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बाजार में चाइनीज झालरों की मांग ने धीमी की कुम्हार के पहिए की रफ्तार

चाइनीज झालरों ने जिस प्रकार अपना वर्चस्व कायम किया है. उससे इन कुम्हारों के बीच और ज्यादा संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे कुम्हार आज भी पर्व-त्योहारों के मौके पर विशेष महत्व रखने वाले मिट्टी के सामानों को बनाते हैं.

दीपावली
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Published : Oct 25, 2019, 4:49 PM IST

सारणः कुम्हार समुदाय के लोग आज भी अपनी हिन्दू संस्कृति की परम्परा को बचाने के लिए दिन रात एक करते नजर आ रहे हैं. सीमित संसाधन होने के बावजूद कुम्हार कड़ी मेहनत और कम आमदनी के साथ दीपावली में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक मिट्टी के दीये और खिलौने बनाने के लिए कुम्हार दिन रात मेहनत कर रहे हैं.

'पुश्तैनी पेशा रखेंगे बरकरार'
छपरा शहर के दहियांवा मुहल्ला निवासी हरेन्द्र पंडित ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया कि वह लगभग 30 वर्षों से मिट्टी से दीये, कलश और बच्चों के खेलने लायक खिलौने बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. लेकिन पूर्वजों से मिली इस कला को आगे बढ़ाने वाला अब उनके घर में कोई नहीं है. क्योंकि इस पुश्तैनी पेशे के संघर्ष को देखकर उनके बच्चों ने अब इस काम को आगे नहीं करने का फैसला लिया है. हालांकि हरेन्द्र पंडित का कहना हैं कि यह खानदानी पेशा है और इसको बरकरार रखा जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

चाइनीज झालरों ने बढ़ाई परेशानी
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चाईनीज झालरों ने जिस प्रकार अपना वर्चस्व कायम किया है. उससे इन कुम्हारों के बीच और ज्यादा संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे कुम्हार आज भी पर्व-त्योहारों के मौके पर विशेष महत्व रखने वाले मिट्टी के सामानों को बनाते हैं.

Saran
मिट्टी के बर्तन बनाता कुम्हार

सारणः कुम्हार समुदाय के लोग आज भी अपनी हिन्दू संस्कृति की परम्परा को बचाने के लिए दिन रात एक करते नजर आ रहे हैं. सीमित संसाधन होने के बावजूद कुम्हार कड़ी मेहनत और कम आमदनी के साथ दीपावली में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक मिट्टी के दीये और खिलौने बनाने के लिए कुम्हार दिन रात मेहनत कर रहे हैं.

'पुश्तैनी पेशा रखेंगे बरकरार'
छपरा शहर के दहियांवा मुहल्ला निवासी हरेन्द्र पंडित ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया कि वह लगभग 30 वर्षों से मिट्टी से दीये, कलश और बच्चों के खेलने लायक खिलौने बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. लेकिन पूर्वजों से मिली इस कला को आगे बढ़ाने वाला अब उनके घर में कोई नहीं है. क्योंकि इस पुश्तैनी पेशे के संघर्ष को देखकर उनके बच्चों ने अब इस काम को आगे नहीं करने का फैसला लिया है. हालांकि हरेन्द्र पंडित का कहना हैं कि यह खानदानी पेशा है और इसको बरकरार रखा जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

चाइनीज झालरों ने बढ़ाई परेशानी
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चाईनीज झालरों ने जिस प्रकार अपना वर्चस्व कायम किया है. उससे इन कुम्हारों के बीच और ज्यादा संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है. लेकिन भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे कुम्हार आज भी पर्व-त्योहारों के मौके पर विशेष महत्व रखने वाले मिट्टी के सामानों को बनाते हैं.

Saran
मिट्टी के बर्तन बनाता कुम्हार
Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-MADE FROM CLAY
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-कुम्हार समुदाय के लोग आज भी अपनी हिन्दू संस्कृति की परम्परा को बचाने के लिए दिन रात एक करते नज़र आ रहे है, क्योंकि मेहनत कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करना मजबरी है अगर ऐसा नही करेंगे तो भूखें पेट सोना पड़ सकता हैं इसके अलावे कोई चारा भी नही है. पर्व-त्योहारों में होनेवाली आमदनी के भरोसे ही इनलोगों का परिवार रहता हैं. दीपावली और छठ पूजा में मिट्टी के दीये और खिलौने का है विशेष महत्व माना जाता हैं.

