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समस्तीपुर: मन्निपुर माता मंदिर से कोई नहीं लौटा आज तक खाली हाथ, यहां होती है हर मनोकामना पूरी - मंदिर प्रांगण

200 साल पुरानी मन्निपुर मंदिर जिले का एकमात्र जागृत सिद्ध पीठ है. माता के इस मंदिर में निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है. यही कारण है कि दूर-दराज से लोग अपनी मुराद मांगने यहां आते रहते हैं.

यहां होती है हर मनोकामना पूरी
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Published : Oct 1, 2019, 4:12 AM IST

समस्तीपुर: मन्निपुर मंदिर 200 साल पुरानी है. मंदिर यहां का एकमात्र जागृत सिद्ध पीठ है. माता के इस मंदिर में निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है.

साथ ही मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आज तक यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटा है. यही कारण है कि दूर-दूर से लोग अपनी मुराद मांगने यहां आते रहते हैं.

samastipur mannipur mata temple
मन्निपुर माता मंदिर


मंदिर स्थापना की है बड़ी दिलचस्प कहानी

आज से लगभग ढाई सौ साल पहले यहां पर भयानक महामारी फैली थी. कोई दवा-कोई वैध काम नहीं आ रहा था. महामारी इतनी बड़ी थी कि लोगों के शवों को बैलगाड़ियों में भरकर शमशान घाट भेजा जा रहा था. चारों तरफ मातम का माहौल था.

मन्निपुर माता मंदिर से कोई नहीं लौटा आज तक खाली हाथ

भक्तों ने पूजन सामग्री जुटाने में जताई असमर्थता
ऐसे में गांव के बुजुर्ग लोग बैठकर महामाया देवी की आराधना करने लगे. तभी वहां एक बूढ़ी माता आईं और नगर वासियों को मिट्टी का पिंड बनाकर नीम पत्र भजन कीर्तन से मां की आराधना करने की सलाह दी. महामारी से परेशान लोगों ने पूजन सामग्री जुटाने में असमर्थता जताई तो उन्होंने लोगों को समझाया कि महामाया तो स्वयं लक्ष्मी स्वरूप हैं. उनकी पूजा के लिए पूजन सामग्री से ज्यादा भक्ति और भावना की जरूरत है.

Local devotee
स्थानीय भक्त

बूढ़ी माता हो गईं अंतर्ध्यान
बूढ़ी माता के कहे अनुसार गांव वाले मिट्टी का पिंड बनाकर पूजा करने लगे. नगर में शांति और समृद्धि का वरदान देकर बूढ़ी माता अंतर्ध्यान हो गईं. तब नगरवासियों को समझ में आया कि यह कोई साधारण महिला नहीं बल्कि स्वयं मां भगवती थीं. जो अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने आई थीं.

Priests of Manipur Mata Temple
मंदिर के पुजारी

देश-विदेश से आते हैं भक्त
कहा जाता है तब से लेकर आज तक इस गांव में कभी कोई महामारी नहीं फैली. इतना ही नहीं इस नगर से गरीबी भी समाप्त हो गई. आज यहां के लोग काफी समृद्ध और सुखी हैं. मां के भक्त समय-समय पर मां को भेंट अर्पित करते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि माता के इस मंदिर प्रांगण में कदम रखने वाले कभी खाली नहीं लौटते हैं. वहीं, आज माता के इस भव्य मंदिर में देश-विदेश से भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं.

समस्तीपुर: मन्निपुर मंदिर 200 साल पुरानी है. मंदिर यहां का एकमात्र जागृत सिद्ध पीठ है. माता के इस मंदिर में निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है.

साथ ही मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आज तक यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटा है. यही कारण है कि दूर-दूर से लोग अपनी मुराद मांगने यहां आते रहते हैं.

samastipur mannipur mata temple
मन्निपुर माता मंदिर


मंदिर स्थापना की है बड़ी दिलचस्प कहानी

आज से लगभग ढाई सौ साल पहले यहां पर भयानक महामारी फैली थी. कोई दवा-कोई वैध काम नहीं आ रहा था. महामारी इतनी बड़ी थी कि लोगों के शवों को बैलगाड़ियों में भरकर शमशान घाट भेजा जा रहा था. चारों तरफ मातम का माहौल था.

मन्निपुर माता मंदिर से कोई नहीं लौटा आज तक खाली हाथ

भक्तों ने पूजन सामग्री जुटाने में जताई असमर्थता
ऐसे में गांव के बुजुर्ग लोग बैठकर महामाया देवी की आराधना करने लगे. तभी वहां एक बूढ़ी माता आईं और नगर वासियों को मिट्टी का पिंड बनाकर नीम पत्र भजन कीर्तन से मां की आराधना करने की सलाह दी. महामारी से परेशान लोगों ने पूजन सामग्री जुटाने में असमर्थता जताई तो उन्होंने लोगों को समझाया कि महामाया तो स्वयं लक्ष्मी स्वरूप हैं. उनकी पूजा के लिए पूजन सामग्री से ज्यादा भक्ति और भावना की जरूरत है.

