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छपरा: वर्षो से उपेक्षित है चर्चित वैष्णवी माता गढ़देवी का मंदिर

कला, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के चाहरदीवारी निर्माण के बाद स्थानीय लोग आपसी सहयोग से बना रहे मंदिर निर्माण को अधूरा छोड़ दिया है.

उपेक्षित मंदिर
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Published : Apr 10, 2019, 4:20 AM IST

छपरा: जिले के बनियापुर प्रखण्ड के कराह पंचायत के इब्राहिमपुर गांव के सीमा पर स्थित चर्चित वैष्णवी माता गढ़देवी मंदिर पर सरकार का ध्यान नही जा रहा है. लोगों के आस्था का केंद्र रहे इस मंदिर और इसके परिसर को कला संस्कृति युवा विभाग ने एक दशक पूर्व ही चाहरदीवारी निर्माण करवा कर संरक्षित करने का काम किया था. इसे दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने का भी सार्थक प्रयास किया गया था.

मंदिर का हुआ है अधूरा निर्माण

कला, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के चाहरदीवारी निर्माण के बाद स्थानीय लोग आपसी सहयोग से बना रहे मंदिर निर्माण को अधूरा छोड़ दिया है. गढ़देवी मंदिर और उसका परिसर धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है. सौंदर्यीकरण के नाम पर मनरेगा के तहत लाखों रुपये का उठाव कर केवल बड़े-बड़े गड्ढे खुदवाये गये हैं जो लोगो के लिए परेशानी का सबब है.

स्वर्णिम रहा है इतिहास

लोकचर्चाओं के अनुसार भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ, ताड़कासुर बध और अहिल्या उद्धार के बाद इसी रास्ते से होकर जनकपुर गये थे. प्राचीन काल में इसे हरिपुर के राह के नाम से जाना जाता था. वहीं लोगों का कहना है कि श्री राम भी इस स्थल की पूजा अर्चना किये थे.

पिंडी स्वरूप की होती है पूजा अर्चना

गौरतलब है कि यहां माता के सातो बहनों की पिंड स्वरूप की पूजा करने की परंपरा है. स्थानीय गांव के लोग सभी मांगलिक कार्यो की शुरुआत माता रानी की पूजा अर्चना से ही करते हैं. वैसे तो माता की पूजा प्रतिदिन की जाती है. परंतु, शारदीय तथा चैत्र नवरात्रा में मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. चैत नवरात्रा में भी गढ़देवी मंदिर परिसर में मेला भी लगता है.

छपरा: जिले के बनियापुर प्रखण्ड के कराह पंचायत के इब्राहिमपुर गांव के सीमा पर स्थित चर्चित वैष्णवी माता गढ़देवी मंदिर पर सरकार का ध्यान नही जा रहा है. लोगों के आस्था का केंद्र रहे इस मंदिर और इसके परिसर को कला संस्कृति युवा विभाग ने एक दशक पूर्व ही चाहरदीवारी निर्माण करवा कर संरक्षित करने का काम किया था. इसे दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने का भी सार्थक प्रयास किया गया था.

मंदिर का हुआ है अधूरा निर्माण

कला, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के चाहरदीवारी निर्माण के बाद स्थानीय लोग आपसी सहयोग से बना रहे मंदिर निर्माण को अधूरा छोड़ दिया है. गढ़देवी मंदिर और उसका परिसर धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है. सौंदर्यीकरण के नाम पर मनरेगा के तहत लाखों रुपये का उठाव कर केवल बड़े-बड़े गड्ढे खुदवाये गये हैं जो लोगो के लिए परेशानी का सबब है.

स्वर्णिम रहा है इतिहास

लोकचर्चाओं के अनुसार भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ, ताड़कासुर बध और अहिल्या उद्धार के बाद इसी रास्ते से होकर जनकपुर गये थे. प्राचीन काल में इसे हरिपुर के राह के नाम से जाना जाता था. वहीं लोगों का कहना है कि श्री राम भी इस स्थल की पूजा अर्चना किये थे.

पिंडी स्वरूप की होती है पूजा अर्चना

गौरतलब है कि यहां माता के सातो बहनों की पिंड स्वरूप की पूजा करने की परंपरा है. स्थानीय गांव के लोग सभी मांगलिक कार्यो की शुरुआत माता रानी की पूजा अर्चना से ही करते हैं. वैसे तो माता की पूजा प्रतिदिन की जाती है. परंतु, शारदीय तथा चैत्र नवरात्रा में मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. चैत नवरात्रा में भी गढ़देवी मंदिर परिसर में मेला भी लगता है.

