समस्तीपुर: मन्निपुर मंदिर 200 साल पुरानी है. मंदिर यहां का एकमात्र जागृत सिद्ध पीठ है. माता के इस मंदिर में निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है.
साथ ही मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आज तक यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटा है. यही कारण है कि दूर-दूर से लोग अपनी मुराद मांगने यहां आते रहते हैं.
![samastipur mannipur mata temple](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-sam-03-durgapuja-special-vis-byte-ptc-bh10021_30092019185657_3009f_1569850017_612.jpg)
मंदिर स्थापना की है बड़ी दिलचस्प कहानी
आज से लगभग ढाई सौ साल पहले यहां पर भयानक महामारी फैली थी. कोई दवा-कोई वैध काम नहीं आ रहा था. महामारी इतनी बड़ी थी कि लोगों के शवों को बैलगाड़ियों में भरकर शमशान घाट भेजा जा रहा था. चारों तरफ मातम का माहौल था.
भक्तों ने पूजन सामग्री जुटाने में जताई असमर्थता
ऐसे में गांव के बुजुर्ग लोग बैठकर महामाया देवी की आराधना करने लगे. तभी वहां एक बूढ़ी माता आईं और नगर वासियों को मिट्टी का पिंड बनाकर नीम पत्र भजन कीर्तन से मां की आराधना करने की सलाह दी. महामारी से परेशान लोगों ने पूजन सामग्री जुटाने में असमर्थता जताई तो उन्होंने लोगों को समझाया कि महामाया तो स्वयं लक्ष्मी स्वरूप हैं. उनकी पूजा के लिए पूजन सामग्री से ज्यादा भक्ति और भावना की जरूरत है.
![Local devotee](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-sam-03-durgapuja-special-vis-byte-ptc-bh10021_30092019185657_3009f_1569850017_122.jpg)
बूढ़ी माता हो गईं अंतर्ध्यान
बूढ़ी माता के कहे अनुसार गांव वाले मिट्टी का पिंड बनाकर पूजा करने लगे. नगर में शांति और समृद्धि का वरदान देकर बूढ़ी माता अंतर्ध्यान हो गईं. तब नगरवासियों को समझ में आया कि यह कोई साधारण महिला नहीं बल्कि स्वयं मां भगवती थीं. जो अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने आई थीं.
![Priests of Manipur Mata Temple](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-sam-03-durgapuja-special-vis-byte-ptc-bh10021_30092019185657_3009f_1569850017_1050.jpg)
देश-विदेश से आते हैं भक्त
कहा जाता है तब से लेकर आज तक इस गांव में कभी कोई महामारी नहीं फैली. इतना ही नहीं इस नगर से गरीबी भी समाप्त हो गई. आज यहां के लोग काफी समृद्ध और सुखी हैं. मां के भक्त समय-समय पर मां को भेंट अर्पित करते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि माता के इस मंदिर प्रांगण में कदम रखने वाले कभी खाली नहीं लौटते हैं. वहीं, आज माता के इस भव्य मंदिर में देश-विदेश से भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं.