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रोहतास के इस गांव में पानी को लेकर मचा है हाहाकार, चुनाव की तैयारी में व्यस्त है सरकार

बिहार सरकार लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई है. वहीं, दूसरी ओर रोहतास के एक गांव में लोग पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. यहां पानी की समस्या को लोग सर्वोपरि मान रहे हैं. गांव विकास के लिए भी सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठा है.

पानी की कमी
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Published : Mar 19, 2019, 12:02 AM IST

रोहतास: जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हसड़ी गांव में सूखा पड़ा हुआ है. यहां लोगों को पीने के लिए पानी तक नसीब नहीं हो रहा है. वहीं, दूसरी तरफ प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि कोई भी नेता हो या अधिकारी इस गांव की ओर रुख नहीं करता.

एक तरफ, जहां सूबे के मुखिया नीतीश कुमार विकास के तरह-तरह के दावे करते नजर आते हैं. वहीं, दूसरी तरफ नोहट्टा प्रखंड के हसड़ी गांव में लोगों को आज तक पानी नसीब नहीं हुआ है. लिहाजा, महिलाएं गांव से काफी दूर नदी से पानी लाने को मजबूर हैं. नल-जल योजना का इस गांव में कोई भी प्रभाव देखने को नहीं मिलता.

गांव के हालात

वहीं, लोगों का कहना है कि यहां न तो कभी सांसद आए हैं और न ही विधायक. गांव की महिलाओं ने बताया कि सबसे अधिक परेशानी गर्मियों के दिनों में होती है. इस दौरान नदी का पानी सूख जाता है. लिहाजा, पानी सूखने के बाद लोग बूंद-बूंद के लिए तरसते हैं. लोगों का कहना है कि चुनाव पास आते ही सभी जनप्रतिनिधि दिखाई देने लगते हैं वे पानी की समस्या के निवारण की भी बात करते हैं मगर चुनाव बाद वे अपने तमाम वायदे भूल जाते हैं.

रोहतास: जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हसड़ी गांव में सूखा पड़ा हुआ है. यहां लोगों को पीने के लिए पानी तक नसीब नहीं हो रहा है. वहीं, दूसरी तरफ प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि कोई भी नेता हो या अधिकारी इस गांव की ओर रुख नहीं करता.

एक तरफ, जहां सूबे के मुखिया नीतीश कुमार विकास के तरह-तरह के दावे करते नजर आते हैं. वहीं, दूसरी तरफ नोहट्टा प्रखंड के हसड़ी गांव में लोगों को आज तक पानी नसीब नहीं हुआ है. लिहाजा, महिलाएं गांव से काफी दूर नदी से पानी लाने को मजबूर हैं. नल-जल योजना का इस गांव में कोई भी प्रभाव देखने को नहीं मिलता.

गांव के हालात

वहीं, लोगों का कहना है कि यहां न तो कभी सांसद आए हैं और न ही विधायक. गांव की महिलाओं ने बताया कि सबसे अधिक परेशानी गर्मियों के दिनों में होती है. इस दौरान नदी का पानी सूख जाता है. लिहाजा, पानी सूखने के बाद लोग बूंद-बूंद के लिए तरसते हैं. लोगों का कहना है कि चुनाव पास आते ही सभी जनप्रतिनिधि दिखाई देने लगते हैं वे पानी की समस्या के निवारण की भी बात करते हैं मगर चुनाव बाद वे अपने तमाम वायदे भूल जाते हैं.

Intro:रोहतास। जिला मुख्यालय से तक़रीबन सत्तर किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी पर बसा हसड़ी गांव आज पानी पानी के लिए मोहताज है।


Body:गौरतलब है कि एक तरफ जहां सूबे के मुखिया नीतीश कुमार विकास के तरह तरह के दावे करते है। वहीं कैमूर पहाड़ी के उपर बस ये गांव नीतीश कुमार के विकास के सारे दावे की पोल खोल रही है। इस गांव के लोग की कहानी बिल्कुल अलग है इन्हें विकास का ककहरा भी नहीं मालूम कि विकास होता क्या है। गांव की महिला हो या पुरूष सभी पानी की जद्दोजहद में नज़र आते है। क्यों कि नोहट्टा प्रखंड के इस गांव में लोगों को आजतक पानी नसीब नहीं हुआ है। लिहाज़ा महिला गांव से काफी दूर नदी में पानी लाने जाती है। काफी मोशक़्क़त के बाद उन्हें दो बूंद पानी नसीब होता है। जहिर है विकास के तरह तरह दावे करने वाले नेता का असली विकास का चेहरा यहां देखा जा सकता है। यहाँ के लोगों को शिकायतें है कि न तो यहां कभी सांसद आए है और न कभी विधायक ही आए है। बहरहाल अब लोकसभा के चनाव में महज़ कुछ ही दिन बाकी रह गया है लेकिन इस गांव में पीने का पानी तक नहीं पहुच पाया है। गांव की महिला ने बताया कि सबसे अधिक परेशानी गर्मियों के दिनों में होता है जब नदी का पानी सूख जाता है। लिहाज़ा पानी सूखने के बाद लोग बूंद बूंद के लिए तड़पते है। लेकिन गांव वाले के इस तड़प का अहसास न तो नेताओं को है और नहीं सरकार के हुक्मरानों को है। नेता सत्ता के सुख में गरीबों का दुख ही भूल जाते है। उन्हें इस बात का इल्म ही नहीं होता है कि जिन गरीबों के वोट से सत्ता के सुख का च्यवनप्राश खा रहे है। वही जनता एक दिन उन्हें सत्ता के सुख से बेदखल भी कर सकते है।


Conclusion:बहरहाल सरकार के सारे दावे कैमूर पहाड़ी के हसड़ी गांव में फेल होता दिख रहा है। लिहाज़ा अगर नेताओं का यही रवैय्या रहा तो लोग बून्द बून्द के लिए तरस जाएंगे।

बाइट। ग्रमीण
पीटीसी
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