रोहतास: कभी बिहार का पेरिस कहा जाने वाला जिले के डालमियानगर का रोहतास उद्योग समूह (Rohtas Industries Group) एक समय देश के बड़े औद्योगिक स्थल के रूप में विख्यात था. लेकिन कालांतर में इसकी दुर्गति ने बिहार को भी विकास की रफ्तार में पीछे धकेल दिया है. आज जब करोना के दौर में रोजगार (Unemployment In Bihar) को लेकर मारामारी की स्थिति है., ऐसे में एक बार फिर डालमियानगर उद्योग समूह को पुनर्जीवित करने की मांग उठने लगी है.
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कहते हैं कि, गुलाम भारत में विकसित उद्योग के लिए डालमियानगर पूरे देश में विख्यात था, लेकिन आजाद भारत में कुछ कतिपय लोगों ने इसे बर्बाद (Dalmiyanagar Industry Group Became Ruins) कर दिया. वर्ष 1939 में जिस चीनी मिल का उद्घाटन राजेंद्र प्रसाद ने किया था. आज उसका नामोनिशान नहीं है. देश के कागज की खपत का 20% उत्पादन देने वाला पेपर मिल का उद्घाटन सन 1938 में खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था. लेकिन बाद की पीढ़ियों ने इस उद्योग समूह पर ध्यान नहीं दिया और देखते ही देखते तकरीबन 37 सौ भूखण्ड पर स्थापित यह उद्योग नगरी खंडहर में तब्दील हो गया.
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इलाके के लोग कहते हैं कि, कारखाने में तालाबंदी के दौरान यहां कार्य करने वाले मजदूर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे. पेट पर आफत आने के बाद कर्मचारियों को खोमचा बेचने से लेकर रिक्शे तक चलाने पड़े थे. वहीं राजनीतिक वर्ग के लोगों का कहना है कि, इसमें कहीं न कहीं इच्छाशक्ति का अभाव है. जितनी भी सरकारें आईं सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रह गई.
"140 करोड़ में फैक्ट्री को खरीदा गया था. अपना इंडस्ट्री लगाने की बातें तो सुनी जा रही थी लेकिन आजतक सफलता नहीं मिली है. सारा मशीनरी स्क्रैप के नाम पर हटा दिया गया है. सब कुछ डालमियानगर में शून्य हो चुका है. चिमनिया कट चुकी हैं. चमन उजड़ गया है. अब इस फैक्ट्री का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है कि यह चलेगी भी."- गया शर्मा, स्थानीय निवासी
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"बोलने के लिए शब्द नहीं है. पीड़ा को बयां करना मुश्किल है. तकरीबन 26 प्लांट थे, हजारों इंप्लाइज थे. देश के कोने कोने से लोग यहां काम करने आते थे. इतना बड़ा इंडस्ट्री उजड़ने के बाद बिहार में कोई रोजगार नहीं रह गया. पीएम से उम्मीदें बहुत हैं क्योंकि वो हर समय रोजगार की बात करते हैं."- रणधीर सिन्हा, स्थानीय
बता दें कि, सन 1984 के बाद यह उद्योग समूह पूरी तरह से ठप हो गया. बचा खुचा वनस्पति उद्योग भी 2 साल पहले बंद कर दिया गया. शुगर, पेपर, केमिकल, सीमेंट, वनस्पति, एस्बेस्टस सहित दर्जन भर वृहद उद्योगों का केंद्र रहे डालमियानगर की इमारतें आज भी अपने गौरवशाली अतीत को याद कर वर्तमान को मुंह चिढ़ा रही हैं.
बता दें कि, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने रेल मंत्री रहते हुए इसका अधिग्रहण करवाया और यहां रेल वैगन और कपलर कारखाना खोले जाने की सहमति दी. लेकिन बदलती सरकारों ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. स्थानीय सांसदों, विधायकों ने कई बार आश्वासन दिया. रेलवे ने सिर्फ इसके लोहा, स्क्रैप, कीमती कचरे बेचने तक ही अपने को सीमित कर लिया. आज भी लोगों को इसके पुनर्जीवित होने की उम्मीदें हैं ताकि रोजगार के लिए इन्हें बाहर न जाना पड़े.
वहीं राजद ने इस मामले पर वर्तमान सरकार पर निशाना साधा है.पूर्व केंद्रीय मंत्री व राजद नेता डॉ. कांति सिंह का कहना है कि, लालू प्रसाद ने डालमियानगर फैक्ट्री लेने का काम किया था. जितनी भी राशी थी उसे देकर रेलवे ने अपने अधीन लेने का काम किया था. लेकिन आज इसकी स्थिति दयनीय है. यहां के लोगों को देखना चाहिए था कि, क्या हो रहा है क्या नहीं हो रहा है. उपेंद्र कुशवाहा, महाबली सिंह का तो कभी इस मुद्दे पर कोई सवाल ही नहीं आता है.
गौरतलब है कि, स्थानीय सांसद महाबली सिंह (MP Raised Issue Of Rohtas In Lok Sabha) के लोकसभा में रेल वैगन मरम्मत कारखाना खोले जाने के प्रश्न पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने डीएफसीसी रेल लाइन गुजरने के कारण यह होना संभव नहीं है, कह कर हजारों लोगों के उम्मीदों पर पानी फेर दिया, जबकि केंद्र सरकार में रहे पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी 2022 में कारखाना चालू हो जाने की बात कही थी.
वहीं इस मुद्दे पर जेडीयू नगर अध्यक्ष विकास सिंह ने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कई सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि, सरकार द्वारा जो रेल वैगन कारखाना को विराम लगाया गया है. बीजेपी की कार्यप्रणाली पर हमें शक हो रहा है. नीतीश जी की जितनी योजनाएं हैं, जितनी मांगे हैं उसे भी केंद्र सरकार पूरा नहीं कर रही है.
"जब जनहित में रेल कारखाना चालू करवाने की बात आ रही तो, बीजेपी मना कर रही है. केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर शक होने लगा है. बीजेपी देश हित में काम करना चाह रही है या बिहार के आम जनमानस के खिलाफ काम करना चाह रही है. बिहार की जनता में केंद्र सरकार के खिलाफ इस रेल वैगन के बंद होने से आक्रोश है."- विकास सिंह, नगर अध्यक्ष, जेडीयू
बहरहाल 1984 के बाद बंद हुए रोहतास उद्योग से बेरोजगार हुए 20,000 मजदूर व उनके परिवार अब उम्मीदें छोड़ चुके हैं. लेकिन कोरोना के मार को कम करने के लिए इसे जागृत करने की आवश्यकता है. ताकि लोगों को रोजगार मुहैया हो सके. साथ ही प्रदेश के विकास की भी गति तेज होगी. दरअसल एक बार फिर से कोरोना की तीसरी लहर के बीच बिहार के प्रवासी बिहारी अपने घरों को लौट रहे हैं. ऐसे में उन्हें अब रोजी रोटी की समस्या सता रही है. लौटे हुए कामगरों ने सरकार से गुहार लगाई है कि रोहतास के डालमियानगर रेल वैगन मरम्मत कारखाने को शुरू करने की दिशा में काम किया जाए. ताकि इसकी शुरुआत के बाद उन्हें परदेश न जाना पड़े. पीड़ित मजदूरों को आस है कि फैक्ट्री चालू हो जाएगी तो उन्हें काम मिल जाएगा और वे घर पर रहकर ही गुजर-बसर कर सकेंगे.
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