पूर्णियाः यूं तो आपने मोहब्बत की सैकड़ों कहानियां सुनी होंगी. मगर लॉकडाउन के बीच बिहार के पूर्णिया से प्रेम की एक ऐसी तस्वीर सामने आई है. जो कोरोना और लॉकडाउन दोनों पर भारी पड़ती मालूम हो रही है. दरअसल, एक पति के सच्चे प्रेम की यह एक ऐसी कहानी है, जिसके आगे लॉकडाउन की लाठियों को भी घुटनों के बल बैठना पड़ा. यही वजह है कि आत्मीय गांठ से जुड़ी धीरेंद्र ऋषि और रूबी की कहानी हर प्रेमी जोड़े के लिए मिसाल बन गई है.
लॉकडाउन की लाठियों पर भारी पड़ा प्रेम
दरअसल, कभी अररिया तो कभी पूर्णिया के स्लम बस्तियों में रहकर दो जिलों को दिल की तरह जोड़ने वाले धीरेंद्र ऋषि और उनकी दिव्यांग पत्नी पर सड़क पर चलते लॉकडाउन की लाठियां बरसीं. टूटे ट्राई साईकल के साथ दो जून के निबाले के सभी आसरे छीन गए. तो धीरेंद्र पत्नी को कंधे पर लाद हाथों में झोला लटकाए भिक्षाटन के लिए मीलों की सफर पर निकल गए. हैरत की बात यह है कि तपती दोपहरी और कांटे की चादर में लिपटे इस सफर को वे नंगे पांव ही पूरा कर रहे हैं. लिहाजा अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये डगर कितनी कठिन होगी और दर्द कितना गहरा.
प्रेम का सबसे सुंदर उदाहरण इसे क्यों कहा रहे हैं लोग
अरिरिया के रानीगंज में रहने वाले धीरेंद्र ऋषि और बीणा दोनों का ही बचपन इसी इलाके में गुजरा. धीरेंद्र जहां सामान्य थे. वहीं, बीणा बचपन से ही पैरों से दिव्यांग. हालांकि आंख मिचोली के खेल से टीनऐज में कदम रखने तक कभी बीणा की दिव्यांगता इनकी गहरी होती दोस्ती के बीच नहीं आई. कुछ यही वजह भी रही कि गुजरते वक्त के साथ ये दोस्ती प्यार में बदल गई. मोहब्बत परवान चढ़ा. सच्चे प्रेम के लिए घर-बार ठुकराया और जमाने की फिक्र किए बगैर दोनों ने एक-दूजे से शादी कर ली.
पत्नी के लिए कर दिए जीवन के सारे त्याग
भिक्षाटन कर अपना गुजारा करने वाले धीरेंद्र ऋषिदेव ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहते हैं कि उनके तो हाथ-पैर हैं लेकिन उनकी पत्नी बचपन से ही प्राकृतिक रूप से लाचार हैं. लिहाजा पत्नी को दिए वचन निभाते हुए पत्नी का दर्द समझा. दोनों पैरों की दिव्यांगता के कारण घर से लेकर बाहर तक का काम वे खुद ही करते. हालांकि धीरेंद्र कहते हैं कि शादी के बाद वे पत्नी को घर पर ही छोड़ दो जून की रोटियों के जुगाड़
में बाहर निकल जाते थे. मगर लौटने के बाद पत्नी की पीड़ा देख पत्नी को साथ ले जाने का फैसला किया. इसके लिए भिक्षापटन के रुपयों से इन्होंने सेकेंड हैंड ट्राईसाइकिल खरीदी और पत्नी को साथ ले जाने लगे। इस दौरान पत्नी को जिस किसी चीज की भी जरूरत पड़ती वे उनकी मदद करते.
पति प्रेम के आगे हार गया लॉकडाउन
हालांकि लॉकडाउन ने इन्हें भी बाकियों की तरह घर में लॉक कर दिया. तो वहीं राशन की सरकारी घोषणा और भोजन की व्यवस्थाओं के इंतेजार में जब सप्ताह भर निकल गए और भिक्षाटन कर गुजारा करने वाले इस जोड़े के पास दो जून की रोटियों की समस्या सामने आई तो लॉकडाउन की लाठियों को चैलेंज करते हुए धीरेंद्र मुसीबतों की परवाह किए बगैर पत्नी बीणा को कंधे पर संभाले मीलों के सफर पर भिक्षाटन को निकल गए. धीरेंद्र नंगे पांव अरिरिया के रानीगंज से चलकर जिले के सरसी और बनमनखी जैसे प्रखण्डों से होते हुए 5 दिनों के सफर के बाद रानीगंज पहुंचेंगे. इस तरह धीरेंद्र रोजाना 15-20 किलोमीटर तक का सफर पत्नी को कंधे पर लेकर पूरा कर रहे हैं.
दोबारा नहीं आए लोग
धीरेंद्र कहते हैं इस दौरान खुद को समाजसेवी और नेता बताकर कुछ लोग तो पका भोजन लेकर स्लम बस्तियों में आए. खाना देते हुए फोटो भी खिंचवाई, लेकिन एक बार जो फोटो खिंचवाकर गया. दोबारा मदद को फिर नहीं आया. ऐसा करते हुए सप्ताह भर गुजर गए. जिसके बाद पेट के लिए धीरेंद्र ने मुंह पर गमझा तो वहीं पत्नी बीणा ने स्टॉल से मुंह को ढककर भिक्षाटन का फैसला किया.
क्यों बीणा बताती हैं खुद को दुनिया की सबसे खुशनसीब पत्नी
बीणा बताती हैं कि धीरेंद्र ने सात फेरों में बंधते वक्त जो वचन दिया. अपने पति को उससे कहीं ज्यादा निभाता देख कभी-कभार आंखों में आसूं आ गए. एक दिव्यांग को जीवन साथी चुनना और फिर सारा जीवन उसकी खुशियों के नाम लुटा देना. किसी को इससे ज्यादा कुछ और क्या चाहिए. अकेलेपन में दिव्यांगता मेरी कमजोरी न बने. लिहाजा मुझे कंधे पर लाद हाथों में मेरी जरूरत के सामान से भरा झोला लटकाए नंगे पांव मीलों का सफर करना, चांद तोड़कर मुट्ठी में भरने से भी बड़ा है. बीणा कहती हैं दुनिया की किसी पत्नी को अपने पति से और क्या चाहिए. कुछ यही वजह है कि बीणा खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान मानती हैं.