सारण: जिले का एक ऐसा स्कूल जहां साल में लगभग तीन से चार महीनों तक स्कूल के चारों ओर गंदा पानी जमा रहता है. इस कारण शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में आने वाले बच्चें और शिक्षकों को गंदे पानी को पार कर आना पड़ता है. हालांकि इसकी लिखित शिकायत रेल प्रशासन और बिहार सरकार के विभागीय अधिकारियों सहित जिला प्रशासन को भी दिया गया है, लेकिन समस्या से निजात दिलाने के लिए विभाग या जिला प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है.
सारण: सरकारी स्कूल में गंदा पानी पार कर पढ़ने आते छात्र, शिक्षा विभाग नहीं दे रहा है कोई ध्यान - बिहार सरकार
नगर निगम क्षेत्र संख्या 25 के कचहरी स्टेशन के परिसर में दो कमरों वाला इस सरकारी स्कूल में पहली क्लास से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस पर शिक्षा विभाग का ध्यान नहीं जाता है.
सारण
सारण: जिले का एक ऐसा स्कूल जहां साल में लगभग तीन से चार महीनों तक स्कूल के चारों ओर गंदा पानी जमा रहता है. इस कारण शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में आने वाले बच्चें और शिक्षकों को गंदे पानी को पार कर आना पड़ता है. हालांकि इसकी लिखित शिकायत रेल प्रशासन और बिहार सरकार के विभागीय अधिकारियों सहित जिला प्रशासन को भी दिया गया है, लेकिन समस्या से निजात दिलाने के लिए विभाग या जिला प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है.
नगर निगम क्षेत्र संख्या 25 के कचहरी स्टेशन के आवासीय परिसर में दो कमरों वाला इस विद्यालय में पहली क्लास से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है. यह रेलवे की जमीन होने के कारण बिहार सरकार और रेलवे की बीच विद्यालय को लेकर मामला फंसा रहता है. इस विद्यालय पर बिहार सरकार और रेलवे कोई ध्यान नहीं दे रही है.स्कूल में बच्चों को नहीं मिलता शैक्षणिक माहौल
राजकीय मध्य विद्यालय मौना दालदली छपरा नगर नाम से विद्यालय की स्थापना लगभग 50 वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन अभी तक दो कमरों से ज्यादा इस विद्यालय को नसीब नहीं हुआ है. इससे पढ़ने वाले बच्चों को परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षणिक माहौल नहीं मिल पाता है. बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं आते हैं. बच्चों के माता-पिता उसे पढ़ने के लिए निजी स्कूलों में भेज रहे हैं.पास के मंदिर प्रांगण में जाते हैं बच्चे पानी पीने
स्कूल में पीने के पानी की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. स्कूल परिसर में लगे चापाकल से शुद्ध पानी नहीं निकलता है. इस कारण से बच्चे पानी पीने के लिए पास में बने मंदिर प्रांगण में जाते हैं. वहीं, शिक्षक पीने का पानी अपने घरों से लेकर आते हैं.विद्यालय में नहीं है शौचालय की समुचित व्यवस्था
इस विद्यालय में शौचालय की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. इससे शिक्षकों और बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वो किसी दूसरे के घरों में जाने को मजबूर रहते हैं. बतादें कि स्कूल में शौचालय तो हैं लेकिन नाम मात्र का क्योंकि निर्माण के समय से ही उसका टंकी नीचे हो गया था. साथ ही वह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. स्कूल के बच्चों और शिक्षकों को सबसे ज्यादा परेशानी गर्मी के दिनों में होती है. स्कूल में बिजली की व्यवस्था नहीं होने के कारण बच्चों और शिक्षकों को गर्मी में बेहाल होना पड़ता है. स्कूल में बिजली नहीं होने का मुख्य कारण है कि विद्यालय में किसी भी तरह के निर्माण के लिए रेलवे प्रशासन से आदेश लेना पड़ता है. आदेश मिलने के बाद ही स्कूल में किसी तरह का कोई कार्य किया जा सकता है.पढ़ाने में शिक्षकों को होती है दिक्कत- प्रधानाध्यापिका
