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सारण: प्रशासनिक उदासीनता का शिकार बना गोदना सेमरिया मेला, आजतक नहीं मिली प्रसिद्धि

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Published : Nov 11, 2019, 11:48 AM IST

साल 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने गोदना सेमरिया मेले का मेले का उद्घाटन किया था. तब से प्रत्येक साल यहां मेले का आयोजन किया जा रहा है. लेकिन प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण अजतक इसे प्रसिद्धि नहीं मिली.

प्रशासनिक उदासीनता का शिकार बना गोदना सेमरिया मेला

सारण: सरयू नदी के तट पर लगने वाले ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. जिले के कोने-कोने से पवित्र स्नान करने और मेला का आनंद लेने श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला के चकाचौंध के आगे इस ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले की रौनक कम पड़ जाती है. सरकार की उदासीनता के कारण आज तक इस मेले को प्रसिद्धि नहीं मिली.

जिला मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पौराणिक गोदना सेमरिया मेला बिहार का एकमात्र ऐसा स्थान है. जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सहित कई ऋषियों की कथाएं एक साथ जुड़ी हुई हैं. वाल्मीकि रामायण में इस स्थान का संपूर्ण वर्णन है. कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि गौतम के श्राप से पत्थर बनी उनकी पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान श्रीराम ने बक्सर से सारण के रास्ते जनकपुर जाने के दौरान किया था.

saran
महर्षि गौतम मंदिर, रिविलगंज

भगवान श्रीराम ने किया था अहिल्या का उद्धार
इतिहासकार और शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, अपने अनुज लक्ष्मण और कुलगुरु विश्वामित्र जी के साथ अयोध्या से धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए जनकपुर जा रहे थे. जनकपुर जाने के दौरान उन्होंने बक्सर के जंगल में तारकासुर का वध किया. इसके बाद सरयू नदी पार कर जैसे ही वो तट पर आए तो भगवान श्रीराम का पैर अचानक उस शिलापट्ट से स्पर्श हुआ. तभी वो पत्थर नारी का रूप लेकर खड़ी हो गई. वह दिन कोई और नहीं बल्कि कार्तिक पूर्णिमा का दिन था, जिस दिन अहिल्या का उद्धार हुआ था.

जानकारी देते रिविलगंज के कार्यपालक पदाधिकारी और शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी

गोदना सेमरिया मेले का इतिहास
शोधकर्ताओं ने गोदना सेमरिया मेले के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान कर गौ माता को दान करने की परंपरा थी. बाद में गौ-दान का अपभ्रंश होकर इसका गोदना नाम पड़ गया. साथ ही श्रृंगी ऋषि मुनि का आश्रम होने के कारण श्रृंगी से सेमरिया का नाम पड़ गया, जिसे आज गोदना-सेमरिया के नाम से जाना जाता है.

saran
रौशन कुमार रौशन, कार्यपालक पदाधिकारी, रिविलगंज

1997 में राबड़ी देवी ने किया था मेले का उद्घाटन
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले का वर्ष 1997 में छपरा सदर के राजद विधायक सह बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री उदित राय, छपरा के राजद सांसद हिरालाल राय, महाराजगंज के सांसद प्रभुनाथ सिंह व शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी के संयुक्त प्रयास से बिहार के मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसे राजकीय स्तर पर मेला लगाने की घोषणा की थी. राबड़ी देवी ने इस मेले का उद्घाटन भी किया था. तब से प्रशासनिक स्तर पर हर साल मेला का आयोजन किया जाता है.

ये भी पढ़ें- बैकुंठ चतुर्दशी के स्नान को लेकर घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, इस दिन की है खास मान्यता

जोरों पर सेमरिया मेले को तैयारी
रिविलगंज नगर के कार्यपालक पदाधिकारी रौशन कुमार रौशन ने बताया कि ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले को तैयारी जोरों पर है. चारों ओर साफ-सफाई कराई जा रही है. घाटों को पूरी तरह से सजाया जाएगा. गंगा स्नान के दिन लगने वाले मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और देख भाल के लिए भी कई जगहों टेंट भी लगाने की तैयारी है ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो.

सारण: सरयू नदी के तट पर लगने वाले ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. जिले के कोने-कोने से पवित्र स्नान करने और मेला का आनंद लेने श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला के चकाचौंध के आगे इस ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले की रौनक कम पड़ जाती है. सरकार की उदासीनता के कारण आज तक इस मेले को प्रसिद्धि नहीं मिली.

जिला मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पौराणिक गोदना सेमरिया मेला बिहार का एकमात्र ऐसा स्थान है. जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सहित कई ऋषियों की कथाएं एक साथ जुड़ी हुई हैं. वाल्मीकि रामायण में इस स्थान का संपूर्ण वर्णन है. कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि गौतम के श्राप से पत्थर बनी उनकी पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान श्रीराम ने बक्सर से सारण के रास्ते जनकपुर जाने के दौरान किया था.

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महर्षि गौतम मंदिर, रिविलगंज

भगवान श्रीराम ने किया था अहिल्या का उद्धार
इतिहासकार और शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, अपने अनुज लक्ष्मण और कुलगुरु विश्वामित्र जी के साथ अयोध्या से धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए जनकपुर जा रहे थे. जनकपुर जाने के दौरान उन्होंने बक्सर के जंगल में तारकासुर का वध किया. इसके बाद सरयू नदी पार कर जैसे ही वो तट पर आए तो भगवान श्रीराम का पैर अचानक उस शिलापट्ट से स्पर्श हुआ. तभी वो पत्थर नारी का रूप लेकर खड़ी हो गई. वह दिन कोई और नहीं बल्कि कार्तिक पूर्णिमा का दिन था, जिस दिन अहिल्या का उद्धार हुआ था.

