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गोपाष्टमी पर दंगल प्रतियोगिता में भिड़े बिहार, यूपी और झारखंड के पहलवान - छपरा में गोपाष्टमी के अवसर पर दंगल प्रतियोगिता

गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना के बाद छपरा में कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. जिसमें सारण जिले के छपरा, बनियापुर, तरैया और यूपी के बलिया, बैरिया और गोरखपुर से युवाओं की एक टीम आती है. जो कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना करतब दिखाती है.

कुश्ती लड़ते पहलवान
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Published : Nov 5, 2019, 10:16 AM IST

Updated : Nov 5, 2019, 3:13 PM IST

छपराः शहर से सटे 112 वर्ष पुराने श्री सारण पिंजरापोल गोशाला में गोपाष्टमी का आयोजन किया गया. जिसमें गौमाता की पूजा अर्चना की गई. इस मौके पर दंगल कुशती कार्यक्रम भी हुआ. जिसमें छपरा के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड और यूपी के पहलवानों ने भी हिस्सा लिया.

कुश्ती प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
दरअसल, गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना के बाद यहां कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है. जिसमें सारण जिले के छपरा, बनियापुर, तरैया और यूपी के बलिया, बैरिया और गोरखपुर से युवाओं की एक टीम आती है. जो कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना करतब दिखाती है. हालांकि पहले की अपेक्षा अब उस तरह की कुश्ती प्रतियोगिता नहीं होती. जिस कारण पहले वाले पहलवान अब नहीं आते हैं.

chhapra
गौमाता की पूजा करते लोग

गौमाता और उनके बछड़ों का श्रृंगार
वहीं, दूसरी तरफ आज के दिन गौमाता और उनके बछड़ों का श्रृंगार करके उनकी आरती उतारी जाती है. ऐसा माना जाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है, इसलिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है. गौ की परिक्रमा करना भी लाभ प्रायः होता है. मुख्य रूप से यह गोपूजन से जुड़ा पर्व है और इस दिन गौ की पूजा अर्चना की जाती है.

इसी दिन हुई थी परंपरा की शुरूआत
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन से ही गौमाता को चराने की परंपरा का शुभारंभ किया था. इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे. लेकिन गोपाष्टमी के दिन से बछड़ों के साथ ही गौमाताओं को भी चराना शुरू किया. तभी से गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना शुरू की गई. जो आज भी अनवरत जारी है.

दंगल प्रतियोगिता में कुश्ती लड़ते पहलवान

1908 में हुई थी इस गोशाला की स्थापना
बता दें कि श्री सारण पिंजरापोल गोशाला की स्थापना वर्ष 1908 में शहर के रतनपुरा मुहल्ले में स्व हरि प्रसाद के प्रयासों से की गई थी. इसका उद्देश्य वृद्ध, अपाहिज और असहाय गोवंश की रक्षा करना है. जिले का यह एक मात्र पंजीकृत गोशाला है, जो बाद में मारवाड़ी समाज के अन्य गोशाला संचालकों को दे दिया गया.

छपराः शहर से सटे 112 वर्ष पुराने श्री सारण पिंजरापोल गोशाला में गोपाष्टमी का आयोजन किया गया. जिसमें गौमाता की पूजा अर्चना की गई. इस मौके पर दंगल कुशती कार्यक्रम भी हुआ. जिसमें छपरा के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड और यूपी के पहलवानों ने भी हिस्सा लिया.

कुश्ती प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
दरअसल, गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना के बाद यहां कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है. जिसमें सारण जिले के छपरा, बनियापुर, तरैया और यूपी के बलिया, बैरिया और गोरखपुर से युवाओं की एक टीम आती है. जो कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना करतब दिखाती है. हालांकि पहले की अपेक्षा अब उस तरह की कुश्ती प्रतियोगिता नहीं होती. जिस कारण पहले वाले पहलवान अब नहीं आते हैं.

chhapra
गौमाता की पूजा करते लोग

गौमाता और उनके बछड़ों का श्रृंगार
वहीं, दूसरी तरफ आज के दिन गौमाता और उनके बछड़ों का श्रृंगार करके उनकी आरती उतारी जाती है. ऐसा माना जाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है, इसलिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है. गौ की परिक्रमा करना भी लाभ प्रायः होता है. मुख्य रूप से यह गोपूजन से जुड़ा पर्व है और इस दिन गौ की पूजा अर्चना की जाती है.

