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पूर्णियां : टैंकर और बोतल बंद पानी के सहारे 35 लाख लोग, कैसे बुझेगी प्यास?

पूर्णिया में लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. यहां के पानी में हाई डेनसिटी वाला आयरन होने के कारण लोगों को पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है. जिससे उन्हें काफी दिक्कत हो रही है.

पानी की टंकी
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Published : Mar 22, 2019, 4:38 PM IST

Updated : Mar 22, 2019, 6:08 PM IST

पूर्णिया: बिहार का ये जिला पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है. मगर प्रशासन की लापरवाही के कारण यहां के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां पानी तो है मगर हाल ऐसा है कि लोग उससे दूर भाग रहे हैं. लिहाजा उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतलबंद पानीऔर टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

जिले के 3,229 वर्ग किलोमीटर में निवास करने वाले 35 लाख लोगों को शुद्ध जल खरीद कर पीना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण है हाई डेनसिटी वाला आयरन इफेक्टेड पानी. हालांकि यहां के लोगों की मानें तो इस समस्या को पार पाने के लिए करोड़ों रुपये जलमिनारों पर खर्च किए जा चुके हैं, मगर आज तक इन जलमिनारों से शुद्ध पानी न ही गांव और न ही शहर तक पहुंच सका.

अपनी समस्याएं बताते स्थानीय

खराब पानी के कारण हो रही कई समस्याएं
यहां के लोगों के अनुसार पानी में मौजूद हाई डेनसिटी आयरन व सल्फर के कारण लोगों में लिवर,पेट की समस्या व त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी है. हालांकि इसके निराकरण के लिए नगर निगम व पीएचडी ने संयुक्त तौर पर कई कवायदें शुरू कर दी है. इसके तहत सैकड़ों जल मीनारों में जाल फैलाने पर सिस्टम की मुहर लगी. जो यहां के जल में मौजूद आयरन और सल्फर को बैलेंस करता है. मगर सिस्टम की ये कवायद आज तक जमीन पर कोरी ही दिख रही है.

ठप पड़े हैं सारे जल मीनार
लोगों की मानें तो पानी से आयरन व सल्फर के दोषों को दूर करने के लिए दर्जनों जलमीनार बनाए गए. इस पर करोड़ों का खर्च भी हुआ. मगर आज तक इसका कोई भी असर देखने को नहीं मिला. स्थानीयों के अनुसार कई जलमीनार ऐसे भी हैं, जो बीते 4- 5 सालों से आज तक निर्माण प्रक्रियाओं से ही गुजर रहे हैं.

करोडों का है पानी के डब्बों का कारोबार
पानी में फैले आयरन व सल्फर के कारण लोग अब बोतलबंद बाजार के डब्बों पर आश्रित हैं. जानकारों की मानें तो शहर में करोडों रुपये के बोतलबंद पानी का कारोबार है. वहीं, जिले भर में करीब सैकड़ों आरओ प्लांट, प्लांट संचालक व मजदूरों को मिलाकर 3 हजार लोग व तकरीबन 3 दर्जन मैजिक ऑटो इस कारोबार में शामिल हैं. जो टाटा मैजिक के जरिये घर-घर बोतलबंद पानी पहुंचाने का काम करते हैं.

पानी का आर्थिक बोझ उठाना है मजबूरी
इनकी मानें तो आयरन व सल्फर इफेक्टेड रोगों के कारण बोतलबंद पानी का आर्थिक बोझ अपने कंधे उठाना इनकी मजबूरी है. घर तक पहुंचाए जाने वाले इन 20 लीटर वाले बोतलों के लिए इन्हें 20-30 रुपए अदा करना पड़ता है. जो महीनें का 500 के करीब जाता है.

नगर निगम व पीएचडी ने साध रखी है चुप्पी
हालांकि इसपर पर पीएचडी विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर मनीष कुमार व नगर निगम व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कुछ भी बोलने से बचते दिख रहे हैं. इस मामले में पूछे जाने पर उन्होंने चुप्पी साध ली.

पूर्णिया: बिहार का ये जिला पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है. मगर प्रशासन की लापरवाही के कारण यहां के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां पानी तो है मगर हाल ऐसा है कि लोग उससे दूर भाग रहे हैं. लिहाजा उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतलबंद पानीऔर टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

जिले के 3,229 वर्ग किलोमीटर में निवास करने वाले 35 लाख लोगों को शुद्ध जल खरीद कर पीना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण है हाई डेनसिटी वाला आयरन इफेक्टेड पानी. हालांकि यहां के लोगों की मानें तो इस समस्या को पार पाने के लिए करोड़ों रुपये जलमिनारों पर खर्च किए जा चुके हैं, मगर आज तक इन जलमिनारों से शुद्ध पानी न ही गांव और न ही शहर तक पहुंच सका.

अपनी समस्याएं बताते स्थानीय

खराब पानी के कारण हो रही कई समस्याएं
यहां के लोगों के अनुसार पानी में मौजूद हाई डेनसिटी आयरन व सल्फर के कारण लोगों में लिवर,पेट की समस्या व त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी है. हालांकि इसके निराकरण के लिए नगर निगम व पीएचडी ने संयुक्त तौर पर कई कवायदें शुरू कर दी है. इसके तहत सैकड़ों जल मीनारों में जाल फैलाने पर सिस्टम की मुहर लगी. जो यहां के जल में मौजूद आयरन और सल्फर को बैलेंस करता है. मगर सिस्टम की ये कवायद आज तक जमीन पर कोरी ही दिख रही है.

