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आलता पत्र के निर्माण करने वालों को नहीं मिल रहा उचित मूल्य, जानें छठ पर्व में क्या है इसका उपयोग

आलता पत्र छठ पूजा में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण चीजों में से एक है. इसको बनाने में काफी मेहनत लगती है. लेकिन इसे बनाने वाली महिला कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता. व्यापारी इसे औने-पौने दाम पर खरीद कर ले जाते हैं.

आलता पत्र
आलता पत्र
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Published : Nov 16, 2020, 2:57 PM IST

छपराः बिहार में दीपावली का त्योहार समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है. लोग छठ पूजा के लिए खरीदारी करने के लिए बाजारों में निकल पड़ते हैं. वहीं, कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ पूजा में सभी नए चीजों का प्रयोग होता है, जिसमें मौसमी फल, आलता पत्र, दौरा, कलसूप सहित सभी नवनिर्मित चीज का प्रयोग किया जाता है.

छठ पूजा में 56 प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया जाता है. जिसमें आलता पत्र एक प्रमुख चीज है. जिसकी इस छठ पूजा में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इसको घरों के दरवाजे, खिड़कियां और दीवारों पर लगाया जाता है.

बड़ागोपाल गांव के लोग बनाते हैं आलता पत्र
आलता पत्र छपरा जिले के कुछ विशेष स्थानों पर ही बनाया जाता है और इसके बनाने की लंबी प्रक्रिया होती है. इसको काफी पहले से ही बनाना शुरू कर दिया जाता है. छपरा जिले के बड़ागोपाल गांव में इस आलता पत्र का घर घर में निर्माण किया जाता है. यह यहां का कुटीर उद्योग के रूप में जाना जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बड़ागोपाल और झौआ गांव में व्यापारी काफी पहले से ही ऑर्डर दे देते हैं और इसका निर्माण होने पर उनको भेज दिया जाता है. इस आलता पत्र को पूरे देश में, जैसे कोलकाता, मुंबई, बनारस और अन्य जगहों पर भी भेजा जाता है.

मुश्किल से होता है कारीगरों का गुजारा
वहीं, आलता पत्र को बनाने वाली महिला उद्यमियों का कहना है कि वो बड़ी मेहनत से इस आलता पत्र को बनाती हैं. लेकिन इसको बनाने में जितनी मेहनत लगती है, उसके हिसाब से उनको मेहनताना नहीं मिलता है. जिस कारण इन महिलाओं को काफी मुश्किल से गुजारा करना पड़ता है, क्योंकि यह उनलोगों का पारंपरिक पेशा है.

इन महिलाओं का कहना है कि बाहर से आने वाले व्यापारी हमारी इस मेहनत को नजरअंदाज करके ओने पौने दाम में खरीद कर ले जाते हैं. बाद में काफी ऊंची कीमत पर बेचते हैं. लेकिन हमसे यह काफी कम पैसे में खरीदते हैं.

कुटीर उद्योग में शामिल करने की मांग
'यह यहां का कुटीर उद्योग है, जिसको लेकर यहां के अधिकारी ध्यान नहीं देते हैं. हम लोग को अभी तक कुटीर उद्योग का भी दर्जा नहीं मिला है. जिसके कारण हमारी मेहनत की पूरी कीमत नहीं मिल पाती है'- महिला कारीगर

महिला कारीगरों का कहना है कि हमलोग की सरकार से मांग है इसे कुटीर उद्योग में शामिल किया जाए. ताकि हम लोगों के मेहनत का सही मेहनताना मिल सके. हम लोग छठपूजा के लिए आलता पत्र की इसी तरह निर्माण करते रहे और इसमें अधिक गुणवत्ता के साथ इसका निर्माण हो.

छपराः बिहार में दीपावली का त्योहार समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है. लोग छठ पूजा के लिए खरीदारी करने के लिए बाजारों में निकल पड़ते हैं. वहीं, कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ पूजा में सभी नए चीजों का प्रयोग होता है, जिसमें मौसमी फल, आलता पत्र, दौरा, कलसूप सहित सभी नवनिर्मित चीज का प्रयोग किया जाता है.

छठ पूजा में 56 प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया जाता है. जिसमें आलता पत्र एक प्रमुख चीज है. जिसकी इस छठ पूजा में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इसको घरों के दरवाजे, खिड़कियां और दीवारों पर लगाया जाता है.

बड़ागोपाल गांव के लोग बनाते हैं आलता पत्र
आलता पत्र छपरा जिले के कुछ विशेष स्थानों पर ही बनाया जाता है और इसके बनाने की लंबी प्रक्रिया होती है. इसको काफी पहले से ही बनाना शुरू कर दिया जाता है. छपरा जिले के बड़ागोपाल गांव में इस आलता पत्र का घर घर में निर्माण किया जाता है. यह यहां का कुटीर उद्योग के रूप में जाना जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बड़ागोपाल और झौआ गांव में व्यापारी काफी पहले से ही ऑर्डर दे देते हैं और इसका निर्माण होने पर उनको भेज दिया जाता है. इस आलता पत्र को पूरे देश में, जैसे कोलकाता, मुंबई, बनारस और अन्य जगहों पर भी भेजा जाता है.

मुश्किल से होता है कारीगरों का गुजारा
वहीं, आलता पत्र को बनाने वाली महिला उद्यमियों का कहना है कि वो बड़ी मेहनत से इस आलता पत्र को बनाती हैं. लेकिन इसको बनाने में जितनी मेहनत लगती है, उसके हिसाब से उनको मेहनताना नहीं मिलता है. जिस कारण इन महिलाओं को काफी मुश्किल से गुजारा करना पड़ता है, क्योंकि यह उनलोगों का पारंपरिक पेशा है.

इन महिलाओं का कहना है कि बाहर से आने वाले व्यापारी हमारी इस मेहनत को नजरअंदाज करके ओने पौने दाम में खरीद कर ले जाते हैं. बाद में काफी ऊंची कीमत पर बेचते हैं. लेकिन हमसे यह काफी कम पैसे में खरीदते हैं.

कुटीर उद्योग में शामिल करने की मांग
'यह यहां का कुटीर उद्योग है, जिसको लेकर यहां के अधिकारी ध्यान नहीं देते हैं. हम लोग को अभी तक कुटीर उद्योग का भी दर्जा नहीं मिला है. जिसके कारण हमारी मेहनत की पूरी कीमत नहीं मिल पाती है'- महिला कारीगर

महिला कारीगरों का कहना है कि हमलोग की सरकार से मांग है इसे कुटीर उद्योग में शामिल किया जाए. ताकि हम लोगों के मेहनत का सही मेहनताना मिल सके. हम लोग छठपूजा के लिए आलता पत्र की इसी तरह निर्माण करते रहे और इसमें अधिक गुणवत्ता के साथ इसका निर्माण हो.

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