सहरसा: शिवहर से राजद विधायक चेतन आनंद ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सत्तापक्ष हमेशा विरोधियों के आंदोलन को कमजोर और बदनाम करने की साजिश रचती है. किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिये लाल किला की घटना उसी की कड़ी है. जबकि संसद में पेश आम बजट जमीनी हकीकत से कोसों दूर और 'लुभावनी नारों का पिटारा' है.
केंद्र सरकार पर बोला हमला
चेतन आनंद आम बजट पर ही नहीं बल्कि किसान आंदोलन को बेवजह बदनाम कर आंदोलन को भटकाने के प्रयास पर केंद्र सरकार पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का आम बजट पूंजी परस्त बजट है. यह अमीर को और अमीर, और गरीब को और गरीब बनाने वाला बजट है. बजट स्पेशली उन राज्यों के लिए है जहां हाल में चुनाव होने हैं.
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रोजगार सृजित करने वाली स्कीमों में कटौती
चेतन आनंद ने कहा कि बजट में बिहार के लिए कुछ खास नहीं है. इस बजट में न तो विशेष राज्य का दर्जा और न ही विशेष पैकेज और कोसी के लिए कुछ है. कोसी के सभी एनडीए सांसदों को यह बताना उनकी नैतिक जिम्मेवारी है कि जब बजट पेश हो रहा था, तब मेजें थपथपाने के अलावा वे क्या कर रहे थे. गरीबों से जुड़े और रोजगार सृजित करने वाली स्कीमों में कटौती यह दर्शाता है कि बजट के केंद्र में बेरोजगार युवा और गरीब कहीं नहीं हैं. कुल मिलाकर बजट जमीनी हकीकत से कोसों दूर और 'लुभावनी नारों का पिटारा' है.
चेतन आनंद ने किसान आंदोलन पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि-
यह देश और दुनिया के इतिहास में सबसे लम्बा चलने वाला 'अहिंसक आंदोलन' है. जिसमें हाड़ कंपाती ठंड में ठिठुरकर 150 से ज्यादा किसानों ने अपने वाजिब हक के वास्ते अपनी शहादतें दे दी है. लेकिन शासकों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. -चेतन आनंद, राजद विधायक, शिवहर
बदनाम करने के अपनाए गए हथकंडे
चेतन आनंद ने कहा कि दुनिया का इतिहास गवाह है कि जहां कहीं भी कोई व्यापक आंदोलन सत्ता की चूलें हिलाने में कामयाब रहा है, उसे शासकों के माध्यम से तोड़ने और बदनाम करने के हर हथकंडे अपनाए गए हैं.
'नया कृषि कानून' हमारे खेतों और खलिहानों को चुनाव में फंडिंग करने वाले चंद कॉरपोरेट घरानों के हाथ नीलाम करने वाला कानून है. यह उसी 'कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग' की वकालत करता है, जिसके खिलाफ कभी महात्मा गांधी ने चर्चित 'चंपारण आंदोलन' की शुरुआत की थी. -चेतन आनंद, राजद विधायक, शिवहर
किसान अर्थव्यवस्था के मेरूदंड
चेतन ने कहा कि किसान अर्थव्यवस्था के मेरूदंड हैं. देश की 80% आबादी किसानी पर आधारित है. यदि खेती खत्म होगी तो छोटे व्यापार, मझौले उद्योग और मजदूर भी समाप्त हो जाएंगे. उन्होंने केंद्र से हठधर्मिता त्यागकर बिना समय गंवाए इस काला कानून को वापस लेने की मांग की है. साथ ही लोगों से अपील की है कि 'खेती और रोटी' से जुड़े हर व्यक्ति को इस आंदोलन का समर्थन करना चाहिए. क्योंकि किसान अपनी फसलों और भावी नस्लों की लड़ाई लड़ रहे हैं.