पूर्णिया: बिहार के पूर्णिया में एक मंदिर ऐसा है जहां होली के अवसर पर धूमधाम से पूजा होती है. दरअसल, यह मंदिर भगवान नरसिंह का है. मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था और खंभा फाड़कर निकले थे. यहीं पर होलिका का दहन हुआ था और फिर होली मनाने की परंपरा (Tradition of Holika Dahan) भी यहीं से शुरू हुई. लोगों का कहना है कि पूर्णिया जिले के बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे हैं और यहीं भगवान नरसिंह और भक्त प्रह्लाद का मंदिर भी है.
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सिकलीगढ़ से जुड़ी है होलिका दहन की कहानीः होलिका हिरणकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर प्रह्लाद का वध करना चाहती थी, लेकिन खुद मर गई. यह कहानी सब जानते हैं. लेकिन यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि जहां पर यह घटना घटी थी, वह जगह कहीं और नहीं बल्कि बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है. मान्यता है कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत बिहार के पूर्णिया जिले से ही हुई थी.
यहीं प्रह्लाद को आग में लेकर बैठी थी होलिकाः पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने भक्तों के कल्याण के लिए अपने अंश प्रह्लाद को असुरराज की पत्नी कयाधु के गर्भ में भेज दिया. जन्म से ही भक्त प्रह्लाद विष्णु भक्त थे. अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर आग लगा दी.
सिकलीगढ़ मंदिर की विशेषता: कहा जाता है कि तभी वहां मौजूद खम्भे से भगवान नरसिंह का प्रकट हुए. भक्त प्रह्लाद बच गए. हवा से होलिका की चादर उड़ गई और वह जलकर राख हो गई. मान्यता अनुसार यही वह स्थल है. तब से होली मनाई जाती है.
आज भी मौजूद है खंभाः भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है. इस खंभे को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन यह नहीं टूटा. बस थोड़ा झुक गया. भगवान नरसिंह के इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु व शंकर समेत कई सारे देवताओं की प्रतिमाएं है. सिकलीगढ़ धरहरा में राख और मिट्टी से होली होती है. कहते हैं कि जब होलिका जल गई थी और प्रह्लाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थीं. तभी से होली प्रारम्भ हुई.
"हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग लगा दी.कहा जाता है कि तभी वहां मौजूद खम्भे से भगवान नरसिंह का प्रकट हुए. भक्त प्रह्लाद बच गए और तेज हवा ने होलिका की चादर उड़ा दी. इससे वह अग्नि में जल गई. ये वही स्थल है जहां होलिका दहन हुआ था और तभी से इस तिथि पर होली मनाई जाती है. नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं" - अमोल कुमार झा, पुजारी