Local devotee
स्थानीय भक्त

बूढ़ी माता हो गईं अंतर्ध्यान
बूढ़ी माता के कहे अनुसार गांव वाले मिट्टी का पिंड बनाकर पूजा करने लगे. नगर में शांति और समृद्धि का वरदान देकर बूढ़ी माता अंतर्ध्यान हो गईं. तब नगरवासियों को समझ में आया कि यह कोई साधारण महिला नहीं बल्कि स्वयं मां भगवती थीं. जो अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने आई थीं.

Priests of Manipur Mata Temple
मंदिर के पुजारी

देश-विदेश से आते हैं भक्त
कहा जाता है तब से लेकर आज तक इस गांव में कभी कोई महामारी नहीं फैली. इतना ही नहीं इस नगर से गरीबी भी समाप्त हो गई. आज यहां के लोग काफी समृद्ध और सुखी हैं. मां के भक्त समय-समय पर मां को भेंट अर्पित करते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि माता के इस मंदिर प्रांगण में कदम रखने वाले कभी खाली नहीं लौटते हैं. वहीं, आज माता के इस भव्य मंदिर में देश-विदेश से भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं.

Intro:एक्ससीलुसिव
समस्तीपुर जिले के मन्निपुर मंदिर 200 साल पुरानी है ।ये यहां का एकमात्र जागृत सिद्ध पीठ है ।माता के इस मंदिर में निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है ।कहा जाता है कि आज तक यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटा है। यही कारण है कि दूर दूर से लोग अपनी मुरादे मांगने यहां आते हैं।


Body:इस मंदिर की स्थापना की बड़ी दिलचस्प कहानी है। लगभग ढाई सौ साल पहले यहां पर भयानक महामारी फैली थी। कोई दवा कोई वैध लोगों के जान नहीं बचा पा रहा था ।महामारी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लोगों केशव बैल गाड़ियों में भरकर श्मशान घाट भेजा जाने लगा। चारों तरफ मातम का माहौल था ।ऐसे में गांव के बुजुर्ग लोग बैठकर महामाया देवी की आराधना करने लगे। गांव वाले नगर के ब्रह्म स्थान के पास बैठकर माता से विनती कर रहे थे ।तभी वहां एक बूढ़ी माता बैठी दिखाई दी ।जिसे कोई नहीं पहचान सका वह बूढ़ी मां ने लोगों को विधिवत पूजा अर्चना करने की सलाह दी ।सभी लोग बूढ़ी मां के विचार से सहमत हो गए। पर महामारी और गरीबी से परेशान लोगों के पास अनुष्ठान तक के पैसे नहीं थे ।तब बूढ़ी मां ने नगर वासियों को मिट्टी का पिंड बनाकर नीम पत्र भजन कीर्तन से मां की आराधना करने की सलाह दी ।उन्होंने लोगों को समझाया कि महामाया तो स्वयं लक्ष्मी रूपा है ।उनकी पूजा के लिए पूजन सामग्री से ज्यादा भक्ति और भावना की जरूरत है।


Conclusion:मिट्टी का पिंड बनाकर गांव वाले बूढ़ी माता के कहे अनुसार पूजा करने लगे। बूढ़ी माता ने उन लोगों को आशीर्वाद दिया कि जब तक इस तरह पूजा-अर्चना चलती रहेगी मां भगवती की दया दृष्टि इस नगर पर बनी रहेगी ।इतना ही नहीं उन्होंने इस नगर में शांति और समृद्धि का वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गई। तब नगर वासियों को समझ में आया कि यह कोई साधारण महिला नहीं थी बल्कि स्वयं मां भगवती थी ।जो भेष बदलकर अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने आई थी। कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक इस गांव में कभी कोई महामारी नहीं फैली। इतना ही नहीं इस नगर से गरीबी भी समाप्त हो गई ।आज यहां के लोग काफी समृद्ध और सुखी हैं ।मां के भक्तों समय-समय पर मां को भेट अर्पित करते रहते हैं। माता के इस मंदिर प्रांगण में कदम रखने वाले कभी खाली नहीं लौटते हैं ।और आज माता का भव्य मंदिर रूप में तैयार होगया। जहां देश ही नहीं पूरे विदेश से भक्त यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं।
बाईट : चंदन कुमार 1
बाईट: अनिल कुमार 2
बाईट: मंदिर के पुजारी
पीटीसी
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