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दो वर्षों से घर-घर घूमकर जनता को मताधिकार की कीमत समझा रहे दो दिव्यांग

महज इतना ही नहीं ये दोनों जिले की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का भी नेक काम कर रहे हैं. रमन और श्रवण कुमार बताते हैं कि भ्रष्टाचार से तंग आकर उन्होंने यह मुहिम छेड़ी.

लोगों को वोट की अहमियत बताते रमन
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Published : Mar 28, 2019, 11:10 AM IST

पूर्णिया: कहते हैं कि 'सपने उन्हीं के सच होते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता बल्कि हौसलों से उड़ान होती है' इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ कर जीवन जी रहे हैं जिले के रामबाग में रहने वाले दिव्यांग शिक्षक रमन कुमार और श्रवण कुमार. पैरों से दिव्यांग ये दोनों सामान्य नहीं हैं. ये अपनी दिव्यांगता के बावजूद गांव व कस्बों में जाकर केवल मतदाताओं को जागरूक ही नहीं कर रहे बल्कि वोटिंग के दिन मतदाताओं को उनके तय पोलिंग बूथ तक ले जाने का प्रबंध भी कर रहे हैं.

इन दिव्यांगों का जीवन
दरअसल जिले में रहने वाले, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले और मैथ्स से ऑनर्स कर रहे शिक्षक रमन कुमार दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने देते. बल्कि अपनी अनूठी सोच, मेहनत और जज्बे से इसे अपनी ताकत बनाया.
कुछ ऐसी ही सोच बी. कोठी इलाके के निवासी और एक पैर से दिव्यांग श्रवण की. लिहाजा, ऐसे दिव्यांगों को 'लोकतंत्र के प्रहरी' का तमगा देना कतई गलत नहीं होगा.

लोगों की मताधिकार के प्रति जागरुक करते रमन

घर-घर घूमकर वोटरों को कर रहे जागरूक
शिक्षक रमन कुमार व श्रवण की मानें तो "एक सजग वोटर में ही एक विकसित समाज की परिकल्पना छिपी है. लोकतंत्र में एक वोटर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहा है." लिहाजा, इन पंक्तियों का सार समझते हुए इन दोनों ने इसे अपनी जिंदगी में उतार लिया है. मतदाताओं को जागरूक बनाने की पहल छेड़ने के साथ ही वे लोगों के घर-घर जाकर वोटिंग करने व बेहतर उम्मीदवार को जीत दिलाने की अपील करते हैं. बता दें कि यह काम ये दोनों बीते दो सालों से कर रहे हैं.

बूढ़े-बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक ले जाने में करते हैं मदद
जहां ये दोनों मतदाताओं को पहले वोटिंग के प्रति जागरूक करते हैं वहीं मतदान के दिन पहले वे अपना मत देने जाते हैं. फिर अपने इलाके व आस-पास सटे बस्तियों में घूम-घूमकर घर के बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं को उनके तय पोलिंग बूथ तक ले जाकर मतदान कराते हैं.

भ्रष्टाचार से तंग आकर दिव्यांगों ने छेड़ी मुहिम
महज इतना ही नहीं ये दोनों जिले की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का भी नेक काम कर रहे हैं. रमन और श्रवण कुमार बताते हैं कि इस जागरुकता मुहिम को छेड़ने के पीछे उनकी एक वजह उनकी जरुरत थी. दरअसल दोनों को ही एक ट्राई साईकल की जरूरत थी. जब बार-बार जन प्रतिनिधियों के दरवाजे तक चक्कर लगाने के बाद भी इन्हें ट्राई साईकल नहीं दी गयी तो इन्होंने उसी दिन ठान लिया कि ऐसा इसीलिए हो रहा है क्योंकि हम बेहतर प्रतिनिधि का चयन नहीं कर रहे हैं. इसलिए अब ऐसे प्रतिनिधियों को सत्ता की चाभी नहीं थमानी है.
बहरहाल मत की कीमत परखते हुए उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया और आज दो साल से जन भागीदारी बढ़ाने में निरंतर कार्यरत्त हैं.

