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उजियारपुर: लोग बोले- नेताओं के भाषण से गायब हैं हमारे वास्तविक मुद्दे

लोगों का कहना है कि समस्याओं पर पक्ष तो चर्चा ही नहीं करता, विपक्ष को भी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. जिले में आधे से ज्यादा प्रखंड वर्षों से सूखे की चपेट में हैं.

बदहाल स्थिति में गांव
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Published : Apr 23, 2019, 5:31 PM IST

समस्तीपुर: लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का दिन नजदीक आते-आते जिले में चुनावी शोर तेज हो गया है. पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर है. इन तमाम बयानबाजियों में जनता से जुड़े असल मुद्दे पूरी तरह गायब हैं.
जिले में स्थित उजियारपुर के लोगों का मानना है कि 2014 की जंग हो या फिर अब 2019 की लड़ाई, सत्ता पक्ष के तमाम वायदे महज वायदे ही बनकर रह गए हैं.

पक्ष-विपक्ष दोनों एक जैसे
स्थानीय लोगों की मानें तो बीते पांच वर्षों में सत्तापक्ष वादे कर भूले और विपक्ष उन मुद्दों को जनता का आवाज बनाने का सिर्फ भरोसा देते रह गए. लोगों का कहना है कि उजियारपुर की वास्तविक समस्या नेताओं के भाषणों से नदारद है. पक्ष तो चर्चा ही नहीं करता वहीं विपक्ष को इसमें कोई दम नहीं दिख रहा है.

जिले में समस्या, ठप पड़े हैं कई मिल
जिले के बड़े मुद्दों पर गौर करें तो नए उद्योगों की नींव रखी जानी चाहिए पर यहां तो पहले से मौजूद चीनी मिल भी बंद पड़ी है. इलाके का बंद जुट मिल, पेपर मिल किसी भी पार्टी का मुद्दा नहीं बना. वहीं अगर किसानों की बात की जाये तो जिले में आधे से ज्यादा प्रखंड वर्षों से सूखे के चपेट में है. लेकिन, राजकीय नलकूप योजना पूरी तरह ठप है.

प्रचार करते भाजपा के लोग

नहीं है शिक्षा के आसार
नून नदी सिंचाई परियोजना जंहा पूरी तरह फेल है, वहीं बलान नदी पूरी तरह नाले में तब्दील हो चुकी है. जिले में शिक्षा का स्तर भी सोचनीय है. न तो इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और न मेडिकल कॉलेज. उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज को लेकर ऐलान भी हुआ. लेकिन, वर्षों से योजना अधर में ही लटकी पड़ी है. युवाओं की बात करें तो वे छोटे-छोटे कोर्सेस कर दिन काटने को मजबूर है. वहीं पटवन के आभाव में किसानों ने खेती छोड़ मजदूरी करनी शुरू कर दी है.

सरकार का ढीला-ढाला रवैया
जिले में रेल मंडल होते हुए भी आज तक समस्तीपुर स्टेशन से एक भी लंबी दूरी की ट्रेन नहीं चलती है. इन तमाम मुद्दों के आधार पर 2014 में वोट मांगे गए थे, इसबार तो ये मुद्दे ही नहीं बने. शर्मनाक तो यह है कि जब इन मुद्दों के बाबत महिला विंग्स लोजपा व जिलाअध्यक्ष नीलम सिन्हा से सवाल किया गया तो वे टेक्निकल पक्ष की बात समझा कर बात बदलने की कोशिश करती दिखी.
बहरहाल, समस्तीपुर जिले के दोनों लोकसभा सीटों पर लगभग 33 लाख वोटर इस बार अपने इन्हीं जरूरतों के मद्देनजर मतदान करेंगे और अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे.

समस्तीपुर: लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का दिन नजदीक आते-आते जिले में चुनावी शोर तेज हो गया है. पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर है. इन तमाम बयानबाजियों में जनता से जुड़े असल मुद्दे पूरी तरह गायब हैं.
जिले में स्थित उजियारपुर के लोगों का मानना है कि 2014 की जंग हो या फिर अब 2019 की लड़ाई, सत्ता पक्ष के तमाम वायदे महज वायदे ही बनकर रह गए हैं.

पक्ष-विपक्ष दोनों एक जैसे
स्थानीय लोगों की मानें तो बीते पांच वर्षों में सत्तापक्ष वादे कर भूले और विपक्ष उन मुद्दों को जनता का आवाज बनाने का सिर्फ भरोसा देते रह गए. लोगों का कहना है कि उजियारपुर की वास्तविक समस्या नेताओं के भाषणों से नदारद है. पक्ष तो चर्चा ही नहीं करता वहीं विपक्ष को इसमें कोई दम नहीं दिख रहा है.

जिले में समस्या, ठप पड़े हैं कई मिल
जिले के बड़े मुद्दों पर गौर करें तो नए उद्योगों की नींव रखी जानी चाहिए पर यहां तो पहले से मौजूद चीनी मिल भी बंद पड़ी है. इलाके का बंद जुट मिल, पेपर मिल किसी भी पार्टी का मुद्दा नहीं बना. वहीं अगर किसानों की बात की जाये तो जिले में आधे से ज्यादा प्रखंड वर्षों से सूखे के चपेट में है. लेकिन, राजकीय नलकूप योजना पूरी तरह ठप है.