सत्ता पक्ष हो या विपक्ष चारों तरफ़ देश में चाईनीज सामानों के जबरदस्त विरोध करते नजर आते है लेकिन इसके बावजूद सारण जिले के कुम्हार दीवाली के अवसर पर चाईनीज लाइट्स और खिलौने को टक्कर देने के लिए दिन रात एक कर तैयारी में जुट गए है, सीमित संसाधनों के बावजूद कड़ी मेहनत और कम आमदनी के साथ दीपावली में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक मिट्टी के दीये और खिलौने बनाने के लिए कुम्हार दिन-रात मेहनत कर रहे हैं.
Body:छपरा शहर के दहियांवा मुहल्ला निवासी हरेन्द्र पंडित ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान बताया कि लगभग 30 वर्षों से मिट्टी से दीये, कलस व बच्चों के खेलने लायक खिलौने बनाने का कार्य करते आ रहे है लेकिन पूर्वजो से मिली इस कला को आगे बढ़ाने वाला अब उनके घर में कोई नहीं है. क्योंकि इस पुस्तैनी पेशे के संघर्ष को देखकर उनके बच्चों ने अब इस काम को आगे नहीं करने का फैसला लिया है. हालांकि हरेन्द्र पंडित का कहना हैं कि यह खानदानी पेशा है और इसको बरक़रार रखा जाएगा.

हालांकि पिछले कुछ वर्षो में चाईनीज बाजार ने जिस प्रकार अपना वर्चस्व कायम किया है उसने इन कुम्हारों के बीच और ज्यादें संघर्ष करने पर मजबूर तो जरूर कर दिया है, लेकिन भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे कुम्हार आज भी पर्व-त्योहारों के मौके पर विशेष महत्व रखने वाले मिट्टी के इन सामानों को बनाकर अपने पूर्वजों और अपनी संस्कृति को बचाने में दिन रात कर मिट्टी के खिलौने बनाने में जुट गए है.

Byte:-हरेंद्र पंडित, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार
Conclusion:हरेंद्र पंडित का कहना है कि कुछ वर्ष पहले तक मिट्टी की कीमत कम था लेकिन अब आसमान छूने लगा है जिस कारण हमलोगों को पहले से ज्यादें परेशानी उठानी पड़ रही हैं, लगभग 800 रुपये प्रति टायर के हिसाब से ग्रामीण इलाके के चंवर से मिट्टी खरीदनी पड़ती है क्योंकि दीवाली व छठ पूजा में विशेष रूप से तैयार किये गए मिट्टी के दीये, खिलौने, हाथी, सुप, थाली, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बेचकर अपना जीवन यापन करने वाले कुम्हार समुदाय आज भी अपनी पुस्तैनी परंपरा को जीवित रखने का जो काम कर रहे है उसे एक सार्थक सहयोग की आवश्यकता है. लेकिन देश में रोक के बावजूद खुले बाज़ारो में चाईनीज सामानों की विक्री धड़ल्ले से हो रही हैं साथ ही हमलोग खुल कर विरोध करने के लिए हम भले ही सड़कों पर उतर जाते है लेकिन उससे कहीं ज्यादा हमें अपने संस्कृति से जुड़े चीजों को आम-जीवन में प्रयोग करने के लिए आंदोलन चलाने की आवश्यकता है. कुम्हारों के साथ-साथ हमें भी अपनी मिट्टी से जुड़कर मिट्टी के सामानों का उपयोग समझना होगा तभी जाकर विदेशी बाजारों को सही टक्कर दी जा सकती है.



मिट्टी के बर्तन, खिलौने, दीये और पर्व-त्योहारों पर विशेष महत्व रखने वाले सामान बनाने वाले कुम्हारों की सबसे बड़ी समस्या है कि इन्हें अपने सामानों की सही कीमत भी नहीं मिल पाती है. कई बार तो इन्हें लागत मूल्य पर ही सामानों को बेचना पड़ता है और कई बार तो लागत मूल्य से कम कीमत पर बेचना भी इनकी मजबूरी बन जाती है. खास मौकों पर कमाए गए पैसों से ही साल भर ये जैसे-तैसे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते है. आर्थिक रूप से पिछड़े कुम्हारों को आज भी इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार के सहयोग की जरूरत है.
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