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जिले के पशु अस्पतालों का हाल बेहाल, बिना डॉक्टर्स के बेजुबान पशुओं का नहीं हो रहा इलाज

पशुओं के बेहतर इलाज के मकसद से 39 पशु अस्पताल खोले हैं. बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और जरूरी संसाधनों से लैस यह अस्पताल जिले के लगभग सभी ब्लॉक में खुले हैं. लेकिन धरातल पर इसका हाल यह है कि इन अस्पतालों को इसी सिस्टम ने तबेला बना दिया है.

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Published : Jul 29, 2019, 3:21 PM IST

बीमार गाय

समस्तीपुर: जिले में बेजुबान पशुओं के अस्पताल की हालत दयनीय है. जिले में पशु अस्पताल और उसके संचालन को लेकर लंबे-चौड़े बजट जरूर खर्च किये जा रहे हैं. लेकिन धरातल पर इस अस्पताल की हालत कुछ और ही है.
महज 31 डॉक्टर हैं मौजूद
जिले में सरकार ने पशुओं के बेहतर इलाज के मकसद से 39 पशु अस्पताल खोले हैं. बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और जरूरी संसाधनों से लैस यह अस्पताल जिले के लगभग सभी ब्लॉक में खुले हैं. मकसद साफ है पशुओं के बेहतर इलाज को लेकर सरकार ने अपने खजाने खोल रखे हैं. लेकिन धरातल पर इसका हाल यह है कि, इन अस्पतालों को इसी सिस्टम ने तबेला बना दिया है. इन अस्पतालों में आधे से भी कम वेटनरी मेडिकल स्टॉफ हैं. वहीं जहां जरूरत 200 के करीब वेटनरी डॉक्टरों की है वहां जिले में महज 31 डॉक्टर मौजूद हैं.

पशु अस्पतालों का हाल बेहाल

पशुपालकों में काफी रोष
हाल यह है कि एक डॉक्टर कई अस्पतालों के प्रभार में है. वैसे इस हाल से पशु अस्पतालों में प्रभावित हो रहे कामों को जिला पशुपालन पदाधिकारी मान रहे हैं, लेकिन इस समस्या का कोई इलाज इनके पास नहीं है. जाहिर सी बात है राज्य सरकार के स्तर पर ही इस समस्या का समाधान संभव है. लेकिन यहां सवाल यह है कि, एक तरफ सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के मकसद से करोड़ों रूपये अनुदान बांट रही है. वहीं, इन पशुओं की देखरेख को लेकर उनका अस्पताल ही बीमार है. बहरहाल इस उदासीनता पर पशुपालकों में काफी रोष है. वैसे इस बदहाली को लेकर पशुपालकों ने कई बार बड़ा आंदोलन भी किया है. लेकिन जंग लग चुके इस सिस्टम को इससे अबतक कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दे रहा.

समस्तीपुर: जिले में बेजुबान पशुओं के अस्पताल की हालत दयनीय है. जिले में पशु अस्पताल और उसके संचालन को लेकर लंबे-चौड़े बजट जरूर खर्च किये जा रहे हैं. लेकिन धरातल पर इस अस्पताल की हालत कुछ और ही है.
महज 31 डॉक्टर हैं मौजूद
जिले में सरकार ने पशुओं के बेहतर इलाज के मकसद से 39 पशु अस्पताल खोले हैं. बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और जरूरी संसाधनों से लैस यह अस्पताल जिले के लगभग सभी ब्लॉक में खुले हैं. मकसद साफ है पशुओं के बेहतर इलाज को लेकर सरकार ने अपने खजाने खोल रखे हैं. लेकिन धरातल पर इसका हाल यह है कि, इन अस्पतालों को इसी सिस्टम ने तबेला बना दिया है. इन अस्पतालों में आधे से भी कम वेटनरी मेडिकल स्टॉफ हैं. वहीं जहां जरूरत 200 के करीब वेटनरी डॉक्टरों की है वहां जिले में महज 31 डॉक्टर मौजूद हैं.

