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'नई दुल्हन को सुनाई जाने वाली गौरव गाथाओं को वापस लाने का आ गया वक्त' - फणीश्वरनाथ रेणु

पूर्णिया सीमांचल के सबसे बड़े जिलों में से एक है और यह कई जिलों की कमिश्नरी भी है. इस शहर का नाम पूर्णिया इसलिए रखा गया क्योंकि कभी यहां सिर्फ जंगल ही जंगल हुआ करता था और अंग्रेज इसे पूर्ण-अरण्य कहते थे जो बाद में पूर्णिया बन गया. देखें पूरी रिपोर्ट...

pushpam priya chaudhary
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Published : Feb 15, 2021, 2:29 PM IST

पूर्णिया: आज यह शहर पूरे 251 सालों का हो गया है और जिला प्रशासन इसकी वर्षगांठ मना रहा है. लेकिन, भारत के इतिहास में सबसे पुराने जिलों में शुमार पूर्णिया आज भी आजादी के 7 दशक के बाद विकास की बाट जोह रहा है.

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पूर्णियां की 251 वीं वर्षगांठ के मौके पर प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी ने ट्विटर के जरिए एक वीडियो जारी कर अपना संदेश जारी किया है. पुष्पम प्रिया चौधरी ने अपने संदेश में कहा कि आज जिले की 251 वीं वर्षगांठ पर पूर्णियां और बिहार दोनों को बधाई.

  • पूर्णिया्ं को मैंने रेणुजी की कथाओं से जाना। दोनों मुझे बहुत ही प्रिय हैं, रस और राग से भरे। बिहार के सबसे पुराने ज़िले के गौरव और रौनक़ की वापसी के लिए मैं पूर्णियां के साथ हूँ।

    आज ज़िले की 251 वीं वर्षगाँठ पर पूर्णियां और बिहार, दोनों को बधाई। #Purnea251 pic.twitter.com/yRbFEZ4064

    — Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) February 14, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

''पूर्णियां को मैंने रेणुजी की कथाओं से जाना है. दोनों मुझे बहुत ही प्रिय हैं, रस और राग से भरे हैं. बिहार के सबसे पुराने जिले के गौरव और रौनक की वापसी के लिए वो पूर्णियां के साथ हूं.'' - पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लुरल्स पार्टी

उन्होंने जिले की बदहाली पर भी चिंता जाहिर की हैं. उन्होंने कहा कि पूर्णियां जिले में ऐसे बहुत से गांव और कस्बे हैं जो आज भी अपने सिर पर नीले साहबों का बोझ ढो रहे हैं.

''विरान जंगलों और मैदानों में नीली कोठी के खंडहर राहियों और बटोहियों को आज भी नीलियों की भूली हुई कहानियां याद दिला देते हैं. गौना करके अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ पूर्णियां लौटता नौजवान अपने गाड़ीवान से कहता है कि जरा यहां गाड़ी धीरे-धीरे चलाना, दुल्हन साहिब की कोठी देखेगी. जो अपनी दुल्हन को बताता है कि यही है मखे साहिब की कोठी. वहां है नील का होज. नई दुल्हन अपने पर्दे को हटाकर झांकती है कि घनी झाड़ियों के पीछे ईंट पत्थरों का ढेर है. इसके साथ ही दूल्हे का चेहरा गर्व से ऊंचा हो जाता है और वो कहता है कि हमारे गांव के पास साहिब की कोठी हुआ करती थी. यहां साहब और मैम रहते थे.'' - पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लुरल्स पार्टी

पुष्पम प्रिया चौधरी ने आगे कहा कि, बिहार और पूर्णियां का गौरव फणीश्वरनाथ रेणु जी के शब्दों में थी. उन्होंने कहा कि, ''अंग्रेजों के वक्त में या जो रेणु जी की कहानियों में पूर्णियां की रौनक हुआ करती थी, उसी रौनक को एक बार फिर से वापस लाने का वक्त आ गया है. आज पूर्णियां की एक नई कहानी लिखने का वक्त है.''

साहित्यकारों की तपोभूमि रही पूर्णिया
बता दें कि पूर्णिया जिला कई साहित्यकारों की तपोभूमि भी रही है. बटोहिया से लेकर चट्टोपाध्याय तक व रेणु से लेकर दिनकर तक की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने पूर्णिया की धरती पर साहित्य साधना की. रेणु की मैला आंचल अभी भी लोगों की जेहन में है.

