सारणः कुम्हार समुदाय के लोग आज भी अपनी हिन्दू संस्कृति की परम्परा को बचाने के लिए दिन रात एक करते नजर आ रहे हैं. सीमित संसाधन होने के बावजूद कुम्हार कड़ी मेहनत और कम आमदनी के साथ दीपावली में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक मिट्टी के दीये और खिलौने बनाने के लिए कुम्हार दिन रात मेहनत कर रहे हैं.
'पुश्तैनी पेशा रखेंगे बरकरार'
छपरा शहर के दहियांवा मुहल्ला निवासी हरेन्द्र पंडित ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया कि वह लगभग 30 वर्षों से मिट्टी से दीये, कलश और बच्चों के खेलने लायक खिलौने बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. लेकिन पूर्वजों से मिली इस कला को आगे बढ़ाने वाला अब उनके घर में कोई नहीं है. क्योंकि इस पुश्तैनी पेशे के संघर्ष को देखकर उनके बच्चों ने अब इस काम को आगे नहीं करने का फैसला लिया है. हालांकि हरेन्द्र पंडित का कहना हैं कि यह खानदानी पेशा है और इसको बरकरार रखा जाएगा.
चाइनीज झालरों ने बढ़ाई परेशानी
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चाईनीज झालरों ने जिस प्रकार अपना वर्चस्व कायम किया है. उससे इन कुम्हारों के बीच और ज्यादा संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे कुम्हार आज भी पर्व-त्योहारों के मौके पर विशेष महत्व रखने वाले मिट्टी के सामानों को बनाते हैं.