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दलसिंह सराय की इस दुकान का 'रसकदम' हैं विदेशों में भी मशहूर, फ्लाइट से दुनियाभर में पहुंचती है मिठाई

दलसिंह सराय अनुमंडल के रहने वाले बुजुर्ग चमनलाल ने सन 1970 में रसकदम बनाने की शुरुआत की थी. इनके रसकदम जिले से लेकर बिहार तक में अपने स्वाद को लेकर जाना जाता है.

समस्तीपुर रसकदम की दुकान
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Published : Mar 18, 2019, 11:26 AM IST

समस्तीपुर: जिले के दलसिंह सराय अनुमंडल के रसकदम देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है. यहां हर दिन 25 से 30 किलो रसकदम बनाए जाते हैं. साथ ही यहां एडवांस बुकिंग भी की जाती है.

दलसिंह सराय अनुमंडल के रहने वाले बुजुर्ग चमनलाल ने सन 1970 में रसकदम बनाने की शुरुआत की थी. इनके रसकदम जिले से लेकर बिहार तक में अपने स्वाद को लेकर जाना जाता है. लेकिन अब इनके हाथों के बने हुए रसकदम देश ही नहीं विदेशों में भी बिकने लगी हैं. बता दें कि चमनलाल के रसकदम लेने के लिए लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लगती हैं.

विश्व प्रसिद्ध की दुकान

एडवांस में होती है बुकिंग
वहीं, चमनलाल के यहां अक्सर लोग एडवांस बुकिंग करा जाते हैं. इस कारण कई बार ग्राहकों को खाली हाथ लौटना पड़ता है. इतना ही नहीं विदेशों से भी यहां ऑर्डर आता है और यहां से पार्सल के जरिये रसकदम बाहर भेजा जाता है.

समस्तीपुर: जिले के दलसिंह सराय अनुमंडल के रसकदम देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है. यहां हर दिन 25 से 30 किलो रसकदम बनाए जाते हैं. साथ ही यहां एडवांस बुकिंग भी की जाती है.

दलसिंह सराय अनुमंडल के रहने वाले बुजुर्ग चमनलाल ने सन 1970 में रसकदम बनाने की शुरुआत की थी. इनके रसकदम जिले से लेकर बिहार तक में अपने स्वाद को लेकर जाना जाता है. लेकिन अब इनके हाथों के बने हुए रसकदम देश ही नहीं विदेशों में भी बिकने लगी हैं. बता दें कि चमनलाल के रसकदम लेने के लिए लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लगती हैं.

विश्व प्रसिद्ध की दुकान

एडवांस में होती है बुकिंग
वहीं, चमनलाल के यहां अक्सर लोग एडवांस बुकिंग करा जाते हैं. इस कारण कई बार ग्राहकों को खाली हाथ लौटना पड़ता है. इतना ही नहीं विदेशों से भी यहां ऑर्डर आता है और यहां से पार्सल के जरिये रसकदम बाहर भेजा जाता है.

Intro:समस्तीपुर जिले के दलसिंह सराय अनुमंडल का रसकदम देश ही नही में पूरे विदेशों में बिखेरता है स्वादों का जलवा प्रतिदिन 25 से 30 किलो रसकदम यहां बनाया जाता है ।और यहां पहले से एडवांस बुकिंग रहता।


Body:दलसिंह सराय अनुमंडल के रहने वाले चमनलाल नामक बुजुर्ग व्यक्ति ने सन 1970 से रसकदम बनाने की शुरुआत की थी ।इनका रसकदम जिले से लेकर बिहार तक में अपने स्वादों को लेकर मशहूर था ।लेकिन धीरे-धीरे उनके हाथों के बने हुए रसकदम देश नहीं पूरे विदेशों में पहुंचने लगी ।और लोग बड़े चाव से खाते हैं ।यहां रसकदम लेने के लिए लोगों को लाइन लगाना पड़ता है। ।यहां प्रतिदिन 25 से 30 की है रसकदम बनाया जाता है ।प्रतिदिन इन की दुकान 3:00 बजे खुलती है और 7:00 बजे तक के लिए खुली रहती है। इस बीच में जो भी ग्राहक आते उन्हें रसकदम मिल जाता है । अगर पहले से एडवांस बुकिंग रहता है तो ग्राहक को खाली लौटना पड़ता है ।इतना ही नहीं विदेशों से भी यहां ऑर्डर आता है और यहां से पार्सल के जरिये रसकदम भेजा जाता है ।


Conclusion:78 वर्षीय चमन लाल खुद अपने हाथों से अभी भी रसकदम बनाते हैं ।और थोड़ा सा भी नहीं थकते हैं ।उनके साथ सहायता में 2 लोग रहते हैं ले।किन अभी वह खुद ही रसकदम बनाते हैं और उनके हाथों का बना हुआ रसकदम का स्वाद सभी लोग लेते हैं।
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