जानकारी देते रिविलगंज के कार्यपालक पदाधिकारी और शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी

गोदना सेमरिया मेले का इतिहास
शोधकर्ताओं ने गोदना सेमरिया मेले के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान कर गौ माता को दान करने की परंपरा थी. बाद में गौ-दान का अपभ्रंश होकर इसका गोदना नाम पड़ गया. साथ ही श्रृंगी ऋषि मुनि का आश्रम होने के कारण श्रृंगी से सेमरिया का नाम पड़ गया, जिसे आज गोदना-सेमरिया के नाम से जाना जाता है.

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रौशन कुमार रौशन, कार्यपालक पदाधिकारी, रिविलगंज

1997 में राबड़ी देवी ने किया था मेले का उद्घाटन
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले का वर्ष 1997 में छपरा सदर के राजद विधायक सह बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री उदित राय, छपरा के राजद सांसद हिरालाल राय, महाराजगंज के सांसद प्रभुनाथ सिंह व शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी के संयुक्त प्रयास से बिहार के मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसे राजकीय स्तर पर मेला लगाने की घोषणा की थी. राबड़ी देवी ने इस मेले का उद्घाटन भी किया था. तब से प्रशासनिक स्तर पर हर साल मेला का आयोजन किया जाता है.

ये भी पढ़ें- बैकुंठ चतुर्दशी के स्नान को लेकर घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, इस दिन की है खास मान्यता

जोरों पर सेमरिया मेले को तैयारी
रिविलगंज नगर के कार्यपालक पदाधिकारी रौशन कुमार रौशन ने बताया कि ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले को तैयारी जोरों पर है. चारों ओर साफ-सफाई कराई जा रही है. घाटों को पूरी तरह से सजाया जाएगा. गंगा स्नान के दिन लगने वाले मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और देख भाल के लिए भी कई जगहों टेंट भी लगाने की तैयारी है ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो.

Intro:SLUG:-HISTORICITY OF GODNA SEMARIA FAIR
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-एशिया प्रसिद्ध सोनपुर पशु मेला के चका चौंध के आगे सरयू नदी तट पर लगने वाले ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेला अपनी प्रसिद्धि को लेकर उद्धार के इन्तजार में हैं लेकिन आज तक प्रसिद्धि नही मिली हैं क्योंकि राज्य सरकार के द्वारा उपेक्षा की नजर देखी जाती हैं.

रिविलगंज नगर के कार्यपालक पदाधिकारी रौशन कुमार रौशन ने बताया कि ऐतिहासिक गोदना सेमरिया मेले की सफाई कराई जा रही हैं और पूरी तरह से सजाया जाएगा, गंगा स्नान के दिन लगने वाले मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व देख भाल के लिए भी कई जगह टेंट लगाया जाएगा ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो.

Byte:-रौशन कुमार रौशन, कार्यपालक पदाधिकारी, नगर पंचायत, रिविलगंज, सारण



Body:सारण जिला मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दुरी पर पौराणिक गोदना सेमरिया मेला जो वर्तमान समय में बिहार का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सहित कई ऋषियों की कथा एक साथ जुडी हुई है, बाल्मीकि रामायण में इस स्थान का संपूर्ण वर्णन है कहा जाता है की इसी स्थान पर महर्षि गौतम के श्राप से पत्थर बनी उनकी पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान श्रीराम ने ही बक्सर से सारण के रास्ते जनकपुर जाने के दौरान किया था.


इतिहासकार व शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, अपने अनुज लक्ष्मण व कुलगुरु विश्वामित्र जी के साथ अयोध्या से धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए जनकपुर जा रहे थे जाने के दौरान ही बक्सर के जंगल में तारकासुर का वध कर इसी रास्ते से सरयू नदी पार कर जैसे ही तट पर आए तो भगवान श्रीराम का पैर अचानक उस शिलापट्ट से जैसे ही स्पर्श हुआ तभी वो पत्थर नारी का रूप ले खड़ी हो गई, वह दिन कोई और बल्कि कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था जिस दिन अहिल्या का उद्दार हुआ था.


Byte:-रामायण सिंह जीवनदानी, शोधकर्ता
धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी





Conclusion:शोधकर्ता ने गोदना सेमरिया मेले की ऐतिहासिकता के बारे में बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान कर गौ माता को दान करने की परंपरा थी जिसे बाद के दिनों में गौ-दान का अपभ्रंश होकर गोदना नाम पड़ गया साथ ही श्रृंगी ऋषि मुनि का आश्रम होने के कारण श्रृंगी से सेमरिया का नाम पड़ गया जिसे आज गोदना-सेमरिया के नाम से जाना जाता हैं.



कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाला ऐतिहासिक मेला को वर्ष 1997 में छपरा सदर के राजद विधायक सह बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री उदित राय, छपरा के राजद सांसद हिरालाल राय, महाराजगंज के सांसद प्रभुनाथ सिंह व शोधकर्ता रामायण सिंह जीवनदानी के संयुक्त प्रयास से बिहार के मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसे राजकीय स्तर पर मेला लगाने की घोषणा की थी और खुद मेला का उद्घाटन करने भी आई हुई थी तब से प्रशासनिक स्तर पर मेला की तैयारी व उद्घाटन किया जाता हैं.
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