पूर्णिया: बिहार का ये जिला पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है. मगर प्रशासन की लापरवाही के कारण यहां के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां पानी तो है मगर हाल ऐसा है कि लोग उससे दूर भाग रहे हैं. लिहाजा उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतलबंद पानीऔर टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
जिले के 3,229 वर्ग किलोमीटर में निवास करने वाले 35 लाख लोगों को शुद्ध जल खरीद कर पीना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण है हाई डेनसिटी वाला आयरन इफेक्टेड पानी. हालांकि यहां के लोगों की मानें तो इस समस्या को पार पाने के लिए करोड़ों रुपये जलमिनारों पर खर्च किए जा चुके हैं, मगर आज तक इन जलमिनारों से शुद्ध पानी न ही गांव और न ही शहर तक पहुंच सका.
खराब पानी के कारण हो रही कई समस्याएं
यहां के लोगों के अनुसार पानी में मौजूद हाई डेनसिटी आयरन व सल्फर के कारण लोगों में लिवर,पेट की समस्या व त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी है. हालांकि इसके निराकरण के लिए नगर निगम व पीएचडी ने संयुक्त तौर पर कई कवायदें शुरू कर दी है. इसके तहत सैकड़ों जल मीनारों में जाल फैलाने पर सिस्टम की मुहर लगी. जो यहां के जल में मौजूद आयरन और सल्फर को बैलेंस करता है. मगर सिस्टम की ये कवायद आज तक जमीन पर कोरी ही दिख रही है.
ठप पड़े हैं सारे जल मीनार
लोगों की मानें तो पानी से आयरन व सल्फर के दोषों को दूर करने के लिए दर्जनों जलमीनार बनाए गए. इस पर करोड़ों का खर्च भी हुआ. मगर आज तक इसका कोई भी असर देखने को नहीं मिला. स्थानीयों के अनुसार कई जलमीनार ऐसे भी हैं, जो बीते 4- 5 सालों से आज तक निर्माण प्रक्रियाओं से ही गुजर रहे हैं.
करोडों का है पानी के डब्बों का कारोबार
पानी में फैले आयरन व सल्फर के कारण लोग अब बोतलबंद बाजार के डब्बों पर आश्रित हैं. जानकारों की मानें तो शहर में करोडों रुपये के बोतलबंद पानी का कारोबार है. वहीं, जिले भर में करीब सैकड़ों आरओ प्लांट, प्लांट संचालक व मजदूरों को मिलाकर 3 हजार लोग व तकरीबन 3 दर्जन मैजिक ऑटो इस कारोबार में शामिल हैं. जो टाटा मैजिक के जरिये घर-घर बोतलबंद पानी पहुंचाने का काम करते हैं.
पानी का आर्थिक बोझ उठाना है मजबूरी
इनकी मानें तो आयरन व सल्फर इफेक्टेड रोगों के कारण बोतलबंद पानी का आर्थिक बोझ अपने कंधे उठाना इनकी मजबूरी है. घर तक पहुंचाए जाने वाले इन 20 लीटर वाले बोतलों के लिए इन्हें 20-30 रुपए अदा करना पड़ता है. जो महीनें का 500 के करीब जाता है.
नगर निगम व पीएचडी ने साध रखी है चुप्पी
हालांकि इसपर पर पीएचडी विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर मनीष कुमार व नगर निगम व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कुछ भी बोलने से बचते दिख रहे हैं. इस मामले में पूछे जाने पर उन्होंने चुप्पी साध ली.