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251 साल का हुआ पूर्णिया जिला
आज यह शहर पूरे 251 सालों का हो गया है और जिला प्रशासन इसकी वर्षगांठ मना रहा है. पूर्णिया के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रामेश्वर प्रसाद ने कई बरस की मेहनत के बाद यह मान्यता दी कि पूर्णिया जिले की स्थापना 14 फरवरी 1770 को हुई थी. पूर्णिया शहर बिहार में है और राज्य की राजधानी पटना से महज 300 किलोमीटर दूर है. शहरी और ग्रामीण आबादी के मामले में पूर्णिया शहर बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर है. कृषि इस जिले के निवासियों की मुख्य आजीविका है.

पूर्णिया: आज यह शहर पूरे 251 सालों का हो गया है और जिला प्रशासन इसकी वर्षगांठ मना रहा है. लेकिन, भारत के इतिहास में सबसे पुराने जिलों में शुमार पूर्णिया आज भी आजादी के 7 दशक के बाद विकास की बाट जोह रहा है.

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पूर्णियां की 251 वीं वर्षगांठ के मौके पर प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी ने ट्विटर के जरिए एक वीडियो जारी कर अपना संदेश जारी किया है. पुष्पम प्रिया चौधरी ने अपने संदेश में कहा कि आज जिले की 251 वीं वर्षगांठ पर पूर्णियां और बिहार दोनों को बधाई.

  • पूर्णिया्ं को मैंने रेणुजी की कथाओं से जाना। दोनों मुझे बहुत ही प्रिय हैं, रस और राग से भरे। बिहार के सबसे पुराने ज़िले के गौरव और रौनक़ की वापसी के लिए मैं पूर्णियां के साथ हूँ।

    आज ज़िले की 251 वीं वर्षगाँठ पर पूर्णियां और बिहार, दोनों को बधाई। #Purnea251 pic.twitter.com/yRbFEZ4064

    — Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) February 14, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

''पूर्णियां को मैंने रेणुजी की कथाओं से जाना है. दोनों मुझे बहुत ही प्रिय हैं, रस और राग से भरे हैं. बिहार के सबसे पुराने जिले के गौरव और रौनक की वापसी के लिए वो पूर्णियां के साथ हूं.'' - पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लुरल्स पार्टी

उन्होंने जिले की बदहाली पर भी चिंता जाहिर की हैं. उन्होंने कहा कि पूर्णियां जिले में ऐसे बहुत से गांव और कस्बे हैं जो आज भी अपने सिर पर नीले साहबों का बोझ ढो रहे हैं.

''विरान जंगलों और मैदानों में नीली कोठी के खंडहर राहियों और बटोहियों को आज भी नीलियों की भूली हुई कहानियां याद दिला देते हैं. गौना करके अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ पूर्णियां लौटता नौजवान अपने गाड़ीवान से कहता है कि जरा यहां गाड़ी धीरे-धीरे चलाना, दुल्हन साहिब की कोठी देखेगी. जो अपनी दुल्हन को बताता है कि यही है मखे साहिब की कोठी. वहां है नील का होज. नई दुल्हन अपने पर्दे को हटाकर झांकती है कि घनी झाड़ियों के पीछे ईंट पत्थरों का ढेर है. इसके साथ ही दूल्हे का चेहरा गर्व से ऊंचा हो जाता है और वो कहता है कि हमारे गांव के पास साहिब की कोठी हुआ करती थी. यहां साहब और मैम रहते थे.'' - पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लुरल्स पार्टी

पुष्पम प्रिया चौधरी ने आगे कहा कि, बिहार और पूर्णियां का गौरव फणीश्वरनाथ रेणु जी के शब्दों में थी. उन्होंने कहा कि, ''अंग्रेजों के वक्त में या जो रेणु जी की कहानियों में पूर्णियां की रौनक हुआ करती थी, उसी रौनक को एक बार फिर से वापस लाने का वक्त आ गया है. आज पूर्णियां की एक नई कहानी लिखने का वक्त है.''

साहित्यकारों की तपोभूमि रही पूर्णिया
बता दें कि पूर्णिया जिला कई साहित्यकारों की तपोभूमि भी रही है. बटोहिया से लेकर चट्टोपाध्याय तक व रेणु से लेकर दिनकर तक की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने पूर्णिया की धरती पर साहित्य साधना की. रेणु की मैला आंचल अभी भी लोगों की जेहन में है.

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251 साल का हुआ पूर्णिया जिला
आज यह शहर पूरे 251 सालों का हो गया है और जिला प्रशासन इसकी वर्षगांठ मना रहा है. पूर्णिया के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रामेश्वर प्रसाद ने कई बरस की मेहनत के बाद यह मान्यता दी कि पूर्णिया जिले की स्थापना 14 फरवरी 1770 को हुई थी. पूर्णिया शहर बिहार में है और राज्य की राजधानी पटना से महज 300 किलोमीटर दूर है. शहरी और ग्रामीण आबादी के मामले में पूर्णिया शहर बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर है. कृषि इस जिले के निवासियों की मुख्य आजीविका है.

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