इन महान योद्धाओं के कारण ही हम आज खुली हवा में सांस ले रहे है. ईटीवी भारत की पूरी टीम भारत माता के इन वीर सपूतों को शत शत नमन करती है.

यह भी पढ़ें- मुजफ्फरपुरः स्वतंत्रता सेनानी राम सजीव ठाकुर का निधन, राजकीय सम्मान से दी गई अंतिम विदाई

यह भी पढ़ें- पूर्णिया: स्वतंत्रता सेनानी का परिवार दूध बेचकर कर रहा गुजारा, जमीन पर भू माफियाओं का कब्जा

सारण: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आह्वान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), सरदार बल्लभ भाई पटेल और विनोबा भावे जैसे शख्सियतों के साथ मिल कर नमक सत्याग्रह (Namak Satyagrah) आंदोलन की शुरुआत पंडित गिरीश तिवारी (Pandit Girish Tiwari) ने सारण से की गई थी. नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंडित गिरीश तिवारी सारण ही नहीं बल्कि बिहार के सपूत महान स्वतंत्रता सेनानी थे.

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भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था. नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चन्द्र तिवारी ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि कैसे उनके दादा ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था.

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक समेत कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे जो सारण जिले से ही आते हैं. इसके साथ ही सारण जिला का बरेजा गांव (Bareja Village) क्रांतिकारी पंडित गिरीश तिवारी की वजह से भी जाना जाता है. जिन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत इसी गांव से की थी. उन्होंने नोनी मिट्टी से नमक बनाकर अंग्रेजों के इस कानून का खुलकर विरोध किया था.

1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू, मौलाना मजहरूल हक ,लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल,बिनोवा भावे समेत उस समय 9 साल की इंदिरा गांधी ने भी इस आंदोलन में भाग लिया था. अंग्रेजों ने पंडित गिरीश तिवारी को 1942 में गिरफ्तार करने की कोशिश की थी. इस दौरान पंडित जी भाग निकले. अंग्रेजों ने उनके पैतृक निवास को आग के हवाले कर दिया और पूरा घर तहस-नहस कर दिया.

'1930 में मेरे बाबा ने नोनी मिट्टी से नमक बनाया था. उस दौरान जो सबसे बड़े नेता थे सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरु, बिनोवा भावे सभी आए थे और दो दिन रहकर नमक बनाया था. ये खबर अंग्रेजों तक पहुंची तो उन्होंने बाबा को तंग करना शुरू कर दिया. 1942 के आंदोलन में भी बाबा ने बढ़-चढ़कर हिस्सी लिया था.'- प्रवीण चन्द्र तिवारी, पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र

इसके बाद भी पंडित गिरीश तिवारी के हौसले में कोई कमी नहीं आई और वे लगातार अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंडित गिरीश तिवारी तीन बार विधायक और मंत्री रहे. वहीं समाज के लिए उन्होंने बहुत काम किये थे. बच्चों की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल की स्थापना की. इस हाई स्कूल की स्थापना उन्होंने लोगों से जमीन दान में लेकर की थी. आज बरेजा गांव में 58 कट्ठा जमीन में एक विशाल हाई स्कूल स्थापित है. इसके साथ ही मौलाना मजहरूल हक ने उन्हें 1 बीघा जमीन रहने के लिए दिया. लेकिन उन्होंने इस जमीन को भी छपरा के कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय को दान कर दिया था.

1942 के अगस्त क्रांति के समय पंडित गिरीश तिवारी ने क्रांतिकारी गतिविधियों में महती भूमिका निभाई और साथियों के साथ मिल कर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन व दाऊदपुर रेलवे स्टेशन, थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले करने के बाद पूरी तरह से तहस नहस कर दिया गया था. इसी दौरान दाऊदपुर के गिरी बंधुओं की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन कुछ लोग उस समय मौके से फरार होकर गुमनामी की जिंदगी व्यतीत करने लगे थे.

वर्तमान में यह गांव संसदीय क्षेत्र महाराजगंज के अंतर्गत आता है इसलिए महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने बरेजा गांव को गोद लेकर आदर्श गांव बनाने की योजना पर काम करते हुए विकास के कार्यों की शुरुआत की. इसके बावजूद भी आज भी इस गांव में कोई विशेष विकास का कार्य नहीं हुआ है.

आज पंडित गिरीश तिवारी के परिवार को मलाल है कि देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले इस महान स्वतंत्रता सेनानी को सभी भूल गए हैं. गिरीश तिवारी की जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर भी कोई कार्यक्रम नहीं होता है. अब पंडित गिरीश तिवारी का परिवार हाई स्कूल का नाम गिरीश तिवारी के नाम पर करने की मांग कर रहा है.

देश आज आजादी की 75वीं सालगिराह मना रहा है. ऐसे में इन महान क्रांतिकारियों के त्याग बलिदान को कभी भूला नहीं जा सकता क्योंकि इन महान योद्धाओं के कारण ही हम आज खुली हवा में सांस ले रहे है. ईटीवी भारत की पूरी टीम भारत माता के इन वीर सपूतों को शत शत नमन करती है.

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