भारत सरकार की अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं में शुमार मध्याह्न भोजन योजना के तहत विद्यालय में बाहर से भोजन बनाकर लाया जाता है. क्योंकि एमडीएम बनाने के लिए स्कूल में कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूल की प्रधानाध्यापिका प्रमिला कुमारी ने बातया कि इस स्कूल में 250 बच्चों का नामांकण है. वहीं, कुल 16 शिक्षक हैं. लेकिन दो ही कमरे होने के कारण पढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्कूल के इस हालात के लिए शिक्षा विभाग को पत्र भी लिखा जा चुका है लेकिन अबतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
नगर निगम क्षेत्र संख्या 25 के कचहरी स्टेशन के आवासीय परिसर में दो कमरों वाला इस विद्यालय में पहली क्लास से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है. यह रेलवे की जमीन होने के कारण बिहार सरकार और रेलवे की बीच विद्यालय को लेकर मामला फंसा रहता है. इस विद्यालय पर बिहार सरकार और रेलवे कोई ध्यान नहीं दे रही है.स्कूल में बच्चों को नहीं मिलता शैक्षणिक माहौल
राजकीय मध्य विद्यालय मौना दालदली छपरा नगर नाम से विद्यालय की स्थापना लगभग 50 वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन अभी तक दो कमरों से ज्यादा इस विद्यालय को नसीब नहीं हुआ है. इससे पढ़ने वाले बच्चों को परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षणिक माहौल नहीं मिल पाता है. बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं आते हैं. बच्चों के माता-पिता उसे पढ़ने के लिए निजी स्कूलों में भेज रहे हैं.पास के मंदिर प्रांगण में जाते हैं बच्चे पानी पीने
स्कूल में पीने के पानी की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. स्कूल परिसर में लगे चापाकल से शुद्ध पानी नहीं निकलता है. इस कारण से बच्चे पानी पीने के लिए पास में बने मंदिर प्रांगण में जाते हैं. वहीं, शिक्षक पीने का पानी अपने घरों से लेकर आते हैं.विद्यालय में नहीं है शौचालय की समुचित व्यवस्था
इस विद्यालय में शौचालय की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. इससे शिक्षकों और बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वो किसी दूसरे के घरों में जाने को मजबूर रहते हैं. बतादें कि स्कूल में शौचालय तो हैं लेकिन नाम मात्र का क्योंकि निर्माण के समय से ही उसका टंकी नीचे हो गया था. साथ ही वह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. स्कूल के बच्चों और शिक्षकों को सबसे ज्यादा परेशानी गर्मी के दिनों में होती है. स्कूल में बिजली की व्यवस्था नहीं होने के कारण बच्चों और शिक्षकों को गर्मी में बेहाल होना पड़ता है. स्कूल में बिजली नहीं होने का मुख्य कारण है कि विद्यालय में किसी भी तरह के निर्माण के लिए रेलवे प्रशासन से आदेश लेना पड़ता है. आदेश मिलने के बाद ही स्कूल में किसी तरह का कोई कार्य किया जा सकता है.पढ़ाने में शिक्षकों को होती है दिक्कत- प्रधानाध्यापिका
भारत सरकार की अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं में शुमार मध्याह्न भोजन योजना के तहत विद्यालय में बाहर से भोजन बनाकर लाया जाता है. क्योंकि एमडीएम बनाने के लिए स्कूल में कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूल की प्रधानाध्यापिका प्रमिला कुमारी ने बातया कि इस स्कूल में 250 बच्चों का नामांकण है. वहीं, कुल 16 शिक्षक हैं. लेकिन दो ही कमरे होने के कारण पढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्कूल के इस हालात के लिए शिक्षा विभाग को पत्र भी लिखा जा चुका है लेकिन अबतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-JAL JAMAV KE BICH BACCHO KI PADHAI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR
Anchor:-सारण जिले का एक ऐसा स्कूल जहां साल में लगभग तीन से चार महीनों तक स्कूल के चारों ओर पानी फैला रहता है जिस कारण शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में आने वाले बच्चें या शिक्षकों को गंदे पानी को पार कर आना पड़ता है, हालांकि इसकी लिखित शिकायत रेल प्रशासन व बिहार सरकार के विभागीय अधिकारियों सहित जिला प्रशासन को भी दी गई हैं लेकिन समस्या से निज़ात दिलाने के लिए किसी के कानों तक जूं नही रेंगी हैं.
