सारणः देश की आजादी के लिए कई तरह के आंदोलन किए गए. जिसमें नमक सत्याग्रह आंदोलन मुख्य रूप से सभी को याद होगा. महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदोली गांव से दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह आंदोलन का आगाज लगभग 80 लोगों के साथ 12 मार्च 1930 को किया था.
इस आंदोलन में बिहार के एक महान स्वतंत्रता सेनानी की अग्रणी भूमिका रही है, जिनका नाम है पंडित गिरीश तिवारी. जिन्होंने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और विनोबा भावे के साथ मिलकर सारण में नमक एक्ट का बहिष्कार किया था.
जब अंग्रेजों ने लगाया था नमक पर कर
भारत में अंग्रेजों के शासन काल के समय नमक उत्पादन और बिक्री के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया गया था जबकि नमक हर मनुष्य के लिए बहुत ज्यादा जरूरी होता है. भारतवासियों को इस कानून से मुक्त कराने और अपना अधिकार दिलाने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम आयोजित किया गया.
सारण में नमक विरोधी कानून को भंग किया
महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के जरिए लाए गए नमक कानून का विरुद्ध किया. उन्होंने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्र तटीय गांव दांडी तक अपने साथियों के साथ पैदल यात्रा कर और नमक हाथ में लेकर के नमक विरोधी कानून को भंग किया.
नमक सत्याग्रह आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सारण ही नहीं बल्कि बिहार के सपूत महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के पोते प्रवीण चंद्र तिवारी से ईटीवी भारत के संवाददाता ने खास बातचीत की. इस दौरान अपनी पारिवारिक स्थिति को साझा करते समय उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े.
सारण की धरती पर पहुंचे थे कई दिग्गज
प्रवीण चंद्र ने बताया कि नमक आंदोलन के समय मेरे दादाजी के पास पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और विनोबा भावे अपने कई आंदोलनकारियों के साथ नमक बनाने के लिए आए थे. प्रवीण चंद्र तिवारी ने बताया कि मेरे घर आकर सभी ने मिट्टी से लोनी निकाल के नमक बनाकर आंदोलन किया था. सारण की ऐतिहासिक धरती से लेकर चंपारण की धरती तक इसका बिगुल बजाया गया था.
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1942 की अगस्त क्रांति में निभाई अहम भूमिका
वहीं, 1942 की अगस्त क्रांति के समय भी पंडित गिरीश तिवारी ने क्रांतिकारी गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर एकमा थाना, पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन व दाउदपुर रेलवे स्टेशन थाना पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले करने के बाद पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया था. जिससे यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई थी.
1952 के चुनाव में जीत के बाद बने विधायक
आजादी के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ, तो पंडित गिरीश तिवारी विधायक चुन लिए गए, लगातार 1967 तक विधायक व मंत्री भी रहे. लेकिन उन्होंने अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया. क्योंकि उनके लिए घर परिवार नहीं बल्कि समाज और देश की सेवा करना अहम था. देश की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के परिवार की आज स्थिति बद से बदतर हो गई है.
प्रवीण चंद्र तिवारी को बेटी की शादी की चिंता
स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी के पौत्र प्रवीण चंद्र तिवारी ने बताया है कि उनकी बेटी मोनालिसा और बेटा राहुल की पढ़ाई पूरी करने में बहुत ज्यादा सोचना पड़ रहा है.बेटी की शादी कैसे करेंगे. प्रवीण चंद्र तिवारी की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब है. हालांकि वह छपरा वह वयवहार न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं. लेकिन उससे घर खर्चा चलना भी मुश्किल हो गया है. कोई सरकारी सुविधा भी नहीं मिलती है. यहां तक कि राशनकार्ड के लिए भी कई बार अप्लाई किया लेकिन उसे रद्द कर दिया जाता है. बहरहाल देश के महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित गिरीश तिवारी का परिवार आज बदहाल स्थिति में रहने को मजबूर है, जो सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है.