सहरसा: कोसी (Kosi River) और बलान नदियों के जलस्तर में उतार-चढ़ाव के कारण फसलों को काफी क्षति पहुंचता है. इस वर्ष बाढ़ के पानी ने जहां दियारा इलाकों में बसे पंचायतों के खेतों में लगे फसल को बर्बाद कर दिया, वहीं पूर्वी कोसी बांध के पूरब के सीपेज इलाकों में सीपेज के पानी के कारण खेतों में लगी धान की फसल डूब गई.
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समानी निवासी पूर्व मुखिया गजेंद्र साह, झाड़ा के जगनारायण पासवान, बेचू यादव, अरुण कुमार तथा घोंघेपुर पंचायत के मुखिया चौरा निवासी घूरन पासवान, सत्यनारायण शर्मा सहित ने बताया कि इस वर्ष समय पूर्व हुई बारिश व बाढ़ के पानी के कारण पहले ही एक बार किसानों द्वारा रोपा गया धान का बिचड़ा डूब गया था. उसके बाद किसानों ने पानी हटने पर बिचड़ों का जुगाड़ कर खेतों में रोपनी की थी.
धान के पौधों के थोड़ा बढ़ते ही कोसी नदी के जलस्तर में वृद्धि होने से खेतों में पानी जम गया. जिसमें अधिकतर धान की फसलें डूब गई. पानी का कभी बढ़ना तो कम होना लगातार चलता रहा. कभी पानी तो कभी धूप ने धान के पौधों के जड़ को गला दिया, जिससे धान की फसल लगभग पूर्णत: बर्बाद हो गयी.
सीपेज इलाकों के खेतों में लगे धान की फसल की बर्बादी का भी यही हाल है. लोगों ने इस वर्ष समय पूर्व आये कोसी और बलान नदी के जलस्तर में वृद्धि पर कहा कि विगत वर्ष तक जब हमलोग मकई की फसल तैयार कर लेते थे, तब बाढ़ का पानी आता था. लेकिन इस बार पानी पहले आ गया.
इस पानी के आ जाने से क्षेत्रीय किसानों को मकई फसल की भारी बर्बादी का दर्द सहन करना पड़ा है. क्षेत्रीय जानकार लोगों की मानें तो इस वर्ष प्रखण्ड क्षेत्र में तकरीबन चार हजार हेक्टेयर भूभाग में धान की खेती किसानों द्वारा की गई है. जिसमें नब्बे फीसदी फसलों की पूर्णत: बर्बादी की बात बताई जा रही है.
प्रभारी प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी अजय कुमार सिंह ने बताया कि जिला स्तरीय टीम सहित कृषि समन्वयक एवं कृषि सलाहकारों द्वारा प्रखण्ड के बाढ़ एवं जल जमाव प्रभावित क्षेत्रों में फसल क्षति का आकलन करने का काम किया जा रहा है.
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