नगर निगम क्षेत्र संख्या 25 के कचहरी स्टेशन के आवासीय परिसर में दो कमरों वाला इस विद्यालय में वर्ग एक से आठ तक की पढ़ाई होती हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नसीब नही है क्योंकि रेलवे की जमीन हैं लेकिन स्कूल का संचालन बिहार कराती है जिस कारण पेंच फंसते रहता है.
Body:राजकीय मध्य विद्यालय मौना दालदली छपरा नगर नाम से विद्यालय की स्थापना लगभग 50 वर्ष पूर्व की गई है लेकिन अभी तक दो कमरों से ज्यादा नसीब नही हुआ हैं जिससे पढ़ने वाले बच्चों को परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षणिक माहौल नही मिल पाता हैं जिससे बच्चें इस विद्यालय से बिमुख होते जा रहे हैं और निजी विद्यालयों में नामांकन कराने को मजबूर हो रहे हैं क्योंकि इस विद्यालय में मात्र दो कमरे हैं और एक से लेकर वर्ग आठ तक कि शिक्षा दी जाती हैं ऐसे में बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के वजाय रसातल में जाती दिख रही हैं.
पचास वर्षों के इतिहास में एक मात्र चापाकल ही बच्चों को नसीब हुई हैं इसका पानी पीने लायक भी नही है यहां के बच्चें बगल के मंदिर में पानी पीने जाते हैं हालांकि विद्यालय के सभी शिक्षक पीने के लिए शुद्ध पेयजल अपने अपने घरों से बोतल में लेकर आते है और वही पीते है क्योंकि स्कूल परिसर वाले चापाकल का पानी पीने योग्य नही है.
Byte:-वॉक थ्रू
प्रमिला कुमारी, प्रधानाध्यापिका
धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी
Conclusion:इस विद्यालय के शिक्षकों या बच्चों को स्कूल समय के दौरान शौचालय जाने की नौबत आ जाये तो किसी दूसरे के घरों में जाने को मजबूर होते है क्योंकि स्कूल में शौचालय तो हैं लेकिन नाम मात्र के क्योंकि निर्माण के समय से ही टंकी नीचे चला गया और वह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया हैं, स्कूल के बच्चें व शिक्षकों को सबसे ज़्यादा परेशानी गर्मी के दिनों में होती हैं क्योंकि बिजली की व्यवस्था आज तक नही है जिसका मुख्य कारण यह है कि विद्यालय में किसी भी तरह के निर्माण के लिए रेलवे प्रशासन से आदेश लेनी पड़ती हैं उसके बाद ही किसी तरह का कोई निर्माण किया जा सकता है.
भारत सरकार की अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं में शुमार मध्यान भोजन योजना के तहत विद्यालय में बाहर से भोजन बनाकर लाया जाता है क्योंकि एमडीएम बनाने के लिए स्कूल में कोई व्यवस्था नही है जिस कारण स्कूली बच्चों के खाने के लिए बाहर से पका हुआ भोजन आता हैं और यही मध्यान भोजन देखिए किस तरह उर कहा रखा जाता हैं. इतना ही बल्कि वर्ग एक से लेकर आठ तक के लगभग 250 बच्चों को पढ़ने के लिए मात्र दो कमरे ही उपलब्ध हैं और इसी दो कमरे में सभी वर्गों का संचालन यहां के शिक्षकों द्वारा किया जाता है.