ठप पड़े हैं सारे जल मीनार
लोगों की मानें तो पानी से आयरन व सल्फर के दोषों को दूर करने के लिए दर्जनों जलमीनार बनाए गए. इस पर करोड़ों का खर्च भी हुआ. मगर आज तक इसका कोई भी असर देखने को नहीं मिला. स्थानीयों के अनुसार कई जलमीनार ऐसे भी हैं, जो बीते 4- 5 सालों से आज तक निर्माण प्रक्रियाओं से ही गुजर रहे हैं.

करोडों का है पानी के डब्बों का कारोबार
पानी में फैले आयरन व सल्फर के कारण लोग अब बोतलबंद बाजार के डब्बों पर आश्रित हैं. जानकारों की मानें तो शहर में करोडों रुपये के बोतलबंद पानी का कारोबार है. वहीं, जिले भर में करीब सैकड़ों आरओ प्लांट, प्लांट संचालक व मजदूरों को मिलाकर 3 हजार लोग व तकरीबन 3 दर्जन मैजिक ऑटो इस कारोबार में शामिल हैं. जो टाटा मैजिक के जरिये घर-घर बोतलबंद पानी पहुंचाने का काम करते हैं.

पानी का आर्थिक बोझ उठाना है मजबूरी
इनकी मानें तो आयरन व सल्फर इफेक्टेड रोगों के कारण बोतलबंद पानी का आर्थिक बोझ अपने कंधे उठाना इनकी मजबूरी है. घर तक पहुंचाए जाने वाले इन 20 लीटर वाले बोतलों के लिए इन्हें 20-30 रुपए अदा करना पड़ता है. जो महीनें का 500 के करीब जाता है.

नगर निगम व पीएचडी ने साध रखी है चुप्पी
हालांकि इसपर पर पीएचडी विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर मनीष कुमार व नगर निगम व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कुछ भी बोलने से बचते दिख रहे हैं. इस मामले में पूछे जाने पर उन्होंने चुप्पी साध ली.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)

वैसे तो यह जिला पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है। बावजूद इसके इसे सिस्टम की बेपरवाही कह लें या जिले का दुर्भाग्य। 3,229 वर्ग किलोमीटर में निवास करने वाले जिले के 35 लाख की आबादी को आज भी शुद्ध जल खरीद कर ही पीना पड़ रहा है। वजह है यहां का हाई डेनसिटी वाला आयरन इफेक्टेड पानी। हालांकि यहां के लोगों की मानें तो इस समस्या को पार पाने के लिए करोड़ों रुपये जलमिनारों पर खर्च किए गए। मगर आज तलक इन जलमिनारों से शुद्ध पानी न गांव और न शहर तक बहाल हो सका।


Body:कोरी निकली आयरन इफेक्टेड पानी से निजात की कवायदें....


दरअसल यहां के लोगों की मानें तो पानी में मौजूद हाई डेनसिटी आयरन व सल्फर के कारण जैसे ही लिवर ,पेट की गंभीर समस्या व त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी लोगों ने घरों तक दौड़ाए गए पाइपों में आ रहे पानी से लोगों ने दूरी बनानी शुरू कर दिया। हालांकि इसके निराकरण के लिए नगर निगम व पीएचडी ने संयुक्त तौर पर कई कवायदें शुरू कर दी। बकायदा इसके तहत सैकड़ों जलमीनार जल मीनारों का जाल फैलाने पर सिस्टम की मुहर लगी। जो यहां के जल में मौजूद आयरन व सल्फर को बैलेंस करता। मगर सिस्टम की ही कवायद आज तक जमीन पर कोरी ही दिख रही है।


ठप पड़े हैं सारे जल मीनार.....


लोगों की मानें तो पानी से आयरन व सल्फर के दोषों को दूर करने के लिए दर्जनों जलमीनार बनाए गए। जिस पर करोड़ों का खर्च हुआ। मगर कुछ आज तलक कार्य प्रयोग में नहीं लाए जा सकें। तो वहीं कुछ ने महीनों तक तो ठीक काम किया। मगर एक साल के भीतर- भीतर ये जलमीनार भी पूरी तरह ठप पड़ गए। वहीं स्थानीयों की मानें तो कई जलमीनार ऐसे भी हैं। जो बीते 4- 5 सालों से आज तक निर्माण प्रक्रियाओं से ही गुजर रहे हैं।



करोड़ों का है बोतलबंद जल का कारोबार ....


स्थानीयों की मानें तो यही वजह है कि महज शहरी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण परिवेश के लोग भी अब शुद्ध पानी के लिए बोतलबंद बाजार के डब्बों पर आश्रित हैं। जानकारों की मानें तो तो शहर में करोडों रुपए के बोतलबंद पानी का कारोबार है। वहीं जिले भर में करीब सैकड़ों आरओ प्लांट, प्लांट संचालक व मजदूरों को मिलाकर 3 हजार लोग व तकरीबन 3 दर्जन मैजिक ऑटो इस कारोबार में भिड़े हैं। जो टाटा मैजिक के जरिये घर-घर बोतलबंद पानी पहुंचाने का काम करते हैं। इनकी मानें तो आयरन व सल्फर इफेक्टेड रोगों के कारण बोतलबंद पानी का आर्थिक बोझ अपने कंधे उठाना इनकी मजबूरी है। घर तक पहुंचाए जाने वाले इन 20 लीटर वाले बोतलों के लिए इन्हें 20-30 रुपए अदा करना पड़ता है। जो महीनें का 500 के करीब जाता है।



नगर निगम व पीएचडी ने साध रखी है चुप्पी...


हालांकि इसपर पर पीएचडी विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर मनीष कुमार व नगर निगम व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कुछ भी बोलने से बचते दिख रहे हैं।


Conclusion:
Last Updated : Mar 22, 2019, 6:08 PM IST
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