सारण: डोरीगंज में बालू व्यवसाय से जुड़े हजारों मजदूरों के सामने भुखमरी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. बाहर के मजदूर अपना पेट पालने और अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए बिहार के कई जिलों से दूसरे प्रदेशों में नौकरी की तलाश में पलायन करने को मजबूर हो गए हैं.
लाल बालू के व्यवसाय से जुड़े मजदूरों का कहना हैकि हमलोग कई वर्षो से डोरीगंज के बालू घाटों पर बालू उतारने व चढ़ाने का काम करते आ रहे हैं, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व बालू का व्यवसाय बंद हो जाने के कारण हमलोगों के सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. पहले ज्यादा मजदूर काम करते थे, लेकिन अब मुश्किल से 100 के करीब मजदूर ही इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. स्थानीय लोग ही इस व्यवसाय से जुड़े रह गए हैं.
कई जिलों के मजदूर करते थे काम
बिहार के शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, वैशाली, खगड़िया, आरा, बक्सर, सीवान व गोपालगंज सहित कई अन्य जिलों के मजदूर डोरीगंज बालू घाट पर आकर मेहनत मजदूरी कर अपना और अपने परिवारों का भरण-पोषण करते थे, लेकिन जब से बालू व्यवसाय पर ग्रहण लगा है तब से यहां के मजदूर पलायन कर रहे हैं और दूसरे प्रदेशों में मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं.
कोईलवर से आता हैबालू
मालूम हो कि आरा के कोईलवर से लाल बालू सारण के डोरीगंज घाट पर नाव से लाकर रखा जाता था और उसकी खरीद बिक्री इसी घाट से होती थी. बिहार और यूपी के कई जिलों में इसकी खपत होती थी, लेकिन जब से बालू व्यवसाय पर ग्रहण कहे या राज्य सरकार की दोहरी नीति के कारण बालू का धंधा मंदा हुआ है तब से मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूरों के लाले पड़े हुए हैं.