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रोहतास के प्रेमचंद ने मुर्गी पालन कर बदली खुद की तकदीर, जानिये कैसे बने किसानों के रोल मॉडल

मध्यप्रदेश के झाबुआ में खास नस्ल का पाया जाने वाला कड़कनाथ मुर्गे का भी प्रेमचंद के हेचरी में पालन होता है. इस मुर्गे की बाजार में कीमत 700 से 800 रूपये है. वहीं, इस मुर्गे की खासियत ये है कि इस के मांस में फैट कम होता है और प्रोटीन ज्यादा होती है.

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Published : Oct 7, 2019, 4:52 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 7:15 PM IST

रोहतासः यूं तो रोहतास जिला को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां के किसान धान की पारंपरिक खेती पर ही निर्भर हैं. लेकिन इससे अलग हटकर जिले के एक किसान आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन, बटेर पालन और कड़कनाथ मुर्गा का पालन कर लाखों की आमदनी कर रहें है. प्रेमचंद नाम के ये किसान सिर्फ राज्य ही नहीं, राज्य से बाहर के किसानों के लिए मिसाल बने हुए हैं. इतना ही नहीं इन्हें किसानों को सम्मानित करने वाली संस्थाओं ने पुरस्कृत भी किया है.

पिता ने खुदवाया 15 कट्ठे का तालाब
दरअसल हम बात कर रहे हैं जिले के तिलौथू इलाके के मदारीपुर गांव के रहने वाले विश्वनाथ सिंह के बेटे प्रेमचंद की. प्रेमचंद के पिता 1985 में सेना से रिटायर्ड हुए तो पैतृक जमीन में से 15 कट्ठा का तालाब खुदवाया. तालाब का पानी न सूखे इसके लिए उन्होंने तालाब के निचले सतह पर ईट सोलिंग कर उसे सीमेंट से पक्का करा दिया. तालाब के चारों किनारों में पक्की दीवार जुड़वा दी. यहीं से शुरू हुआ मछ्ली पालन का कारोबार, लेकिन लगातार कई वर्षों तक मछली पालन में नाकाम होने पर उन्होंने मछली पालने का इरादा त्याग दिया.

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हेचरी में मुर्गी पालन करती महिलाएं

यू-ट्यूब की सहायता से फैलाया कारोबार
इसके बाद प्रेमचंद 2009 में जिला मत्स्य पालन केंद्र से जुड़े. वहां से विभाग ने उन्हें 10 दिवसीय प्रशिक्षण पर कोलकाता भेजा. जहां से लौटकर उन्होंने छोटे-बड़े कुल 5 तालाब खुदवाए. जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. कुछ नया करने की मन में ठाणे किसान प्रेमचंद ने सोशल प्लेटफॉर्म यूट्यूब की सहायता से मछली पालन, बटेर पालन, बत्तख पालन के साथ कड़कनाथ मुर्गा का भी पालन शुरू कर दिया. खासकर कड़कनाथ नाथ मुर्गे ने प्रेमचन्द की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दी है. जिसे पाने के लिए कई राज्यों के किसान यहां बिन बुलाए ही खींचे चले आते हैं.

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अंडे से निकला चूजा

तकनीक सीखने कई राज्यों के आते हैं किसान
प्रेमचन्द की माने तो उनके यहां सिर्फ जिले से बाहर ही नहीं राज्य से बाहर के किसान भी पालन की तकनीक सीखने और उनकी हेचरी देखने के लिए आते हैं. झारखंड से आए किसान विनय सिंह बताते हैं कि वह अपने साथ 500 बटेर के चूजे 14 रुपये प्रति पीस के हिसाब से ले गए थे. बताया कि 30 से 32 दिन में तैयार होने वाले एक बटेर की कीमत 50 से 60 रुपये मिल जाती है. जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है.

मछली, बटेर और मुर्गी पालनकर लाखों कमा रहे किसान प्रेमचंद

खास नस्ल का होता है कड़कनाथ मुर्गा
मध्यप्रदेश के झाबुआ में खास नस्ल का पाया जाने वाला कड़कनाथ मुर्गा का भी प्रेमचंद के हेचरी में पालन होता है. इस मुर्गे की बाजार में कीमत 700 से 800 रूपये है. वहीं, इस मुर्गे की खासियत ये है कि इस के मांस में फैट कम होता है और प्रोटीन ज्यादा होती है. इस मुर्गे के पालन के लिए किसान प्रेमचंद ने आठ लाख की लागत से एक हैचरी प्लांट लगाया है, जो कि ऑटोमेटिक है. जिसमें रखे कड़क नाथ मुर्गा के अंडे से 21 दिन में चूजा निकलता हैं. 19 दिन में बटेर और 22 दिन में बत्तख के अंडे से चूजे निकलते हैं.