इसी दिन हुई थी परंपरा की शुरूआत
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन से ही गौमाता को चराने की परंपरा का शुभारंभ किया था. इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे. लेकिन गोपाष्टमी के दिन से बछड़ों के साथ ही गौमाताओं को भी चराना शुरू किया. तभी से गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना शुरू की गई. जो आज भी अनवरत जारी है.

दंगल प्रतियोगिता में कुश्ती लड़ते पहलवान

1908 में हुई थी इस गोशाला की स्थापना
बता दें कि श्री सारण पिंजरापोल गोशाला की स्थापना वर्ष 1908 में शहर के रतनपुरा मुहल्ले में स्व हरि प्रसाद के प्रयासों से की गई थी. इसका उद्देश्य वृद्ध, अपाहिज और असहाय गोवंश की रक्षा करना है. जिले का यह एक मात्र पंजीकृत गोशाला है, जो बाद में मारवाड़ी समाज के अन्य गोशाला संचालकों को दे दिया गया.

Intro:SLUG:-GOPASHTMI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-छपरा शहर से सटे 112 वर्ष पुराने श्री सारण पिंजरापोल गोशाला में धूमधाम से कार्तिक शुक्ल पक्ष के अष्टमी को गोपाष्टमी का आयोजन किया गया, जिसमें गौ माता की पूजा अर्चना की गई, मुख्य रूप से यह गोपूजन से जुड़ा पर्व है और इस दिन गौ का पूजन और अर्चन किया जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इस दिन से ही गौमाता को चराने की परंपरा का शुभारंभ किया था इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे लेकिन गोपाष्टमी के दिन से बछड़ों के साथ ही गौमाताओं को भी चराना शुरू किया था तभी से गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना शुरू की गई थी जो आज भी अनवरत जारी हैं.


Body:आज के दिन गौ माता और उनके बछड़ों का श्रृंगार कर के उनकी आरती उतारी जाती है, ऐसा माना जाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है, इसलिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है, गौ की परिक्रमा करना भी लाभ प्रायः होता है.

गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा अर्चना के बाद सारण ज़िले के छपरा, बनियापुर, तरैया व कई अन्य जगहों जैसे यूपी के बलिया, बैरिया व गोरखपुर से युवाओं की एक टीम आती हैं जो कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना करतब दिखाते हैं, हालांकि पहले की अपेक्षा अब उस तरह की कुश्ती प्रतियोगिता नही होता हैं जिस कारण पहले वाले पहलवान अब नही आते हैं.


Byte:-अजय कुमार गोयनका, संचालक
जनक राय, गौसेवक

Conclusion:पूरे देश में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है, खास तौर पर गौशालाओं के लिए यह बड़े महत्‍व का उत्सव माना जाता है. गौशालाओं में एक मेले जैसा माहौल हो जाता है, गांव की महिलाएं घर-घर व पुरूष वर्ग अपने गांव में इसे अपने अंदाज से मनाते है.

श्री सारण पिंजरापोल गोशाला की स्थापना वर्ष 1908 में शहर के रतनपुरा मुहल्ले में स्व हरि प्रसाद के प्रयासों से की गई थी. इसका उद्देश्य वृद्ध, अपाहिज तथा असहाय गोवंश की रक्षा करना है. जिले का यह एक मात्र पंजीकृत गोशाला है जो बाद में मारवाड़ी समाज के अन्य गोशाला संचालकों के आग्रह पर गोवंश की बढ़ती संख्या के मद्देनजर मांझा स्टेट में शहर से चार किलोमीटर दूर करिंगा गांव में 18 बिगहा जमीन दान दे दी थी जहां सैकड़ों की संख्या में गोवंश के रहने के लिए शेड, नाद, कुंआ, चिकित्सालय, चारे की व्यवस्था रहती थी. यहीं नहीं बाद में स्व. बहुरिया फुलपति कुंवर ने भी छह बिगहा जमीन दिलिया रहिमपुर में तथा पांच बीघा जमीन गड़खा के साधपुर में बजाप्ता रजिस्ट्री कर दान कर दी.
Last Updated : Nov 5, 2019, 3:13 PM IST
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