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रोहतास में सोन नदी में स्नान के बाद छठ व्रतियों ने लिया जल, खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू - Rohtas news

Chhath Puja 2023 in Rohtas: लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ 17 नवंबर से शुरू हो रहा है. ऐसे में आज खरना के दिन छठ व्रतियों में भगवान भास्कर के प्रति गजब का भक्ति भाव देखने को मिला. इस दौरान लोगों ने कहा कि छठी मैया से कामना है कि वह सभी लोगों को खुशियाँ दें. सूर्य उपासना का यह पर्व सभी के जीवन में खुशहाली लाएं.

Chhath Puja 2023 in Rohtas
रोहतास में सोन नदी में स्नान के बाद छठ व्रतियों ने लिया जल
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 18, 2023, 8:02 PM IST

रोहतास: बिहार के रोहतास में लोकआस्था का महापर्व छठ व्रत को लेकर तैयारियां गजब का उत्साह है. बता दें कि तीन दिन पहले ही डेहरी में एसडीएम अनिल कुमार सिन्हा व एसडीपीओ विनीता सिन्हा ने दलबल के साथ सोन नदी के किनारे स्थित दर्जन भर से ज्यादा छठ घाटों का निरीक्षण किया. इस दौरान अधिकारियों को कई अहम निर्देश दिए गए. वहीं, कल यानि 17 नवंबर से शुरू हुए छठ पूजी की तैयारी को लेकर लोगों में काफी प्रसन्नता है. उन्होंने जिला प्रशासन की काफी तारीफ की है.

छठ को बड़े ही आस्था के साथ मनाते है बिहारवासी: दरअसल, खरना के दिन रोहतास के अलग-अलग घाट पर काफी संख्या में व्रती महिलाएं व पुरुष सोन नदी में स्नान करने पहुंचे. इसके बाद वह जल लेकर घर को रवाना हो गए. जहां बातचीत के दौरान व्रती रंजना श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार के लोग इस पर्व को बड़े ही आस्था के साथ मनाते हैं. यह पर्व दूसरों की कामना के लिए की जाती है. यह त्याग और तपस्या का पर्व है. इस साल जिला प्रशासन द्वारा बहुत अच्छे इंतेजाम किए गए है. हम लोगों को काफी सहुलियत हो रही है.

निर्जला उपवास होगा शुरूः बता दें कि नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर को मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं. जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है. इसीलिए इसे खरना कहते हैं. इस दिन व्रती शुद्ध अंतःकरण से कुलदेवता और सूर्य एवं छठी मैया की पूजा करके गुड़ से बनी खीर का नावेद अर्पित करती हैं. देवता को चढ़ाए जाने वाली खीर को व्रती स्वयं अपने हाथों से पकाते हैं. खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में रहते हैं. 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है.

खरना का महत्व: खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण. व्रती खरना कर तन और मन को शुद्ध और मजबूत बनाते हैं, ताकि अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत कर सकें. मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में गुड़ से बनी रसिया, खीर, रोटी का भोग छठ माई को लगाया जाता है. इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस दौरान ध्यान रखा जाता है कि किसी प्रकार का कोई कोलाहल ना हो, एकदम शांत वातावरण में व्रती प्रसाद ग्रहण करती है. मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ ही छठी मईया घर में प्रवेश कर जाती है.

"बिहार के सभी लोग भगवान भास्कर की अराधना में पूरी तरह भक्तिमय हो गए है. इस दौरान आज खरना का प्रसाद खाने के लिए लोग एक दूसरे के यहां जा रहे है. इस साल हमारी छठी मैया से यहीं कामना है कि भगवान सभी लोगों को खुशियां दें सूर्य उपासना का यह पर्व सभी के जीवन में खुशहाली लाएं." - रानी कुमारी, उपमुख्य पार्षद, डेहरी डालमिया नगर, रोहतास.

इसे भी पढ़े- Chhath Puja 2023 : रोहतास में सोन नदी के किनारे छठ घाटों का SDM-SDPO ने किया निरीक्षण, व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने का निर्देश

रोहतास: बिहार के रोहतास में लोकआस्था का महापर्व छठ व्रत को लेकर तैयारियां गजब का उत्साह है. बता दें कि तीन दिन पहले ही डेहरी में एसडीएम अनिल कुमार सिन्हा व एसडीपीओ विनीता सिन्हा ने दलबल के साथ सोन नदी के किनारे स्थित दर्जन भर से ज्यादा छठ घाटों का निरीक्षण किया. इस दौरान अधिकारियों को कई अहम निर्देश दिए गए. वहीं, कल यानि 17 नवंबर से शुरू हुए छठ पूजी की तैयारी को लेकर लोगों में काफी प्रसन्नता है. उन्होंने जिला प्रशासन की काफी तारीफ की है.

छठ को बड़े ही आस्था के साथ मनाते है बिहारवासी: दरअसल, खरना के दिन रोहतास के अलग-अलग घाट पर काफी संख्या में व्रती महिलाएं व पुरुष सोन नदी में स्नान करने पहुंचे. इसके बाद वह जल लेकर घर को रवाना हो गए. जहां बातचीत के दौरान व्रती रंजना श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार के लोग इस पर्व को बड़े ही आस्था के साथ मनाते हैं. यह पर्व दूसरों की कामना के लिए की जाती है. यह त्याग और तपस्या का पर्व है. इस साल जिला प्रशासन द्वारा बहुत अच्छे इंतेजाम किए गए है. हम लोगों को काफी सहुलियत हो रही है.

निर्जला उपवास होगा शुरूः बता दें कि नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर को मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं. जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है. इसीलिए इसे खरना कहते हैं. इस दिन व्रती शुद्ध अंतःकरण से कुलदेवता और सूर्य एवं छठी मैया की पूजा करके गुड़ से बनी खीर का नावेद अर्पित करती हैं. देवता को चढ़ाए जाने वाली खीर को व्रती स्वयं अपने हाथों से पकाते हैं. खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में रहते हैं. 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है.

खरना का महत्व: खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण. व्रती खरना कर तन और मन को शुद्ध और मजबूत बनाते हैं, ताकि अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत कर सकें. मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में गुड़ से बनी रसिया, खीर, रोटी का भोग छठ माई को लगाया जाता है. इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस दौरान ध्यान रखा जाता है कि किसी प्रकार का कोई कोलाहल ना हो, एकदम शांत वातावरण में व्रती प्रसाद ग्रहण करती है. मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ ही छठी मईया घर में प्रवेश कर जाती है.

"बिहार के सभी लोग भगवान भास्कर की अराधना में पूरी तरह भक्तिमय हो गए है. इस दौरान आज खरना का प्रसाद खाने के लिए लोग एक दूसरे के यहां जा रहे है. इस साल हमारी छठी मैया से यहीं कामना है कि भगवान सभी लोगों को खुशियां दें सूर्य उपासना का यह पर्व सभी के जीवन में खुशहाली लाएं." - रानी कुमारी, उपमुख्य पार्षद, डेहरी डालमिया नगर, रोहतास.

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