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अंडे का उत्पादन

सरकार ध्यान दे तो होगा और अधिक लाभ
बहरहाल जिस तरह से किसान प्रेमचंद नई तकनीक से बटेर पालन, मछली पालन और कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर रहे हैं वह अन्य किसानों के लिए किसी रोल मॉडल से कम नहीं है. प्रेमचंद का कहना है कि अगर बिहार सरकार इस तरफ ध्यान दे और किसानों को होने वाली परेशानियों को दूर कर दिया जाए, तो यह उद्योग भी काफी फल फूल सकता है.

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बटेर

रोहतासः यूं तो रोहतास जिला को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां के किसान धान की पारंपरिक खेती पर ही निर्भर हैं. लेकिन इससे अलग हटकर जिले के एक किसान आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन, बटेर पालन और कड़कनाथ मुर्गा का पालन कर लाखों की आमदनी कर रहें है. प्रेमचंद नाम के ये किसान सिर्फ राज्य ही नहीं, राज्य से बाहर के किसानों के लिए मिसाल बने हुए हैं. इतना ही नहीं इन्हें किसानों को सम्मानित करने वाली संस्थाओं ने पुरस्कृत भी किया है.

पिता ने खुदवाया 15 कट्ठे का तालाब
दरअसल हम बात कर रहे हैं जिले के तिलौथू इलाके के मदारीपुर गांव के रहने वाले विश्वनाथ सिंह के बेटे प्रेमचंद की. प्रेमचंद के पिता 1985 में सेना से रिटायर्ड हुए तो पैतृक जमीन में से 15 कट्ठा का तालाब खुदवाया. तालाब का पानी न सूखे इसके लिए उन्होंने तालाब के निचले सतह पर ईट सोलिंग कर उसे सीमेंट से पक्का करा दिया. तालाब के चारों किनारों में पक्की दीवार जुड़वा दी. यहीं से शुरू हुआ मछ्ली पालन का कारोबार, लेकिन लगातार कई वर्षों तक मछली पालन में नाकाम होने पर उन्होंने मछली पालने का इरादा त्याग दिया.

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हेचरी में मुर्गी पालन करती महिलाएं

यू-ट्यूब की सहायता से फैलाया कारोबार
इसके बाद प्रेमचंद 2009 में जिला मत्स्य पालन केंद्र से जुड़े. वहां से विभाग ने उन्हें 10 दिवसीय प्रशिक्षण पर कोलकाता भेजा. जहां से लौटकर उन्होंने छोटे-बड़े कुल 5 तालाब खुदवाए. जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. कुछ नया करने की मन में ठाणे किसान प्रेमचंद ने सोशल प्लेटफॉर्म यूट्यूब की सहायता से मछली पालन, बटेर पालन, बत्तख पालन के साथ कड़कनाथ मुर्गा का भी पालन शुरू कर दिया. खासकर कड़कनाथ नाथ मुर्गे ने प्रेमचन्द की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दी है. जिसे पाने के लिए कई राज्यों के किसान यहां बिन बुलाए ही खींचे चले आते हैं.

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अंडे से निकला चूजा

तकनीक सीखने कई राज्यों के आते हैं किसान
प्रेमचन्द की माने तो उनके यहां सिर्फ जिले से बाहर ही नहीं राज्य से बाहर के किसान भी पालन की तकनीक सीखने और उनकी हेचरी देखने के लिए आते हैं. झारखंड से आए किसान विनय सिंह बताते हैं कि वह अपने साथ 500 बटेर के चूजे 14 रुपये प्रति पीस के हिसाब से ले गए थे. बताया कि 30 से 32 दिन में तैयार होने वाले एक बटेर की कीमत 50 से 60 रुपये मिल जाती है. जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है.

मछली, बटेर और मुर्गी पालनकर लाखों कमा रहे किसान प्रेमचंद

खास नस्ल का होता है कड़कनाथ मुर्गा
मध्यप्रदेश के झाबुआ में खास नस्ल का पाया जाने वाला कड़कनाथ मुर्गा का भी प्रेमचंद के हेचरी में पालन होता है. इस मुर्गे की बाजार में कीमत 700 से 800 रूपये है. वहीं, इस मुर्गे की खासियत ये है कि इस के मांस में फैट कम होता है और प्रोटीन ज्यादा होती है. इस मुर्गे के पालन के लिए किसान प्रेमचंद ने आठ लाख की लागत से एक हैचरी प्लांट लगाया है, जो कि ऑटोमेटिक है. जिसमें रखे कड़क नाथ मुर्गा के अंडे से 21 दिन में चूजा निकलता हैं. 19 दिन में बटेर और 22 दिन में बत्तख के अंडे से चूजे निकलते हैं.