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छपरा: जिले के बनियापुर प्रखण्ड के कराह पंचायत के इब्राहिमपुर गांव के सीमा पर स्थित गढ़देवी के रूप में चर्चित वैष्णवी माता गढ़देवी पर सरकार का ध्यान नही है। लोगो के आस्था का केंद्र रहे इस मंदिर और परिसर को कला संस्कृति युवा विभाग ने एक दशक पूर्व ही चाहरदीवारी का निर्माण कर इसे संरक्षित करने तथा दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने का सार्थक प्रयास किया था।कला संस्कृति और पुरातत्व विभाग के चाहरदीवारी निर्माण के बाद स्थानीय लोग आपसी सहयोग से बन रहे मंदिर को अधूरा छोड़ दिया। आज गढ़देवी मंदिर तथा उसके परिसर धीरे धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है। सौंदर्यीकरण के नाम पर मनरेगा के तहत लाखो रुपये का उठाव कर गढ़ में केवल बड़े बड़े गड्ढे खुदवाये गये हैं जो लोगो को मुह चिड़ा रहे हैं।। Body:अहिल्या उद्धार के बाद इसी रास्ते से गुजरे थे पुरुषोत्तम राम

लोकचर्चाओं के अनुसार भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ तड़कासुर बध और अहिल्या उद्धार के बाद इसी रास्ते से होकर जनकपुर गये थे। प्राचीन काल मे इसे हरिपुर के राह के नाम से जाना जाता था। जो अब हरपुर तथा कराह नामक
दो अलग अलग पंचायत है। लोगो का दावा है कि श्री राम भी इस स्थल की पूजा अर्चना कर ही प्रस्थान किये थे। दूसरे चर्चाओं के अनुसार सारण जिले के प्रमुख व्यपारिक स्थल सारण से पटना को जोड़ने वाली गंडकी नदी और और नककटा नदी के बीच बनियापुर प्रखण्ड मुख्यालय से ढाई किलोमीटर पूरब माता का यह मनोरम स्थल है। जहाँ सती के नाक गिरे थे और माता रानी का अवतरण हुआ था। नककटा आज नकटा नदी के नाम से प्रसिद्ध है।

पिंडी स्वरूप की होती है पूजा अर्चना

यहां माता के सातों बहनों की पिंडी स्वरूप की पूजा करने की परंपरा है। स्थानीय गाव हरपुर, कराह, भूमिहरा, इब्राहिमपुर सहित दर्जनों गांव के सभी मांगलिक कार्यो की शुरुआत माता रानी की पूजा अर्चना से ही शुरू होती है। गढ़देवी की वैष्णो माता सैकड़ो गांव के आस्था का केंद्र है। वैसे तो माता की पूजा प्रतिदिन सैकड़ो भक्तों द्वारा की जाती है। परंतु, शारदीय तथा चैत्र नवरात्र में मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। चैत नवरात्र में भी माँ की पूजा अर्चना से माहौल भक्तिमय बना रहता है। नवरात्र में गढ़देवी मंदिर परिसर में मेला भी लगता है।

तत्कालीन कला संस्कृति मंत्री सिग्रीवाल ने ली थी सुध

तत्कालीन कला संस्कृति मंत्री स्थानीय जनार्दन सिंह सिग्रीवाल द्वारा कला सांस्कृतिक मंत्रालय बिहार सरकार ने 4 अप्रैल 2007 को लाखों के लागत से गढ़ की पुरातात्विक इतिहास को संरक्षित करने के उद्देश्य से चाहरदीवारी का निर्माण कराया गया। कला सांस्कृतिक और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने इस स्थल का मुआयना कर इस गढ़ को पाल कालीन बताया था। चाहरदिवारी के बाद कला सांस्कृतिक मंत्रालय ने इसके सौंदर्यीकरण की रूप रेखा तैयार की थी जो सरकार के ठंडे बस्ते में है।Conclusion:बारह वर्षों बाद भी मंदिर का सौंदर्यकरण नहीं होने से भक्तो में मायूसी है। अब देखना यह है कि कब तक मंदिर को सरकारी महकमों द्वारा सौंदयकृत किया जाता है।
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