समस्तीपुर: देवकीनंदन खत्री भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय तिलिस्मी लेखक हैं. चंद्रकांता और भूतनाथ जैसे तिलस्मी उपन्यासों से उन्हें ख्याति मिली. देवकीनंदन खत्री का जन्म बिहार के समस्तीपुर में हुआ था पर लेखक का मालिनगर गांव गुमनामी की दौर से गुजर रहा है. दरअसल इसके पीछे कसूरवार हमारे हुक्मरान ही है. जो इस तिलस्मी लेखक के यादों को सहेजने की जहमत ही नहीं उठाया.
मालिनगर ननिहाल में हुई शिक्षा दीक्षा: दरअसल निरिजा गुलेरी द्वारा निर्मित यह धारावाहिक चंद्रकांता देवकीनन्दन खत्री की लिखी उपन्यास पर आधारित है. वैसे तो तिलिस्मी सोच के इस लेखक को पूरा देश जानता है, लेकिन शायद ही यह कोई जान पाया की इस लेखक का जन्म इसी जिले के कल्याणपुर प्रखंड स्थित मालिनगर मे हुआ था. गांव वालों की माने तो वे मालिनगर उनका ननिहाल था. यही वे जन्म लिए व यही उनकी शिक्षा दीक्षा हुई.
देवकीनंदन खत्री के पाण्डुलिपि सहेजने की जरुरत: गांव के ही रहनेवाले साहित्यकार उमाकांत वाजपयी के अनुसार आज भी उनकी लिखी कई पाण्डुलिपि उनके पास है. इसी गांव मे रहकर उन्होंने चंद्रकांता समेत कई उपन्यासों को लिखा. वहीं अब गांव वाले की प्रयास से यह कोशिश हो रही है कि इस गांव में एक संस्था का निर्माण हो. जहां उनके जीवन से जुड़ी यादों के साथ ही उनकी पाण्डुलिपियाँ को संग्रहित किया जाये.अब इस गांव मे उनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं रहता.
गांव के लोग आ रहे आगे: स्थानीय लोगों के अनुसार उनके पूर्वज 1960 के करीब पुस्तैनी बंगला व जमीन बेचकर से चले गए. वैसे इस गांव मे देवकीनन्दन खत्री के करीबी पूर्वज के सदस्य संजय खत्री की माने तो देवकीनंदन खत्री के इस तिलिस्मी आभा को सहेजने की वादे जनप्रतिनिधियों ने जरूर किया, लेकिन किसी ने अमल नहीं किया. वैसे अब यहां का खत्री समाज व अन्य गांव वाले मिलकर तिल्स्मी लेखक व इस गांव मे जन्मे देवकीनन्दन खत्री को लोग इस प्रयास मे जुटे हैं.
"उनकी लिखी कई पाण्डुलिपि हैं. गांव में रहकर उन्होंने चंद्रकांता समेत कई उपन्यासों को लिखा. अब गांव वाले की प्रयास से यह कोशिश हो रही है कि इस गांव में एक संस्था का निर्माण हो. उनके जीवन से जुड़ी यादों के साथ ही उनकी पाण्डुलिपियां को संग्रहित किया जाये." -उमाकांत बाजपेई, साहित्यकार व ग्रामीण
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