समस्तीपुर: राजनीतिक तौर पर समस्तीपुर को जननायक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जन्म और कर्मभूमि के रूप में ज्यादा जाना जाता है. लेकिन मिथिला का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला इस जिला का अपना एक गौरवशाली इतिहास है. 1972 में दरभंगा से अलग होकर बने इस जिले का नाम 13वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन के नाम पर पड़ा.
जिले में समस्तीपुर और उजियारपुर दो लोकसभा क्षेत्र
जिले में समस्तीपुर और उजियारपुर दो लोकसभा क्षेत्र है. समस्तीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा की सीटें समस्तीपुर, रोसड़ा, वारिसनगर, कल्याणपुर, हायाघाट और कुशेश्वर स्थान है. हालांकि हायाघाट और कुशेश्वर स्थान विधानसभा क्षेत्र दरभंगा जिले में आता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, समस्तीपुर जिले की कुल आबादी 42 लाख 54 हजार 782 है. यहां की दोनों लोकसभा क्षेत्र में 32 लाख 25 हजार मतदाता हैं. जिसमें समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में 16 लाख 36 हजार 983 मतदाता हैं, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या करीब 8 लाख 70 हजार 329 तो महिला मतदाताओं की संख्या 7 लाख 66 हजार 628 के करीब है.
एक बार फिर पासवान के सामने अशोक राम
2019 लोकसभा चुनाव को लेकर काउंट डाउन शुरू हो गया है. सियासी बिसात भी बिछाई जा रही है. चंद दिनों बाद लोकसभा चुनाव है. ऐसे में यहां राजनीतिक माहौल भी गरमाने लगा है. लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान समस्तीपुर के सांसद हैं. पिछले चुनाव में पासवान को कांग्रेस के डॉक्टर अशोक राम से कड़ी चुनौती मिली थी. पासवान महज 6 हजार 872 वोट से चुनाव जीत पाए थे. उन्हें जहां 31.33 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी को 30.53 प्रतिशत लोगों ने अपना मत दिया. 2014 के चुनाव में यहां के वोटरों ने नोटा बटन भरपूर इस्तेमाल किया. 3.38 प्रतिशत वोट के साथ कुल 29 हजार 211 नोटा दर्ज हुए.
रामचंद्र पासवान को जीत की उम्मीद
हालांकि इस बार रामचंद्र पासवान का मानना है कि जेडीयू के साथ आने की वजह से इस बार उनकी बड़ी जीत होने वाली है. लेकिन समस्तीपुर की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि काम को लेकर यहां के सांसद को वोट मिलना मुश्किल है. हां अगर मोदी लहर ने फिर से काम किया तो रामचंद्र पासवान को जीत मिल सकती है.
सदन में सांसद का रिपोर्ट कार्ड खराब
रामचंद्र पासवान की शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक है. उनका 5 साल के संसदीय कार्यकाल का रिपोर्ट काफी खराब रहा है. पासवान सदन में मात्र 2 बार बहस में शामिल हुए और 3 सवाल पूछे. उन्होंने 5 साल में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल पेश नहीं किया.
पासवान ने सांसद निधि किया खर्च
हालांकि, सांसद निधि खर्च करने में रामचंद्र पासवान काफी अव्वल रहे. समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र के लिए 25 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित है. ब्याज के साथ 26 करोड़ 88 लाख रुपये जारी किए गए. इसमें कुल राशि का 93.73 प्रतिशत हिस्सा खर्च हुआ, जबकि लगभग 6 प्रतिशत राशि बचा रह गया.
जिले में बुनियादी समस्या बरकरार
समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र में कई परियोजनाएं शुरू तो हुईं, लेकिन 5 साल में काम पूरा नहीं हो सका. कहीं अधूरी सड़क, कहीं जलापूर्ति, कहीं जल निकासी, तो कहीं बिजली जैसी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं. वर्षों पुरानी समस्याएं बरकरार हैं तो आधे-अधूरे काम से जनता परेशान है. इस लोकसभा क्षेत्र में 95 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. इसीलिए अगर जनता से जुड़ी समस्याओं पर गौर करें किसानों से जुड़े मुद्दे सबसे ज्यादा हावी रहते हैं.
समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र को अति पिछड़ा इलाके का दर्जा
संसदीय क्षेत्र घोषित होते ही इसे बिहार के अति पिछड़े इलाके का दर्जा दिया गया था. लेकिन केंद्र से अलग राशि दिए जाने के बाद भी यहां विकास नहीं हुआ. इसके पिछड़ेपन के कई कारण हैं. पूसा स्थित राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय को छोड़ यहां कोई तकनीकी शिक्षण संस्थान नहीं है. स्वास्थ्य सेवा का हाल भी कुछ ठीक नहीं है. एक फुट ओवरब्रिज के भरोसे पूरा शहर है और जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा है. तो वहीं, बाढ़ और नदियों के कटाव से यहां के कई गांव प्रभावित हैं.
उद्योगों पर लगा ताला
पिछले पांच साल में उधोग को लेकर यहां कुछ भी नया नहीं हुआ. उम्मीद तो जगाई गयी थी कि जिले में नए उधोग लगेंगे, लेकिन बंद पड़े पुराने चीनी मिल को खुलवाने के लिए भी कोई पहल नहीं हुआ. उत्तर बिहार का गौरव रहा रामेश्वर जुट मिल भी बीते दो सालों से बंद है. इस वजह से यहां काम करने वाले 5 हजार से ज्यादा कर्मचारी और उनके परिवार भूखे मरने के कगार पर हैं. नतीजतन इलाके में रहने वाले 65 हजार वोटरों ने गुस्से में इसबार मिल नहीं तो वोट नहीं का ऐलान कर दिया है.
बंद पड़ा चीनी मिल बड़ा चुनावी मुद्दा
कभी हजारों लोगों की कमाई का जरिया रहा चीनी मिल भी अब जब्त होने की कगार पर पर है. लगभग 100 साल पुराना यह मिल बीते 21 सालों से बंद है. अब तो समस्तीपुर को-ऑपरेटिव बैंक ने अपने 5 करोड़ 19 लाख से अधिक बकाया राशि को लेकर इस मिल की अचल संपत्ति को जब्त करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी है. चीनी मिल बंद होने से सैकड़ों लोगों का रोजगार छिन गया और किसानों की आय भी मारी गई.
आदर्श गांव की नहीं बदली तस्वीर
सांसद रामचंद्र पासवान ने बड़े तामझाम से जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर कुबौलीराम गांव को गोद लिया था, गांव की सीमा पर आदर्श ग्राम का बोर्ड भी लग गया. लेकिन योजना के चार साल से अधिक का वक्त बीतने के बाद भी गांव में विकास नहीं पहुंचा. नाराज ग्रामीणों का कहना है कि सांसद गांव को गोद नहीं लेते तो शायद इसका बेहतर विकास हो जाता.
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र
यह संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पिछले कई चुनावों में यहां आरजेडी और जेडीयू की सीधी लड़ाई देखने को मिली है. 1998 में आरजेडी, 1999 में जेडीयू, 2004 में आरजेडी और 2009 में फिर जेडीयू ने इस सीट पर कब्जा जमाया.
पूरे बिहार में महागठबंधन की लहर- अशोक राम
कांग्रेस ने एक बार फिर से डॉक्टर अशोक राम को अपना उम्मीदवार बनाया है. नामांकन के बाद अशोक राम ने कहा कि पूरे बिहार में इस बार महागठबंधन के पक्ष में हवा चल रही है और प्रदेश की सभी 40 सीटों पर हमारी जीत होगी.
दोनों गठबंधनों का जीत का दावा
इस बार की लड़ाई और ज्यादा दिलचस्प है. एनडीए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के बदौलत एक बार फिर समस्तीपुर सीट को फतह करने के प्रयास में है, बीजेपी का मानना है कि केंद्र सरकार की उपलब्धि के बूते एक बार फिर इस सीट पर एनडीए का कब्जा होने वाला है. वहीं, लोजपा भी रामचंद्र पासवान के फिर से जीत का दावा कर रहा है..
चुनावी परिणाम पर सबकी नजर
बिहार की सियासत में खास असर डालने वाले समस्तीपुर जिले ने 1952 से 2014 तक कई सियासी उतार चढ़ाव को देखा है. बहरहाल इस बार ये देखना दिलचस्प होगा कि समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र की जनता किस पार्टी के वादों पर भरोसा करेगी और कौन सी पार्टी अपना डंका बजाने में कामयाब रहेगी.