प्रचार करते भाजपा के लोग

नहीं है शिक्षा के आसार
नून नदी सिंचाई परियोजना जंहा पूरी तरह फेल है, वहीं बलान नदी पूरी तरह नाले में तब्दील हो चुकी है. जिले में शिक्षा का स्तर भी सोचनीय है. न तो इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और न मेडिकल कॉलेज. उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज को लेकर ऐलान भी हुआ. लेकिन, वर्षों से योजना अधर में ही लटकी पड़ी है. युवाओं की बात करें तो वे छोटे-छोटे कोर्सेस कर दिन काटने को मजबूर है. वहीं पटवन के आभाव में किसानों ने खेती छोड़ मजदूरी करनी शुरू कर दी है.

सरकार का ढीला-ढाला रवैया
जिले में रेल मंडल होते हुए भी आज तक समस्तीपुर स्टेशन से एक भी लंबी दूरी की ट्रेन नहीं चलती है. इन तमाम मुद्दों के आधार पर 2014 में वोट मांगे गए थे, इसबार तो ये मुद्दे ही नहीं बने. शर्मनाक तो यह है कि जब इन मुद्दों के बाबत महिला विंग्स लोजपा व जिलाअध्यक्ष नीलम सिन्हा से सवाल किया गया तो वे टेक्निकल पक्ष की बात समझा कर बात बदलने की कोशिश करती दिखी.
बहरहाल, समस्तीपुर जिले के दोनों लोकसभा सीटों पर लगभग 33 लाख वोटर इस बार अपने इन्हीं जरूरतों के मद्देनजर मतदान करेंगे और अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे.

Intro:जिले के दोनों लोकसभा सीटों को लेकर करीब आते चुनाव की तारीख ने जिले में चुनावी शोर को काफी बढ़ा दिया है । पक्ष व विपक्ष पर हमले भी खूब हो रहै , लेकिन अचरज की बात है की , इसमें जनता से जुड़े इन लोकसभा क्षेत्र के असल मुद्दे पूरी तरह गायब है । 2014 का जंग हो या फिर अब 2019 का , सत्ता पक्ष ने जीतने वादे किए वे वादे बनकर ही रह गए । वंही विपक्ष ने जिन मुद्दों के आधार पर जनता से समर्थन मांगा , उसको लेकर कभी भी विपक्ष धारदार नही हुआ ।


Body:चुनाव के दौरान वैसे तो स्थानीय मुद्दों के आधार पर बड़े बड़े सियासी पासे फेल हो जाया करते है । लेकिन अब सत्ता पक्ष हो या विपक्ष , उन्हें इसका खौफ नही । बीते पांच वर्षों की अगर बात की जाए तो , पक्ष वादे कर भूले और विपक्ष उन मुद्दों को जनता का आवाज बनाने का सिर्फ भरोसा देते रह गए । एक बार फिर 2019 का जंग शुरू हो गया , लेकिन इस चुनाव जनता के वे तमाम मुद्दे गायब है । पक्ष इसका चर्चा नही करता तो विपक्ष को इसमें कोई दम नही दिख रहा । जाति धर्म के सियासी गणित से लेकर बड़े तारणहार के सियासी हवा के बलबूते सभी अपनी बैतरनी पार करने में जुट गए है । वंही अगर जिले के बड़े मुद्दों पर गौर करे तो , नए उधोगों की नींव तो जाने दे , बन्द चीनी मिल ,जुट मिल , पेपर मिल किन्ही का मुद्दा नही बना। अब अगर किसानों की बात की जाये तो , जिले में आधे से ज्यादा प्रखंड वर्षो से सूखे के चपेट में है , लेकिन राजकीय नलकूप योजना पूरी तरह ठप है । नून नदी सिंचाई परियोजना जंहा पूरी तरह फेल है वंही बलान नदी पूरी तरह नाले में तब्दील हो गया । शिक्षा का हाल वही है , न तो इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और न मेडिकल कॉलेज । उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज को लेकर एलान भी हुआ , लेकिन वर्षो से योजना अधर में । जिले में रेल मंडल होते हुए आज तक इस समस्तीपुर स्टेशन से एक भी लंबी दूरी की ट्रेन नही चलती । यैसे जाने कितने मुद्दे जिनके आधार पर 2014 में वोट मांगे गए थे । लेकिन 2019 में यह मुद्दा भी इन सियासी दलों के लिए नही रहा । वैसे इस बाबत सवाल पूछने पर सत्तापक्ष के नेता टेक्निकल पक्ष की बात करने लगते है ।

बाईट - नीलम सिन्हा , जिला अध्यक्ष , महिला विंग्स लोजपा ।

वीओ - इसे अगर सियासी बेशर्मी कहे तो शायद गलत नही होगा । कर्पूरी के इस धरती पर रोजगार के नए साधन क्या , पुराने एक एक कर बन्द होते जा रहे । युवाओं की बात करने वाले इस बात से बेफिक्र है की , छोटे छोटे कोर्सेस को लेकर यंहा के युवा दूसरे जिलों का मुंह ताकते है । पटवन के आभाव में किसानों ने खेती छोड़ मजदूरी शुरू कर दी । सत्तापक्ष तो कुर्सी के खुमार में यह सब भुला , विपक्ष का भी यह मुद्दा नही बन सका । वैसे बिहार के सबके बड़ी विपक्षी दल के नेता ने इस मामले पर यह जरूर दलील दिया की , वे जनता को सरकार के भूले वादे से रूबरू करा रहे ।

बाईट - राजेश कुमार , नेता , राजद ।


Conclusion:बहरहाल पक्ष हो या विपक्ष , दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे है । इन्हें जनता के मुद्दे से नही उनके मत से मतलब है । लेकिन सवाल क्या समस्तीपुर जिले के दोनों लोकसभा सीटों पर लगभग 33 लाख वोटर इस बार अपने इन जरूरी जरूरतों के आधार पर वोटिंग करेंगे ।

अमित कुमार की रिपोर्ट ।
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