पशु अस्पतालों का हाल बेहाल

पशुपालकों में काफी रोष
हाल यह है कि एक डॉक्टर कई अस्पतालों के प्रभार में है. वैसे इस हाल से पशु अस्पतालों में प्रभावित हो रहे कामों को जिला पशुपालन पदाधिकारी मान रहे हैं, लेकिन इस समस्या का कोई इलाज इनके पास नहीं है. जाहिर सी बात है राज्य सरकार के स्तर पर ही इस समस्या का समाधान संभव है. लेकिन यहां सवाल यह है कि, एक तरफ सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के मकसद से करोड़ों रूपये अनुदान बांट रही है. वहीं, इन पशुओं की देखरेख को लेकर उनका अस्पताल ही बीमार है. बहरहाल इस उदासीनता पर पशुपालकों में काफी रोष है. वैसे इस बदहाली को लेकर पशुपालकों ने कई बार बड़ा आंदोलन भी किया है. लेकिन जंग लग चुके इस सिस्टम को इससे अबतक कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दे रहा.

Intro:जिस जिले में इंसानों का इलाज जानवरों के तरह हो रहा हो , वँहा इन बेजुबानों का कैसा इलाज होता होगा यह आप बखूबी समझ सकते है । वैसे यंहा पशु अस्पताल व उसके संचालन को लेकर लंबे चौड़े बजट जरूर खर्च किये जा रहे । लेकिन धरातल पर उसकी हकीकत इसी से समझिए की , जिले के पशु अस्पतालों में बिन डॉक्टर ही इन बेजुबानों का इलाज होता है ।


Body:जिले में सरकार ने पशुओं के बेहतर इलाज के मकसद से 39 पशु अस्पताल खोले है । बड़ी बड़ी बिल्डिंग व जरूरी संसाधनों से लैस यह अस्पताल जिले के लगभग सभी ब्लॉक में खुले है । मकसद साफ है पशुओं के बेहतर इलाज को लेकर सरकार ने अपने खजाने खोल रखे है । लेकिन धरातल पर इसका हाल यह है की , इन अस्पतालों को इसी सिस्टम ने तबेला बना दिया है । इन अस्पतालों में आधे से कम भेटनरी मेडिकल स्टॉफ वंही जंहा जरूरत 200 के करीब भेटनरी डॉक्टरों की , वँहा जिले में महज 31 डॉक्टर महजूद है । हाल यह है की , एक डॉक्टर कई अस्पतालों के प्रभार में है । वैसे इस हाल से पशु अस्पतालों में प्रभावित हो रहे कामों को जिला पशुपालन पदाधिकारी कबूल रहे , लेकिन इस समस्या का कोई इलाज इनके पास नही ।

बाईट - डॉ मो. एजाज अहमद , जिला पशुपालन पदाधिकारी ।

वीओ - जाहिर सी बात है राज्य सरकार के स्तर पर ही इस समस्या का समाधान संभव है । सवाल , एक तरफ सरकार पशुपालन के बढ़ावा देने के मकसद से करोड़ो रूपये अनुदान बांट रहे है , लेकिन इन पशुओं के देखरेख को लेकर उनका अस्पताल ही बीमार है । बहरहाल इस उदासीनता पर पशुपालकों में काफी रोष है ।

बाईट - पशुपालक ।


Conclusion:गौरतलब है की ,एक तरफ सरकार भले इन पशु अस्पतालों के पीछे दोनों हाथों से पैसे लुटा रहे , वंही दूसरी तरफ जिले के पशुपालक अपने पशुओं के इलाज को लेकर अपनी पाई पाई प्राइवेट डॉक्टर व दवा के पीछे खर्च कर रहे । वैसे इस बदहाली पर पशुपालकों ने कई बार बड़ा आंदोलन भी किया है। लेकिन जंग लग चुके इस सिस्टम में कोई बदलाव नही दिखा ।

अमित कुमार की रिपोर्ट ।
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