SLUG:-JAL JAMAV KE BICH BACCHO KI PADHAI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR
Anchor:-सारण जिले का एक ऐसा स्कूल जहां साल में लगभग तीन से चार महीनों तक स्कूल के चारों ओर पानी फैला रहता है जिस कारण शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में आने वाले बच्चें या शिक्षकों को गंदे पानी को पार कर आना पड़ता है, हालांकि इसकी लिखित शिकायत रेल प्रशासन व बिहार सरकार के विभागीय अधिकारियों सहित जिला प्रशासन को भी दी गई हैं लेकिन समस्या से निज़ात दिलाने के लिए किसी के कानों तक जूं नही रेंगी हैं.
नगर निगम क्षेत्र संख्या 25 के कचहरी स्टेशन के आवासीय परिसर में दो कमरों वाला इस विद्यालय में वर्ग एक से आठ तक की पढ़ाई होती हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नसीब नही है क्योंकि रेलवे की जमीन हैं लेकिन स्कूल का संचालन बिहार कराती है जिस कारण पेंच फंसते रहता है.
Body:राजकीय मध्य विद्यालय मौना दालदली छपरा नगर नाम से विद्यालय की स्थापना लगभग 50 वर्ष पूर्व की गई है लेकिन अभी तक दो कमरों से ज्यादा नसीब नही हुआ हैं जिससे पढ़ने वाले बच्चों को परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षणिक माहौल नही मिल पाता हैं जिससे बच्चें इस विद्यालय से बिमुख होते जा रहे हैं और निजी विद्यालयों में नामांकन कराने को मजबूर हो रहे हैं क्योंकि इस विद्यालय में मात्र दो कमरे हैं और एक से लेकर वर्ग आठ तक कि शिक्षा दी जाती हैं ऐसे में बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के वजाय रसातल में जाती दिख रही हैं.
पचास वर्षों के इतिहास में एक मात्र चापाकल ही बच्चों को नसीब हुई हैं इसका पानी पीने लायक भी नही है यहां के बच्चें बगल के मंदिर में पानी पीने जाते हैं हालांकि विद्यालय के सभी शिक्षक पीने के लिए शुद्ध पेयजल अपने अपने घरों से बोतल में लेकर आते है और वही पीते है क्योंकि स्कूल परिसर वाले चापाकल का पानी पीने योग्य नही है.
Byte:-वॉक थ्रू
प्रमिला कुमारी, प्रधानाध्यापिका
धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी
Conclusion:इस विद्यालय के शिक्षकों या बच्चों को स्कूल समय के दौरान शौचालय जाने की नौबत आ जाये तो किसी दूसरे के घरों में जाने को मजबूर होते है क्योंकि स्कूल में शौचालय तो हैं लेकिन नाम मात्र के क्योंकि निर्माण के समय से ही टंकी नीचे चला गया और वह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया हैं, स्कूल के बच्चें व शिक्षकों को सबसे ज़्यादा परेशानी गर्मी के दिनों में होती हैं क्योंकि बिजली की व्यवस्था आज तक नही है जिसका मुख्य कारण यह है कि विद्यालय में किसी भी तरह के निर्माण के लिए रेलवे प्रशासन से आदेश लेनी पड़ती हैं उसके बाद ही किसी तरह का कोई निर्माण किया जा सकता है.
भारत सरकार की अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं में शुमार मध्यान भोजन योजना के तहत विद्यालय में बाहर से भोजन बनाकर लाया जाता है क्योंकि एमडीएम बनाने के लिए स्कूल में कोई व्यवस्था नही है जिस कारण स्कूली बच्चों के खाने के लिए बाहर से पका हुआ भोजन आता हैं और यही मध्यान भोजन देखिए किस तरह उर कहा रखा जाता हैं. इतना ही बल्कि वर्ग एक से लेकर आठ तक के लगभग 250 बच्चों को पढ़ने के लिए मात्र दो कमरे ही उपलब्ध हैं और इसी दो कमरे में सभी वर्गों का संचालन यहां के शिक्षकों द्वारा किया जाता है.