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अंडे का उत्पादन

सरकार ध्यान दे तो होगा और अधिक लाभ
बहरहाल जिस तरह से किसान प्रेमचंद नई तकनीक से बटेर पालन, मछली पालन और कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर रहे हैं वह अन्य किसानों के लिए किसी रोल मॉडल से कम नहीं है. प्रेमचंद का कहना है कि अगर बिहार सरकार इस तरफ ध्यान दे और किसानों को होने वाली परेशानियों को दूर कर दिया जाए, तो यह उद्योग भी काफी फल फूल सकता है.

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बटेर
Intro:Desk Bihar
report -ravi kumar/sasaram
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यूं तो रोहतास जिले को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां के किसान पारंपरिक खेती पर ही निर्भर है लेकिन जिले के एक किसान ने आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन, बटेर पालन ,व कक्कड़ नाथ मुर्गा का पालन कर लाखो की आमदनी कर रहें है वही सिर्फ राज्य ही नहीं राज्य से बाहर के किसानों के लिए मिसाल बने हुए हैं इतना ही नहीं इन्हें किसानों को सम्मानित करने वाली संस्थाओं ने पुरस्कृत भी किया है


Body:दरसल हम बात कर रहे हैं जिले के तिलौथू इलाके के मदारीपुर गांव के रहने वाले विश्वनाथ सिंह के बेटे प्रेम चंद के बारे में पिता 1985 में सेना से रिटायर्ड हुए तो पिता की पैतृक जमीन में से 15 कट्ठा का प्रेमचंद ने एक तालाब खुद वाया तालाब का पानी न सूखे इसके लिए उन्होंने तालाब के निचले सतह पर ईट सोलिंग कर उसे सीमेंट से पक्का कर दिया व तालाब के चारों किनारों में पक्के दीवाल जुड़वा दिया और यहीं से शुरू हुआ मछ्ली पालन का कारोबार लेकिन लगातार कई वर्षों तक मछली पालन में नाकाम होने पर उन्होंने मछली पालने का इरादा त्याग दिया 2009 में वह जिला मत्स्य पालन केंद्र से जुड़े वहां से विभाग द्वारा उन्हें 10 दिवसीय प्रशिक्षण पर कोलकाता भेजा जहां से लौटकर छोटे-बड़े कुल 5 तालाब खुदवाये जिसके बाद तो जैसे उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा
कुछ नया करने को मन में ठाणे किसान प्रेमचंद ने सोशल प्लेटफॉर्म यूट्यूब की सहायता से मछली पालन बटेर पालन बत्तख पालन के साथ कक्कड़ नाथ मुर्गा का भी पालन शुरू कर दिया खासकर कक्कड़ नाथ मुर्गे ने प्रेमचन्द की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया है जिसे पाने के लिए कई राज्यों के किसान यहां बिन बुलाए ही खींचे चले जाते हैं प्रेमचन्द की माने तो उनके यहां सिर्फ जिले से बाहर ही नही राज्य से बाहर के किसान भी उनसे पालन की तकनीक सीखने व उनकी हेचरी देखने के लिए आते है

झारखंड से आए किसान विनय सिंह बताते हैं कि वह अपने साथ 500 बटेर के चूजे ₹14 प्रति पीस के हिसाब से ले गए थे बताया कि 30 से 32 दिन में तैयार होने वाले एक बटेर की कीमत 50 से ₹60 मिल जाती है जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है

कड़कनाथ मुर्गा है खास
मध्यप्रदेश के झाबुआ में खास नस्ल का पाया जाने वाला कड़कनाथ मुर्गा का भी प्रेमचंद के हेचडी में पालन होता है इस मुर्गे की बाजार में कीमत 700 से ₹800 होता है वहीं इस मुर्गे की खासियत है कि इस के मांस में फैट कम होता है और प्रोटीन ज्यादा होती है इस मुर्गे के पालन के लिए किसान प्रेमचंद ने आठ लाख की लागत से एक हैचरी प्लांट लगाया है जो कि ऑटोमेटिक है जिसमें रखे कक्कड़ नाथ मुर्गा के अंडे 21 दिन में चूजा निकलते हैं और 19 दिन में बटेर 22 दिन में बत्तख के अंडे से चूजे निकलते हैं




Conclusion:
बहर हाल जिस तरह से किसान प्रेमचंद ने नई तकनीक से बटेर पालन मछली पालन कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर रहे हैं वह अन्य किसानों के लिए किसी रोल मॉडल से कम नहीं है जरूरत है अन्य किसानों को इनसे सीख लेने की

बाइट -किसान प्रेमचंद
बाईट -किसान विनय सिंह ( झारखंड )
Last Updated : Oct 7, 2019, 7:15 PM IST
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