पूर्णिया: कहते हैं कि 'सपने उन्हीं के सच होते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता बल्कि हौसलों से उड़ान होती है' इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ कर जीवन जी रहे हैं जिले के रामबाग में रहने वाले दिव्यांग शिक्षक रमन कुमार और श्रवण कुमार. पैरों से दिव्यांग ये दोनों सामान्य नहीं हैं. ये अपनी दिव्यांगता के बावजूद गांव व कस्बों में जाकर केवल मतदाताओं को जागरूक ही नहीं कर रहे बल्कि वोटिंग के दिन मतदाताओं को उनके तय पोलिंग बूथ तक ले जाने का प्रबंध भी कर रहे हैं.

इन दिव्यांगों का जीवन
दरअसल जिले में रहने वाले, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले और मैथ्स से ऑनर्स कर रहे शिक्षक रमन कुमार दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने देते. बल्कि अपनी अनूठी सोच, मेहनत और जज्बे से इसे अपनी ताकत बनाया.
कुछ ऐसी ही सोच बी. कोठी इलाके के निवासी और एक पैर से दिव्यांग श्रवण की. लिहाजा, ऐसे दिव्यांगों को 'लोकतंत्र के प्रहरी' का तमगा देना कतई गलत नहीं होगा.

लोगों की मताधिकार के प्रति जागरुक करते रमन

घर-घर घूमकर वोटरों को कर रहे जागरूक
शिक्षक रमन कुमार व श्रवण की मानें तो "एक सजग वोटर में ही एक विकसित समाज की परिकल्पना छिपी है. लोकतंत्र में एक वोटर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहा है." लिहाजा, इन पंक्तियों का सार समझते हुए इन दोनों ने इसे अपनी जिंदगी में उतार लिया है. मतदाताओं को जागरूक बनाने की पहल छेड़ने के साथ ही वे लोगों के घर-घर जाकर वोटिंग करने व बेहतर उम्मीदवार को जीत दिलाने की अपील करते हैं. बता दें कि यह काम ये दोनों बीते दो सालों से कर रहे हैं.

बूढ़े-बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक ले जाने में करते हैं मदद
जहां ये दोनों मतदाताओं को पहले वोटिंग के प्रति जागरूक करते हैं वहीं मतदान के दिन पहले वे अपना मत देने जाते हैं. फिर अपने इलाके व आस-पास सटे बस्तियों में घूम-घूमकर घर के बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं को उनके तय पोलिंग बूथ तक ले जाकर मतदान कराते हैं.

भ्रष्टाचार से तंग आकर दिव्यांगों ने छेड़ी मुहिम
महज इतना ही नहीं ये दोनों जिले की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का भी नेक काम कर रहे हैं. रमन और श्रवण कुमार बताते हैं कि इस जागरुकता मुहिम को छेड़ने के पीछे उनकी एक वजह उनकी जरुरत थी. दरअसल दोनों को ही एक ट्राई साईकल की जरूरत थी. जब बार-बार जन प्रतिनिधियों के दरवाजे तक चक्कर लगाने के बाद भी इन्हें ट्राई साईकल नहीं दी गयी तो इन्होंने उसी दिन ठान लिया कि ऐसा इसीलिए हो रहा है क्योंकि हम बेहतर प्रतिनिधि का चयन नहीं कर रहे हैं. इसलिए अब ऐसे प्रतिनिधियों को सत्ता की चाभी नहीं थमानी है.
बहरहाल मत की कीमत परखते हुए उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया और आज दो साल से जन भागीदारी बढ़ाने में निरंतर कार्यरत्त हैं.

Intro:आकाश कुमार।
exclusive report।

क्या खूब कहा है किसी ने। जिस काम को कई मर्तबा एक सामान्य सा दिखने वाला इंसान सोच भी नहीं पाता। असाधारण से दिखने वाले उस कार्य को एक असामान्य इंसान बड़ी ही सहजता से कर गुजरता है। वास्तव में इन पंक्तियों को कोई चरितार्थ बना रहा है। तो वह कोई और नहीं बल्कि जिले के दो ऐसे दिव्यांग है। जो अपनी दिव्यांगता के बावजूद अपने गांव व उससे जुड़े कस्बों में जाकर न महज मतदाताओं को जागरूक बना रहे हैं। बल्कि वोटिंग के दिन वोटिंग की अपील करते हुए मतदाताओं को उनके नियत पोलिंग बूथ तक ले जाते हैं। पेश है पूर्णिया से लोकतंत्र के इस महापर्व पर एक
'महा -रिपोर्ट' ।





Body:वे दिव्यांग जिन्हें ईटीवी भारत करता है सलाम...

