समस्तीपुर: लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का दिन नजदीक आते-आते जिले में चुनावी शोर तेज हो गया है. पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर है. इन तमाम बयानबाजियों में जनता से जुड़े असल मुद्दे पूरी तरह गायब हैं.
जिले में स्थित उजियारपुर के लोगों का मानना है कि 2014 की जंग हो या फिर अब 2019 की लड़ाई, सत्ता पक्ष के तमाम वायदे महज वायदे ही बनकर रह गए हैं.
पक्ष-विपक्ष दोनों एक जैसे
स्थानीय लोगों की मानें तो बीते पांच वर्षों में सत्तापक्ष वादे कर भूले और विपक्ष उन मुद्दों को जनता का आवाज बनाने का सिर्फ भरोसा देते रह गए. लोगों का कहना है कि उजियारपुर की वास्तविक समस्या नेताओं के भाषणों से नदारद है. पक्ष तो चर्चा ही नहीं करता वहीं विपक्ष को इसमें कोई दम नहीं दिख रहा है.
जिले में समस्या, ठप पड़े हैं कई मिल
जिले के बड़े मुद्दों पर गौर करें तो नए उद्योगों की नींव रखी जानी चाहिए पर यहां तो पहले से मौजूद चीनी मिल भी बंद पड़ी है. इलाके का बंद जुट मिल, पेपर मिल किसी भी पार्टी का मुद्दा नहीं बना. वहीं अगर किसानों की बात की जाये तो जिले में आधे से ज्यादा प्रखंड वर्षों से सूखे के चपेट में है. लेकिन, राजकीय नलकूप योजना पूरी तरह ठप है.
नहीं है शिक्षा के आसार
नून नदी सिंचाई परियोजना जंहा पूरी तरह फेल है, वहीं बलान नदी पूरी तरह नाले में तब्दील हो चुकी है. जिले में शिक्षा का स्तर भी सोचनीय है. न तो इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और न मेडिकल कॉलेज. उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज को लेकर ऐलान भी हुआ. लेकिन, वर्षों से योजना अधर में ही लटकी पड़ी है. युवाओं की बात करें तो वे छोटे-छोटे कोर्सेस कर दिन काटने को मजबूर है. वहीं पटवन के आभाव में किसानों ने खेती छोड़ मजदूरी करनी शुरू कर दी है.
सरकार का ढीला-ढाला रवैया
जिले में रेल मंडल होते हुए भी आज तक समस्तीपुर स्टेशन से एक भी लंबी दूरी की ट्रेन नहीं चलती है. इन तमाम मुद्दों के आधार पर 2014 में वोट मांगे गए थे, इसबार तो ये मुद्दे ही नहीं बने. शर्मनाक तो यह है कि जब इन मुद्दों के बाबत महिला विंग्स लोजपा व जिलाअध्यक्ष नीलम सिन्हा से सवाल किया गया तो वे टेक्निकल पक्ष की बात समझा कर बात बदलने की कोशिश करती दिखी.
बहरहाल, समस्तीपुर जिले के दोनों लोकसभा सीटों पर लगभग 33 लाख वोटर इस बार अपने इन्हीं जरूरतों के मद्देनजर मतदान करेंगे और अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे.