सहरसा : एक बहुत पुरानी कहावत है- पढ़ोगे, लिखोगे, बनोगे नवाब! खेलोगे, कूदोगे होगे खराब! बिहार में यह कहावत काफी लोकप्रिय है. सभी अपने बच्चे को यह कहावत सुना कर पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. लेकिन सहरसा के सौर बाजार प्रखंड क्षेत्र सहुरिया पंचायत (Saharsa Cricket Story) निवासी रामचंद्र यादव कुछ और ही सोच रखते हैं. सोचते हैं बेटा अतुल आनंद (Cricketer Atul Anand) अगर क्रिकेट में नाम कमाए तो सीना चौड़ा करके चलेंगे.
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खपरैल घर के सामने बनाया क्रिकेट पिच : तभी तो बेटे के खेल में कोई खलल न पड़े, इसके लिए खपरैल घर के सामने ही लगभग 80 हजार रुपए खर्च कर क्रिकेट पिच बना दिया. नेट सहित पूरी किट जो लाखों रुपए में आती है, उसे भी खरीद कर उपलब्ध करवा दिया. गेंद और महंगे बैट लाकर बेटे को दे रहे हैं. साथ में सिर्फ क्रिकेट पर ही ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. इतना ही नहीं बेटे को रोज आंखों के सामने प्रैक्टिस करते हुए देखते है.
कोटा जाकर अतुल पढ़ाई से ज्यादा खेलने में लगाया मन : दरअसल, दूसरे माता-पिता की तरह ही रामचंद्र यादव अपने बेटे अतुल आनंद को डॉक्टर और इंजीनियर बनाना चाहते थे. जिसके कारण मैट्रिक परीक्षा पास करने के साथ ही अतुल को राजस्थान के कोटा स्थित कोचिंग सेंटर में एडमिशन करवाया. उनका उद्देश्य था कि उनका बेटा या तो डॉक्टर बने या इंजीनियर. लेकिन कुछ महीने बाद जब वे पुत्र से मिलने पहुंचे तो देखा कि उनका पुत्र कोटा के क्रिकेट मैदान पर पसीना बहा रहा है. अच्छी बल्लेबाजी के साथ-साथ गेंदबाजी भी कर रहा था.
कोच ने किया प्रोत्साहित : अतुल को पढ़ाई से अधिक क्रिकेट में दिलचस्पी दिखी. जिसके बाद रामचंद्र यादव ने पुत्र को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. उनका पुत्र कोटा के जिला स्तर क्रिकेट में अच्छा नाम कमाने लगा. लेकिन कोटा में रह रहे उसके कोच ने उसकी प्रतिभा और उसके लगन को देखते हुए क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने जिले और बिहार की ओर से खेलने के लिए भी बोला.
'आज या कल ये होगा कि मैं नीली जर्सी में नजर आउंगा. मैं विराट सर का फैन हूं तो मैं एक दिन विराट भैया के साथ जरूर खेलूंगा. वो दिन मेरे लिए बड़ा एचीवमेंट होगा': अतुल आनंद, डिस्ट्रिक्ट लेवल क्रिकेटर
पूरा परिवार अतुल को क्रिकेटर बनाने में लगा : इसके बाद अतुल कोटा से बोरिया बिस्तर बांधा और सहरसा पहुंच गया. अब वह सहरसा जिला स्तर पर अपने खेल की प्रतिभा दिखा रहा है. उसके पिता के साथ-साथ उसका बड़ा भाई और छोटा भाई भी काफी साथ दे रहा है. हालांकि अभी तक अतुल को कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं हुई है. वह बिहार राज्य क्रिकेट टीम में सेलेक्ट नहीं हुआ है. लेकिन पिता उसके आगे बढ़ने में दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं. गरीब परिवार होने के बावजूद भी अपने पुत्र को क्रिकेट जैसे महंगे खेल में खेलने के हर सुख सुविधा देने के लिए कमीं नहीं कर रहे हैं.
'मैने बेटे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए जमीन बेंच दी. जब पीछे जमीन देखता हूं तो सोचता हूं ये क्या कर रहा हूं लेकिन जब घर के सामने बेटे को क्रिकेट खेलते देखता हूं तो आनंद मिलता है. मेरा जो कुछ है वो इसी का है. उसी पर न्योछावर कर रहा हूं. एक दिन ये अपनी मेहनत से इंडियन क्रिकेट टीम में जरूर खेलेगा': रामचंद्र यादव, अतुल आनंद के पिता
फिलहाल, घर के सामने अतुल घर के सामने नियमित रूप से पसीना बहा रहा है. अतुल के पास अभी इतने पैसे नहीं है कि वो किसी क्रिकेट एकेडमी में दाखिला ले सकें. मगर, उसे खुद के हुनर पर पूरा भरोसा है. यही कारण है कि उसे जहां भी जगह मिलती है, वो प्रैक्टिस शुरू कर देता हैं. इस उम्मीद के साथ कि उसे कभी न कभी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा. कभी न कभी किसी कोच की नजर उस पर पड़ेगी. वो भी किसी न किसी दिन क्रिकेट अकादमी में पहुंचेगा और इशांत किशन की तरह आईपीएल से होते हुए भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुंचेगा.