सारणः बिहार में गया जिले के गहलौर गांव निवासी 'माउंटेन मैन' (Mountain Man) दशरथ मांझी को शायद ही कोई भूल सकता है. उन्होंने अपनी अथक मेहनत से छेनी और हथौड़े से काटकर पहाड़ों को काटकर रास्ता बना दिया था. हिम्मत और परिश्रम के किसी भी काम में आज दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) की मिसाल पेश की जाती है. दशरथ मांझी से प्रेरित होकर सारण जिले में भी एक मजदूर ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है.
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दरअसल, सारण जिले के गरखा प्रखंड के डुमरी जुअरा रेलवे हॉल्ट के पास स्थित रेल अंडरब्रिज काफी समय से बंद था. अंडरब्रिज और उससे होकर गुजरने वाले रास्ते का आलम ये था कि वहां मिट्टी और कचरे का अंबार लगा हुआ था. अभी बरसात के मौसम में पूरा रास्ता कीचड़ से भर गया था. इस कारण से लोगों को अंडरब्रिज से गुजरना समझें तो नामुमकिन ही था. लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर रेल पटरी को पार करते थे.
स्थानीय लोगों ने बताते हैं कि पिछले चार महीने से यह रेलवे अंडर-वे बंद था. बरसात के मौसम में यहां कीचड़ और भारी जलजमाव था. इससे सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों को हो रही थी. रास्ता ब्लॉक होने की वजह से गाड़ियां गांव तक वहीं पहुंच सकती थी. इस कारण से बच्चों की भी पढ़ाई महीनों से बाधित थी.
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इस समस्या को दुरुस्त करने को लेकर कई बार जन प्रतिनिधियों को पत्र भी लिखा गया लेकिन कहीं से आश्वासन तक नहीं मिला. उसी गांव के मजदूरी का काम करने वाले मंजेश मांझी भी रोज यह सब देखते थे लेकिन उनसे रहा न गया. उन्होंने इस बंद पड़े रेलवे अंडरब्रिज के जरिए किसी भी कीमत पर आवागमन बहाल करने का ठान लिया.
एक कुदाल और कठौती की मदद से कई दिनों तक लगातर मेहनत करने के बाद उन्होंने रास्ते से न केवल जलजमाव को हटाया, बल्कि कीचड़ का का नामोनिशान तक मिटा दिया. इस काम में उन्हें 21 दिन लगे. रास्ता साफ हो जाने की वजह से अब इस रास्ते से सुलभ आवागमन शुरू हो गया है. इलाके के लोग मंजेश मांझी के इस हौसले को अब सलाम कर रहे हैं.
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'मुझे माउंटेन मैन दशरथ मांझी से इसकी प्रेरणा मिली. जब वे पहाड़ काटकर रास्ता बना सकते थे, तो हम इस बने हुए रास्ते से पानी और मिट्टी क्यों नहीं हटा सकते थे. यही सोचकर हम काम पर लग गए. पूरे 21 दिन में काम पूरा हो गया है. रास्ता चालू हो जाने से हमें अच्छा लग रहा है.'- मंजेश मांझी, मजदूर
स्थानीय लोगों ने बताया कि मंजेश ने अकेले ही इस काम को पूरा किया है. गांव में उसका एक झुग्गीनुमा घर है. मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि जब वह काम कर रहा था तब लोगों ने उसकी सहायता करने की भी बात कही लेकिन उसने कोई सहायता नहीं ली. अकेले ही पूरा काम कर दिखाया. अब तो इलाके में लोग उसे सारण का दशरथ मांझी भी कहने लगे हैं.