दरअसल जिले के रामबाग में रहने वाले फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले मैथ्स से ऑनर्स कर रहे शिक्षक रमन कुमार की मानें तो दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी। बल्कि अनूठी सोच, मेहनत व जज्बे से अपनी निः सक्तता को अपनी ताकत बनाया। कुछ ऐसी ही सोच बी कोठी इलाके में रहने वाले एक पैर से दिव्यांग श्रवण की है। लिहाजा ईटीवी भारत ऐसे दिव्यांगों को लोकतंत्र का प्रहरी का तमगा देकर सलाम करता है।


घर-घर घूम बना रहे वोटरों को जागरूक....


शिक्षक रमन कुमार व श्रवण की मानें तो "एक सजग वोटर में ही एक विकसित समाज की परिकल्पना छिपी है। लोकतंत्र में एक वोटर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहा है। लिहाजा इन पंक्तियों की असल अहमियत समझते हुए उन्होंने इसे अपनी जिंदगी में उतारा। मतदाताओं को जागरूक बनाने की पहल छेड़ने के साथ ही लोगों के घर-घर जाकर वोटिंग करने व बेहतर उम्मीदवार को जीत कर सामने लाने की अपील करना शुरू कर दिया। ये दोनों ही बीते दो सालों से ऐसा कर रहे हैं।


बूढ़े-बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक ले जाने में करते हैं मदद...


जहां मतदान से पहले वे लोगों को वोटिंग के प्रति जागरूक करते
हैं। वहीं मतदान के दिन पहले तो वे हर रोज से इतर सो कर जल्दी उठते हैं। इसके ठीक बाद नहा -धोकर पहले अपना कीमती वोट पोलिंग बूथ पर गिराने जाते हैं। इसके ठीक बाद अपने इलाके व उसके आस-पास से लगे बस्तियों में घूम-घूमकर घर के बड़े- बुजुर्ग ,महिलाओं से लोगों को पोलिंग बूथ तक जाकर पहले मतदान करने की अपील करते हैं। वहीं वैसे बुजुर्ग व महिलाओं को उनके नियत पोलिंग बूथ तक ले जाकर मतदान कराते हैं।


जब भ्रष्टाचार से तंग आकर दिव्यांगों ने छेड़ी एक मुहिम...


महज इतना ही नहीं मुफ्त में जिले के स्लम बस्तियों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने वाले रमन कुमार व अन्य बस्ती श्रवण कुमार बताते हैं कि इसके पीछे दो वजह है। पहली वजह पर गौर करें तो इन दोनों को ही एक ट्राई साईकल की जरूरत थी। जब बार- बार जनप्रतिनिधियों के दरवाजे तक चक्कर लगाने के बाद भी इन्हें ट्राई साईकल नहीं दी गयी। तो इन्होंने उसी दिन ठान लिया कि ऐसा इसीलिए हो रहा है। क्योंकि हम बेहतर प्रतिनिधि का चयन नहीं कर रहें। हम ऐसे प्रतिनिधियों को सत्ता की चाभी थमा रहे हैं। जो करोड़ों खर्च करते हैं। और उन्हें करोड़ों पाना होता है। जनता के सरोकारों से कोई सरोकार नहीं होता।




Conclusion:पैकेज बना सकते हैं। उतना मटेरियल है।

1. सभी महत्वपूर्ण विसुअल- दिव्यांग रमन गांव जाकर लोगों को जागरूक करते हुए।

2. दिव्यांग रमन की बाईट

3.दिव्यांग रमन के गांव रामबाग (जो सांसद संतोष कुशवाहा का रेसिडेंट भी है) से पिटूसी।

4.आम आदमी की प्रतिक्रिया।

4. दिव्यांग श्रवण का चलते हुए विसुअल

5. दिव्यांग श्रवण की बाईट

6. दिव्यांग के साथ पिटूसी।


मेरे इस रिपोर्ट के संज्ञान में इन्हें यूथ आइकॉन चुनने वाले हैं डीएम सो अच्छे से रिपोर्ट बनाया जाए।
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