समस्तीपुर: एक तरफ देश 1 से 30 सिंतबर तक राष्ट्रीय पोषण माह मना रहा है. वहीं दूसरी तरफ सही जानकारी और जागरूकता के आभाव में बच्चों के टिफिन में सही पोषण की जगह जंक फूड बढ़ता ही जा रहा है. वर्तमान समय में देखा जाय तो स्कूली बच्चों में इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है. सवाल इस बात का है कि अगर यही हाल रहा तो फिर इस पोषण माह के क्या मायने?
संचालित होती है मिड-डे मिल योजना
कुपोषण से हमारे बच्चे बचे रहें इसी मकसद से सरकारी स्कूलों में मिड-डे मिल योजना संचालित की जा रही है. यही नहीं बच्चों को पौष्टिक आहार सही तरीके से मिले इसको लेकर प्रतिदिन अलग-अलग डायट चार्ट बनाए गए हैं. जाहिर सी बात है सरकार की सोच हमारे देश के भविष्य को सेहतमंद करने की है. यही नहीं हर साल पोषण माह जैसे आयोजनों के जरिये बड़े स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं.
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नहीं चलाया जाता जागरूकता अभियान
गौरतलब है कि पोषण से जुड़ी एक अच्छी खबर यह है कि इस बार राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में होने वाले चेतना सत्र में पोषण से जुड़ी जागरूकता कार्यक्रम चलाने का एलान किया है. लेकिन अगर धरातल पर इसका असर देखें तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती है. जिले के स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ सेहत का ख्याल कैसे रखें और खान-पान कैसा हो इससे जुड़ी जानकारी को लेकर कोई जागरूकता अभियान नहीं चलाया जाता है.
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'बच्चों को देंगे पोषण से जुड़ी जानकारी'
शिक्षकों से सवाल पूछे जाने पर स्कूल के शिक्षकों ने यह वादा किया की पोषण से जुड़ी जानकारी बच्चों को दी जाएगी. वैसे धरातल पर यह गंभीरता से अमल हो इसको लेकर कुपोषण और जंक फूड के खिलाफ आवाज उठाने वालों का मानना है कि बच्चे स्कूलों से बहुत कुछ सीखते हैं. स्कूलों में बच्चों को पोषण के प्रति भी जागरूक करना होगा.
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